असल हथियारो के गिरोह।

आप के खून मे चार कंपोज़ीशन होते है।आरबीसी,डब्ल्यूबीसी,प्लाज्मा,प्लेटलेट्स,उसमे एक भी घटा या बढ़ा तो आप बीमार है।2014 के दिसंबर मे 28 दिसंबर की रात एएलएल से पीड़ित मेरे भाई की की टीएलसी घट गयी।यह ब्लड कैंसर के मरीजों के साथ अक्सर होता रहता है।उसे तत्काल निपोजिन इंजेक्शन देना होता है।जिससे इलाज़ जारी रह सके।हम परेशान।पूरी रात लखनऊ शहर में ‘निपोजिन,खोजते रहे।नही मिली।यह दवाई कुछ ही कम्पनियां बना पाती हैं।वही बेचती भी है।बाद में दुसरे नाम से वह दवा कई गुने की रेट से मिली 4 सौ 25 रूपये की दवा पूरे 5 हजार की!इस तरह की कई दवाईयां है जो हजारो की हैं और नित्य मरीजो को लेनी होती हैं।जैसा की सभी के साथ होता है खुद पर समस्याएं आयीं तब इस विषय पर गहन खोजबीन में जुटा।उस रात सिस्टम के माध्यम से लूट,खसोट,अमानवीयता और कमीनेपन के अदभुत तथ्य सामने आये।कई बार दवा शार्ट करके मनमाफिक मूल्य वसूला जाता है।सारी जीवन रक्षक दवाईयां 3 सौ से 7 सौ गुने दर पर बाजार में मुश्किल से ही मिलती है।और भी हजारो तरीके।

बहुत सारे दोस्तों से बात करके देश के लगभग सभी शहरों में यही हाल पता चला।इसपर शोध करना वाकई मेहनत,रिस्क और दृष्टि होने का काम था।इसमें क़ानून और सरकार नाम की चीज़ बहुत निचले स्तर पर जा चुकी है।बिकुल ड्रकुला वाले हद तक वे पैसा निकालने के लिए आपका खून पीते है।दवा-कंपनिया बाजार में माल (दवा) कौन सा दे रही है यह जानने वाला कोई नही।दवा असली है की नकली है इसका कोई खबर लेने वाला भी नही।कौन -2 कंपनी किस तरह की दवा सप्लाई कर रही ये जानने वाला भी कोई नही है।किसी भी जिले के सीएमओ और ड्रग इस्पेक्टर मे आपस में तालमेल नही दिखा।डाक्टर,एम्आर,प्राइवेट हास्पिटल,दवा कम्पनियां,पैथालाजिकल सेंटर, आपस में मिलकर दुःख पीड़ित असहाय मरीज को लूटने में लगे हैं सरकार भी उसमे बराबर की भागीदार है।एक उदाहरण कैडिला नाम की एक दवा की कंपनी है जो खून का श्राव रोकने की दवा बनाती है।दवा का नाम है कैस्पर-सी! यह दवा बीते दो माह से बाजार में सप्लाई बंद है!हो सकता है कंपनी को नुकसान हो रहा है।लेकिन दवा की सप्लाई या उत्पादन बंद करने से पहले कंपनी को सरकार को इसकी सूचना देनी चाहिए थी।बहरहाल कंपनी ने यह कम नही किया. अब सवाल है खुदरा दवा विक्रेताओं का उनको दवा मिल नही रही है ज़रूरत मंदों को दें क्या? वो यहाँ वहाँ का रास्ता बता रहे हैं।लगभग दो महीने से जब विक्रेताओं को दवा नही मिल रही तो वो शिकायत किससे करें।कैस्पर – सी 2 महीने से बाजार से गायब है. और सरकार मरीज लाचार!ड्रग कंट्रोलर की भी कोई जिम्मेदारी होती है क्या?मैं रोज ही इस तरह की समस्याये देख रहा। जब खुद जूझ रहा हूँ,तब इस तरह के पीड़ितों पर ध्यान जाता है।क्या रोग-दुःख से पीड़ित कमजोरों,असहाय के श्राप का डर खत्म हो गया?

यह बात केवल दवा-दुकानों तक ही सीमित नही है।वह लूट व्यवस्था का रूप ले चुका है।जब आप पेट्रोल पंप पर तेल भरवा रहे होते हैं।आपको पता होता है की आप माप से कम तेल पा रहे है।फिर भी आप कुछ नही कर सकते।इसके लिए पूरा-पूरा एक विभाग है,जिसके जिम्मे आपके टैक्स के पैसे से तंख्वाह लेकर कम-तोल रोकने के रक्खा गया है।वह अपना काम नही करता बल्कि अपना हिस्सा लेकर चुपचाप आपको कम तेल खरीदने देता है,सीधे शब्दो मे कहिए वह आपके पैसे से दुतरफा लूटने के लिए है।यह केवल सौ मिलीलीटर का मामला नही है।यह लाखो लोगो से हजारो करोड रुपए मे बदल जाता है।यह केवल पेट्रोल तक सीमित नही है।वह समोसा,मिठाई खा रहे होते है,दूध खरीद रहे होते है आपको पक्की तौर पर मालूम होता है,नकली है,मिलावटी है आप क्या कर लेते है आपने इसके लिए टैक्स दिया ही है एक फूड-इंस्पेक्टर रखने के लिए,वह अपना काम किसलिए करता है।तनख़्वाह के अलावा एक बड़ी रकम उसे इकट्ठा करना होता है।आप उस मिलावट की कीमत दुतरफा चुका रहे है।सड़क के जाम किसकी वजह से लगे होते है कभी ध्यान दीजिएगा।ओवरलोडेड वाहन कौन चेक करता है,घटिया-पुराने पब्लिक-वैहिकल्स को कौन सवारिया ढुलवाता है,कौन 7 सीटर परमिशन के बावजूद उन वाहनो मे भूसे की तरह 14-15 सवारिया ठुसवाता है।यह केवल एक विभाग का मामला नही है।पूरे सिस्टम का मामला है।प्रशासन,बिजली-पानी और घर के अंदर की बातो को तो छोड़ ही दीजिये जैसे ही बाहर निकलते है।यह प्रदूषित हवा रोकने के लिए भी एक विभाग मौजूद है।वह क्या करता है खुद सर्च करिए।कहीं भी सावधानी से नजर दौड़एंगे आपको मोटी-मोटी रकमे दौड़टी-तैरती नजर आएंगी।तेल,दाना-पानी,बिजली,टैक्स,सुरक्षा,शिक्षा,दीक्षा,जमीन,सड्क,आसमान,पुलिसिंग,न्याय,हवा,पानी जहां तक नजर दौड़ाएंगे सब तरफ से सरकारी मशीनरी मौजूद है,उसका नियंत्रण है पर वह उसे नियंत्रण का बेजा लाभ उठा रही है।बड़े बाबू से बच पाना मुश्किल है।बड़े बाबू की निष्ठाएं व्यक्तिगत महत्वाकाँक्षा और घनघोर आर्थिक स्वार्थ में निहित है।

ऊपर तक पहुँचते-पहुँचते यह छोटी-छोटी राशिया कई हजार करोड़ की मुद्रा पर पहुँच जाता है।यह इतना बड़ा आंकड़ा है कि साधारण व्यक्ति उसकी कल्पना भी नही कर सकता है।उस भ्रष्टाचार/कदाचार से एक बड़ी अवैध मशीनरी भी डेवलप हो रही होती है।उसने इन सत्तर सालो मे अपनी गहरी जड़े जमा ली है।इन सालो मे पली-बढ़ी अवैध मशीनरी खुद मे ही एक ताकत बन चुकी है।ऊपर जाकर यह लाबिस्ट के रूप मे विकसित हो गया है।पोलिटकल साइंस का एक गज़ब सा सिद्धांत है पैसा अंत मे राजनीतिक नियंत्रण हासिल कर ही लेता है।प्रजातांत्रिक भारत की बेसिक समस्या का यह है कि मशीनरी का सेल्फ नियंत्रण है।चूकी मशीनरी की आदते,आचरण,कार्यव्यवहार स्वयंभू बनाई जा चुकी है इसलिए कोई भी पवित्र-ईमानदार-सोच वाली सरकार इसको कंट्रोल न कर सकेगी।जैसे ही उन्हे प्रतिकूलता दिखेगी वे या तो निष्क्रिय हो जाएँगे,और कुछ दिनो बाद उस सरकार के नुमाइन्दो मे ही चारित्रिक बदलाव करने की कोशिश करेंगे,उन्हे भ्रष्ट या फिर सुविधाभोगी मे बदल देंगे या फिर असन्तोष का जनमत तैयार करने मे लग जाएंगे।

असल मे लंबे समय की लोकतान्त्रिक वेश की राजशाही ने एक हथियार के तौर पर इस लाल फ़ीताशाही का विकास किया जिससे की कभी भी ‘बहुमत खोने की कंडीशण्ड,मे इस मशीनरी का इस्तेमाल कर सके।यानी राजवंश के अलावा कोई भी सरकार आएगी तो विपक्ष का आटोमेटिक रोल इस वर्ग के हाथ मे होगा।मतलब साफ है उनकी सत्ता कभी नही जाती।दिल्ली-मुंबई और सभी प्रदशों की राजधानियों में तरह-तरह की ताकतवर लाबियां सक्रिय है।इनमे पत्रकार,राजनीतिक,उद्योगपतियों,कानूनचियों,के साथ साथ अपराधियों का मिलाजुला सिंडिकेट गत 70 सालो में विकसित हो गया है।साहित्यकारी,मीडिया,लेखक,सिनेमा,कलाकारिता और एजूकेशन तो जनमत निर्माण के साधन मात्र हैं।जिनकी खाएंगे उनकी गाएंगे।गिरोह के अनुसार ही नीतियाँ बनती-बिगडती हैं।अमूमन वे कामर्शियल आवश्यकताओ पर मोनोपोली बनाने मे कामयाब रहे है।अधिकतर कारोबारों पर 2014 के जून तक उनके एकाधिकार थे।वे व्युरोक्रेसी और राजनीतिक पकड़ के दम पर वाणिज्यिक-पालिसियों अपने हितो के लिहाज से बनवा लेते थे।कुछ कामन छोडकर व्यक्ति सत्ता के अनुसार जुड़ते,बनते,घटते,बढ़ते रहते हैं।उन कामन नामो पर गौर कीजिये।सारी बात समझ मे आ जाएगी।उनका एक स्वाभाविक नेटवर्क भी देश भर में स्थापित हो गया है।सरकार किसी की भी बने सत्ता इन लाबीस्टो के पास ही रहती है।पैसा कमाने वालों को पता है बड़ी रकम कैसे कंट्रोल की जाती है।वह पार्टियों एवं संगठनों पर सहज ही पकड़ बना लेते हैं।जैसे ही नई सत्ता बनती है समीकरण के अनुसार नये लोग भर्ती हो जाते हैं या पकड लिए जाते है।कई नौकरशाहों वकीलों,जजों,पत्रकारों,राजनीतिकों, आदि की चार पीढियों की आय के अनुसार सम्पत्ति पता कर लीजिये सब कुछ पता लग जाएगा।स्रोत और लाबी की ताकत पता लग जायेगी।कोई लाख भरमाये पर सच्चाई यही है।

मैं ने कई विद्यमित्रों के साथ इन लाबिस्टो का अध्ययन किया है।यह एक जोखिम भरा लेकिन एडवंचरस काम रहा।सालाना नियंत्रण इतनी बड़ी रकम पर है कि आँखे चुधिया जाएँ।इन आंकड़ो का वार्षिक बजट या अनुदान से कोई मात्रात्मक सम्बन्ध नही है।किन्तु यह ध्यान देंने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य हैं।वामी,सामी,कामियों के अलावा भी देश की एक स्वार्थी शत्रु कौम है जान लीजिए।1-पेट्रोल लाबी,2-सेना-सप्लाय लाबी,3-दवा लाबी,4-खाद्य लाबी,5-रेल लाबी,6-उद्योग नीति निर्धारण लाबी,7-विदेश व्यापार नीती लाबी,8-कृषि लाबी,9-इधर के 15 वर्षो में एक नई लाबी भी पनपी है शिक्षा लाबी,10-टेली उद्योग यानी आईटी लाबी,खनिज लाबी,12-टैक्स कारोबार-भारत में टैक्स चोरी करवाना सबसे बड़े कारोबार के रूप में स्थापित है।बैकिंग लाबी को हमने जान बूझ कर छोड़ दिया है।क्योंकी वह अंतहीन है।उसकी मारक क्षमता कहां तक है इसका अंदाजा सरकार ही लगा सकती है।अन्य छोटे-मोटे गिरोह बाजो को हमने देखने की भी जरूरत नही समझी है वह तो हर साल बनते बिगड़ते रहते हैं।प्रत्येक लाबी के कुछ अघोषित नियम है।उन नियमों पर काम करने की जरूरत है। यदि नियम समझ में आ गये तो जल्द ही आप भी लाभ में होंगे।राज्यों मे तो एक सशक्त ट्रांसफर-पोस्टिंग लाबी भी मौजूद होती है।आप चाहे तो स्टेट लेबिल भी इन लाबियो की सूची बना सकते है।यह कुछ फिक्स से लोग होते है,व्युरोक्रेट,बाबुओ के सहारे इनको काम कराने मे महारत होता है।

कभी आपने सोचा है की देश के कार्पोरेट-कारोबारी-आर्थिक-अपराधी भगोड़े होते वे लन्दन जाकर ही क्यो रुकते है?उन्हे वहाँ से हम ला नही पाते।लिस्ट बनाए 1947 से आज तक की 5 सौ से अधिक की सूची है।खैर छोड़िए यह आप खुद करिएगा।कुछ साल पहले माल्या ने गांधी-नेहरू से जुड़े कुछ अत्यंत गोपनीय पत्र और दस्तावेज ब्रिटेन में नीलामी में खरीदे थे।आज तक वह बाहर नही आया…किसी ने वे पत्र अभी तक नही पढ़े।मामला इतना छोटा भी नहीं है।इसके बाद एक मोटा लोन दिया गया।टीपू की तलवार खरीद तो “अगाही,यानी इमेज-बिल्डिंग गेम थी।राष्ट्रवादी उनसे पार नही पा सकते।70 साल का अनुभव है।इतने सालो से ऐसे सैकड़ो अमीर तैयार किए गए थे।इस सबके माहिर हैं,।उन धूर्तों से नये-नये सत्ताधरी कुछ सीख ही नही पा रहे।संभव है कुछ लोग सीख भी गए हो।कम्युनिष्ट हमेशा मालदारो का ही खाते/गाते है।फिर माहौल बनाने में लग जाते हैं।आख़िर वह माल-मौज बंद होने का कुछ असर पड़ेगा की नही?वे एक इंच काम न करने देंगे।विकास की कीमत उनके मालिको को चुकानी पड़ती
है न! मालिकों को,जिनके टुकड़े पर इतने दिन से पल रहे थे।मालिको का दर्द देखा भी नही जाता।फिर वे लिखेंगे,बोलेंगे,प्रचार करेंगे और जान लड़ा देंगे।तुम्हे बेदखल करने के लिए…आख़िर मौज-मौस्ती और माले-मुफ़्त का मामला है भाई।इसके सत्ता में रहने से बड़ा ख़तरा रहता है।लोग पढ़-लिख लेते हैं,संचार का उपयोग करते हैं सोशल मीडिया का उपयोग करने लगते हैं और “इनकी मोनोपोली, टूटने लगती है।एनजीओ,पुरश्कार,विदेशयात्रा,पालिसी बनवा कर धंधे पर कब्जा,दलाली…और काम करवाने का कमीशन।कहाँ हो रहा विकास जब हिस्सवे नही मिल रहा!
  गहराई से पढिए,मूलतया इस दुनियाँ को कम्यूनिज़्म विचारधारा इंग्लैंड के चतुर-सुजान शासको-विचारको ने पैदा करके दिया है पूरी सोची समझी मंशा के साथ उसे अपने सारे कालोनियों में स्थापित किया है।यह 82 डोमिनियन देशो के आजादी के पीछे का बेस-गेम था।मूल खिलाड़ी तो एंजेल्स मियां थे यह एक बड़े सचिव के बेटे थे,मार्क्स का नाम तो एक मुखौटे के तौर पर स्थापित किया गया था।बिलकुल नेहरू के लेखन की भांति।खुद ही समझिए।

गलतफहमी न रखे।वंश और लाबियो का कुछ न बिगडेगा।उसकी “जड़े, हमारी आप की कल्पनाओं से कई हजार गुना ज्यादा गहरी हैं।पांच सौ से अधिक “कारपोरल घरानों,, का सारा पैसा इसी में से निकला हैं।यानी अभी भी देश का 76 प्रतिशत पैसा कट्रोल करते थे।नोटबंदी के बाद वह घटकर 66 प्रतिशत पर आया है।माल्या, ललित मोदी,चड्ढा,बोफोर्स,दलाली,हिंदुजा,पाठक,धरन,बेदी,क्वाट्रोच्ची(हजारो नाम है) कभी इण्डिया में थे ही नही।
कनग्रेसियन मनोवृत्ति उनको वकालत,पत्रकारिता,छोटे बिजनेस,अफ़सरी आदि का पेशा छोड़वा के पहले कमीशन,दलाली और रिश्वत आदि लूट का पैसा सम्भालने के लिए तमाम-देशो-विदेशो मे में रखवा/बसा दिए गए थे।सन 55 से ही दुनिया के अधिकाँश देशो में वंश का पैसा सम्भालने वाले वफादार बसाए गये हैं।उन्ही में चड्ढ़ा इत्यादि फैमिली भी थी।यह लोग बस्ती जैसे छोटे जिले से जाकर यूरोप में बसाए गये थे।बहुत सारे देशों में देशी-विदेशी ‘डागी,(टामी,)”फैमिलिया,, दुनिया भर में बंश का कारोबार सम्भालती हैं।वे “आर्थिक हितों के समूह,, रूप में काम करती हैं।पुनर्स्थापना के लिए सब कुछ करेंगी।सब कुछ का स्पष्ट मतलब है ‘सब कुछ,.जिसमे राष्ट्र-वादियो का पूरी तरह “जीनोसाइट,(समूल नाश) भी आता है।पैसा यानी असली ताकत…!!अउर का???
आपको एक बात पता है वंशवादी पार्टी की सदस्यता कब से नहीं हुई है???तो पता करिये बाप।

इन 70 सालों में जब अन्य संगठन “कार्यकर्ता निर्माण, और राष्ट्रवादी तैयार करने के लिए जान खपा रहे थे तब ‘वंश,पूरी स्थायित्व की रणनीति के साथ शिक्षा,सिनेमा,मीडिया,साहित्य,एनजीओ,बड़े कारपोरल और ओपिनियन मेकर वर्ग तैयार कर रहा था।यही उनके कार्यकर्ता है।आर्थिक -हितो की नाभि-नाल आपस मे जुड़े हुये है।उन्होंने लिमिटेड रखा।काहें को ज्यादा लोगों से सत्ता में हिस्सा बंटाना!!!ज्यादा लोग यानी कंट्रोल कम और जिम्मेदारी ज्यादा।फिर का पता कौन पगला जाए!इन वर्षों में उन्होंने राष्ट्र और समाज का “बेसिक वैचारिक अधिष्ठान,ही कन्फ्यूज कर दिया है।बहुत ताकत है उसके पास।सारी दुनिया में यह ताकत फैली है।देश का “स्वारथी शक्तिशाली समाजऔर उनकी ताकत का सारा स्रोत ‘वंश,के बने रहने में ही है।उनका सारा हित मूर्ख-वंश के सत्ता में बने रहने में ही है।लोकतंत्र की मूर्खताओ का लाभ उठाना इस वर्ग को अच्छी तरह आता है।कई देशों का आर्थिक लाभ इसी में है कि वंश सत्ता में रहे।

जब मोदी या अन्य कोई देशभक्त उनके धनागम के स्रोतो पर अटैक करता है तो वे मिल कर मुकाबला करते हैं मीडियेटिक वार करके.समाज में गलत-फहमिया पैदा करके,आपसी संघर्ष कराके वंश को फिर से स्थापित करते है।उन्हें येन-केन प्रकारेण ‘वंश,सत्ता में चाहिए।इसका “मतलब,खून के कतरे-कतरे से समझिये।
वे आतंकवाद से लेकर 35-50 हजार करोड़ जलवा सकते है#जाट आन्दोलन।हिन्दू रक्षक सिखों को दुश्मन बना सकते है।तमिल आन्दोलन खडा करके सबको मरवा भी सकते हैं।वे कोई अकेले नहीं है।हजारों लाख करोड़ की धनराशियाँ विभिन्न देशो में रखी हुई है।इसका सबूत है।पिछले सरकार ने तीन बिलियन डॉलर यानी कि रुपये 200966850000.00 अमेरिका में एक बैक खाते में डाले थे जिसका कोई दावेदार नहीं था|उन कंपनियों को भी भुगतान कर दिया गया था जिन्होंने न तो कभी कोई पूर्ति (Supply) किया और न ही उत्तर दिया | ये सारे पैसे रक्षा मंत्री मनोहर परिक्कर के अगुवाई में अमेरिका में पकड़ा गया है|रक्षा मंत्रालय ने अब इन पैसों को उपयोग करके बहुत सारा विदेशी मुद्रा बचा लिया है| प्रश्न यह है कि क्या इन पैसों को जानबूझकर फर्जी खाते (Forgotten Account) में डाल दिया गया क्या ? जिससे इन पैसों को किसी विशेष समय पर हस्तांतरण (Transfer) करके कोई हड़प लेना चाहता था?

नोटबंदी से उनके रीढ़ पर वार हुआ है अब वे एक मापन पर आ गये है।परंतु इतनी बड़ी सरकारी मशीनरी का क्या कर लेंगे?फिलहाल तो कई मिडिया घरानों,कारपोरलो,पत्रकारों,नेताओं का सब कुछ दांव पर है।इन्होने हरेक चीज,प्रत्येक धंधे को अपने अनुसार पालिसी/नीतिया बनवा कर खरबों का मुनाफा कमाया है वह भी घर बैठे।अब छटपटा रहे,घिघिया रहे क्योकि सारी मोदी सारी नीतिया जनता और राष्ट्रहित को ध्यान में रख कर बना रहे और उस पर सावधानी से नियंत्रण भी रखे हैं।उनका खून गुजराती है जो पैसे का फ्लो पहचानत़ा है दिल,दिमाग संस्कार से स्वयमसेवक हैं जिसे भारतमाता को परमवैभव पर ले जाना है।अब द्ल्लाली करके हथियार नही खरीदवा पाते।अब कंपनियों के नाम पर कौड़ियों के मोल जमीने भी नही कब्जा पाते।न ही फ्री-फंड के कोयले खनिज के सौदे का हिस्सा मिल पाता है। ऊपर से फर्जी एनजीओ का धंधा भी बंद कर दिया है।सरकारी पैसे से गैर सरकारी तरह का मौज भी वह बीएनडी कर चुका है।ठेके,कोटे,ट्रांसफर सब गया।मोदी से पाला पड़ा है और उससे कोई लिंक भी नही मिल रहा।एक दिन लाबिस्ट भी लाइन पर हो ही जायेंगे।जड़ साफ़ हो रहा है कमीनेपन का पेड़ सूखेगा ही।यह एक बिजनेस था जो सालों में स्टैब्लिश हुआ था अब समापन पर है।

साहेब-37

जाने कैसे बहुत से छात्रों-अध्यापकों पर कम्युनिज़्म का बड़ा प्रभाव है,वही पहनावा,बात-चीत का वही तरीका और क्रांति।वर्ग संघर्ष-सावन जी मज़ाक करते हैं।वर्ग तो केवल दो ही होते हैं शादी-शुदा वर्ग और गैर शादी-शुदा वर्ग..!
सारी सोच इसी के आस-पास घटती-बढ़ती है।इस जगह दूसरे नंबर पर समाज-वादी दिखते हैं।बगल में कट्टा हाथ में सुट्टा,कुर्ता-सुर्ता….गजब समाजवादी-कम्युनिष्ट दोस्तों से उसका तर्क-वितर्क चलता ही रहता है…,,दास कैपिटल और एंजेल्स को पढने के बाद भदेस भी “क्रांति, में लगने वाले थे।एक दिन गाँव गये थे रोचक घटना हुई।
अनपढ़ दादी से क्रांति की बात शुरू किए..!
दादी के दो ही प्रश्न पर भदेस जी धराशाई हो गये…””जौन रुपया बचत हौ उ त दान दक्षिणा में चला जात हौ…अनाज सब गरीब-गुरबा खात हैं…का क्रांति करिहौ…!
गाँव का ई स्कूल..ई धर्मशाला..ई सडक..क्रांति..ऊ द्वाशाला क्रांति से न बनल हौ..जाव पूजा-करै देव!!,,
बाबा बोले हजारन साल से अबहिन तक ऐसे ही चल रहा है…डाकू-लुटेरे और आक्रमण कारी आए..और लूटे…..चले गये…लूटे खातिर गिरोह बना के माहौल बनावत हैं अपने लूट को “”क्रांति, नाम देत है..बाकी कौनो कोई बात न बोले पावें…!!
भदेस ने उनसे घंटो बहस किया उनके एक सरल से उत्तर से चित्त…!!
“”तब तो तुम हमें फेंक आओगे..???
क्योंकि मैं भी बूढ़ा होने के बाद उत्पादन का घटक नही बचूँगा..बाऊ जी बोले…!!,,
घर में परिवर्तन की लहर न आ पाई यानी क्रांति की भ्रूण-हत्या हो गयी…!!!!
पढ़ते-पढ़ते भदेस सच के करीब पहुचने लगें…..!
कम्युनिष्ट दोस्त बोला घर में धन-दौलत भरा पड़ा आयी…खाने-पीने को सब-कुछ मिल जाता है..इसलिए मजदूर-संगठन के प्रति लगाव नही हो पा रहा है…तुम खुद पूंजीपति हो तुम्हारे समापन के लिए ही क्रांति है…!!
भदेस ने फिर सोचा….कई रात सोचा…
मेरी माँ भी काम करती आयी..ख़टती रहती है…क्या वह मजदूर है…कोई मजदूर नही होता….यह एक नकारात्मक सोच हैं…अगर यह गिरोह-बाज हमारे लिए ही क्रांति कर रहे हैं. तो हमे सुरक्षा और विकास के उपाय खोजने होंगे…..!!
जब लौटे तो “लोकतांत्रिक, व्यक्तित्व मे बदल गये…,देश को लेकर पल-पल सचेत…!!!
कम्युनिज़्म और नाटकीय समाजवाद के घोर विरोधी..!!!
उसे लगता है यह बेचारे खुद नही जानते कि क्या कर रहें हैं…..””सोच पर भी सोचने की ज़रूरत है!!
पर…. कैरियर बना रहे हैं राजनीति में, देश से क्या मतलब…!!!
तर्क-वितर्क ख़त्म होने पर कुछ मनोरंजन का जी चाहता है..सब एक फिल्म देखने जाते हैं…
विचार कैसे भी हो,उनमें कितना संघर्ष क्यों न हो… मनोरंजन एक साथ ही होता है,…!!
फिलिम भी तो अच्छी है..!!
दोनो यह बोलते हुए प्लाज़ा सिनेमा गहर से बाहर निकले…!
मिश्रा और भदेश मे बीच-बीच मे बहस होती रहती है..आज-कल वेदांत रगड़ने मे लगे हैं…तैयारी का समय भी नही देखते…मिश्रा महिम बहुत कलकुलेटिव हैं…जब भी मौका मिलता हैं किताबो का अभ्यास कर रहे होते हैं..फिल्म देखना…!केवल मूड चेंज करने के लिए होता है.!
भदेश को पढने,याद करने मे उतनी मेंहनत की ज़रूरत नही होती..उनको निर्णय लेने में भी दिक्कत नही होती..रीजनिंग मे 35 मिनट मे सौ सवाल हल करके 89 प्रतिशत तक सही जा रहा है…जीएस में 95 प्रतिशत तक…एक्यूरेट है…
मिश्रा…महिंम और महताब…जिंदा और भुवन सिंह किसी का भी स्कोर इतना नही है…!
लिखने की क्षमता भी बेजोड़ है..अँग्रेज़ी हिन्दी दोनो पर पूरा कमांड…!!
इतिहास और कँपरेटिव स्टडी भदेस को कंफ्यूज करते हैं किताब-दर किताब…..उसने दुनियाँ भर की हज़ारों किताबों को पढ़ डाला….जब भी इन किताबों को ले कर बैठते हैं उन्हे इन किताबो पर यकीन नही आता…ऐसा लगता है कि इनको जान-बूझ कर एक विशिष्ट दिशा में ले जाया जा रहा हो…एक चश्मा चढाने का प्रयास…लेकिन पढ़ना ही है क्योंकि जाँचने वाले इसी उत्तर को सुनना चाहते हैं इसी से नंबर मिलेगा..इसी से अधिकारी बनेंगे…!!!
कितनी गहरी साजिश है..!!
भदेस की समस्या संस्कार की नही विज्ञान की है..तर्क की है…
सावन जी चले गये…राजनीति करने..उनको वही करना था..उनकी पार्टी ने दायित्व दे दिया था….सरना सिंह ने ला में एडमिशन ले लिया है और तैयारी का भूत उतार दिया…भदेस के ही आवास पर रहकर पढाई पूरी कर रहे हैं और किसी बड़े वकील के मुंशी का काम भी सम्भालते हैं…!!
सावन जी के घनिष्ठ संबंधो में थे…केस वग़ैरह समझने में अभी से सरना का जोड़ नही…इन दो वर्षों में सरना के साथ रहते-रहते भदेस ने बहुत कुछ सीखा है…स्पेशिली इस परीक्षा-पद्दह्ति के बारे में…उसे साफ-साफ लगता है यह देश के साथ एक धोखा है….दोस्तों से जब भी बात-चीत होती है…यह बात मुँह पर आ ही जाती है..,,,दिन में कई बार ऐसा हो जाता है…..””यह लोकतंत्र को भुलावे मे रखने की एक तरकीब है बस..!!!!!,,
वह कुछ कह नही पाता…क्योंकि दोस्त कहते हैं….न लड़ने का अच्छा बहाना है….पहले पा जाओ तब बोलो…,,
मिश्रा जिस मकान मे रहता है..एक बूढ़ी-बूढ़ा हैं…दोनो ही मिश्रा को बहुत मानते

साहेब-36

-C-
बीए के बाद सरना सिंह चौधरी को हर साल लगता कि उनका सेलेक्शन तो पक्का है,एक बार उन्होने लिखित परीक्षा पास भी की किंतु इंटरव्यू में बाहर हो गये…!
उन्हे राज्य सरकार में जाना था या फिर केंद्रीय सेवाओं में इसलिए छोटी-मोटी कम्पिटीशन की तरफ देखते भी न थे…किसी से बात करके समय नष्ट करना गंवारा नही था,लेकिन,पार्टियों में खूब शिरकत करतेत
पी-के टुन्न,और अपनी भविष्य की रूपरेखा उसी नशे के दौरान बड़बड़ाते.,
सरना सिंह की शादी इंटर पास करते ही हो गयी,कुछ माल-पानी ससुराल से भी आ जाता,..धीरे-धीरे सबकी आशाएँ क्षीण होने लगी रुपये अर्थात खर्चा-पानी घटने लगा..फिर वापस बुला लिए गये,बारह साल में इलाहाबाद का पानी चढ़ चुका था,अब गाव की मेहनत-मशक्कत अभाव,झगड़ो,तानों और टूटे सपनों की यादो वाली जिंदगी सजा बन गयी..ऊपर से पत्नी की रोजाना फरमाईशे..!
त्रस्त होकर एक और आखिरी कंपीटीशन काएक बहाना लेकर आ गये………………………….जिन हालातों मे भदेस बहादुर लाल गुप्ता को मिले थे आप सुन ही चुके हैं..!
सावन से उसी रात बात हुई थी…..
तैयारी करने वालों की इतनी बडी संख्या कहाँ चली जाती है.?
कहाँ जाएगी..अंग्रेज इस देश मे अपना एक शुभ-चिंतक वर्ग चाहता था,जमीनदार और बाबू उसी योजना का हिस्सा थे..वर्तमान सरकार भी उसी तरह एक ‘फल, का लालच देकर युवा-वर्ग को उलझाए है..उनकी खामियों पर नज़र डालने वाला शक्तिशाली युवा-वर्ग न खड़ा हो जाए…!
सरकारों का शिक्षा-व्यय इसी लिए बहुत कम होता है,इसी लिए स्कूल-कालेज खोलने पर भी तमाम तरह के प्रतिबन्ध है,परमिशन तथा इंसेपेक्टरों का जाल है…सोवियत माडल के पीछे एक ही उद्देश्य है कैसे “राजतन्त्रात्मक लोकशाही,, की स्थापना जारी रखी जा सके,
कभी तुमने ध्यान दिया है की अधिकारियों और नेताओ के लड़को का सेलेक्शन खुद ब खुद हो जाता है..उनके रिश्तेदारों के लिए मेडिकल,इंजीनियरिंग,आईएएस,पीसीएस ज़्ब आसान है..उनका कैरियर रिकार्ड पता करो तो डबल ज़ीरो रहा होता है,.. साले इमला भी ठीक से न लिख पाएँ….सुरेश मिश्रा,मनुराग जौहरी,अल्पना शुक्ला,बखितयार अली जैसे सैकड़ो नाम है जिन्होने मज़े से बिना किसी तैयारी के “एक्जाम,दे दिया और जल्दी से निकल गये..उनका नाम टाप ह्न्ड्रेड में निकला…अरे इसी अल्पना के बगल मे अजय चौहान की सीट पड़ गयी थी..वह बता रहा था,कि बिना एक लाइन लिखे चुपचाप पूरे समय बैठी रही..!शायद नाम,रोलनंबर आदि लिखा था..लेकिन रैंक 64 पर थी..!
फिर भी मुझे लगता है,फेयर होता है..क्योंकि बहुत-सारे पढ़ने वाले,तैयारी करने वाले भी इनके माध्यम से चुने जाते हैं…मूल-उद्देश्य सामान्य जन के लिए एक शैफ्टीवाल्व तैयार करना है…आख़िर शाही पार्टी की स्थापना इसी उद्देश्य से की गयी थी..इस पैतरे को क्यों न जारी रखती।बड़े देश क्रीम एज यानी 18-35 साल की युवा शक्ति को विकास के काम में लगाते है..उत्साह एव उर्जा से लबालब भरे,पवित्र धारनायुक्त यह पीरियड उनसे सकारात्मक,रचनात्मक,निर्माणक काम करवाने की उम्र होती है,लेकिन सरकारें सोचती नही है,उन्हे अपना उल्लू सीधा करने लायक सिस्टम चाहिए…यह कमउम्र पवित्र आदमी उनके भ्रष्टाचार,कार्य-प्रणाली,स्वार्थ-परता,जाहिलियत, कमीने-पन,पर प्रश्न खड़ा करेगा,..इसलिए अंग्रेज़ो की चयन-प्रणाली मजबूत किए जा रहें हैं..यह चयन-प्रणाली दुनिया भर में अमान्य हो चुकी है,खुद उनके मालिकान इंग्लैड मे भी..!
चाइना जहा से शुरू हुई थी उनका अनुभव खराब रहा,विकसित देश अपने यहाँ स्कोर सिस्टम होता है,सामान्य पैरामीटर पर सीधे ले-लेते हैं अब स्कोर इकट्ठा करो…!
कुछ देश लोक-चुनाव-व्यवस्था से लेते हैं,जिसकी सरकार बनी वह अपने लोगो को लाता है,सीधे तौर पर जबाबदेही होती है…यहा तो एक इम्तिहान निकाला और फिर जीवन् में कभी कोई जबाब देही नही.!
परीक्षाओं से क्या छाटते हैं,..वह अपने आयोगों,सेमिनारों,वर्कशापो में लाख साबित करते फिरे कि यह पैटर्न सर्वश्रेष्ठ प्रशासक चयन के लिए है पर उन्हे खुद पता है की उनके अन्य सामाजिक शोध-पत्रों की तरह ये बातें भी एक झूठ और आत्म-तुष्टि से ज़्यादा कुछ नही हैं..!
कैसे?
इस बार सरना सिंह बोले”ज़रा, सोचो विपिन जो सड़क जाकर किसी आदमी से फालतू भिड़ा रहता था,ताराचंद की मेस तक न चला सकने की क्षमता रखने वाला कुछ रट्टा और पढ़ंत विद्या के सहारे देश की सर्वोच्च सेवाओं मे ज़ाकर कैसा एडमिनिस्ट्रेटर बनेगा,
मंजूर कैसा कलेक्टर बनेगा,..या हरनाम जो मोची,धोबी,नाई,भिखमंगे से लेकर सारे ग़रीबों को सताता रहता था..उसकी प्रवृत्ति से हम सब वाकिफ़ हैं उसने लोकतंत्र पर लेखो के सहारे पोज़ीशन पाई..अब रोज लोकतंत्र का कबाड़ कर रहा है..सर्वजीत ने दहेज प्रथा पर 500 शब्द का लेख रटा था संयोग से,क्यूश्चन फँस गया…सेलेक्शन हो गया..और पता है उसने दहेज में कितना लिया..?
कितना?
दस लाख..!
क्या?आँखे फैल गयी!
हा,भाई! आइ.ए.एस दामाद,शराब व्यवसाई जमघट सिंह की बेटी से ब्याह हुआ था उसी साल।
और “वैकल्पिक प्रश्नावली,चयन आयोगो के नीति नियंता कहते हैं कि’इससे व्यक्तित्व का निचोड़ निकाल लेंगे।जबकी उनका खुद का ही व्यक्तित्व अंतराष्ट्रीय पैरामीटर पर कमजोर साबित है।इन प्रश्नो से केवल यह तय हो सकता है कमरे में बैठे भदेस सावन जी और सरना की उन्ही बातों को याद कर रहे।
आज चालीस साल बाद भदेस ने समझा उसमें नया क्या है…बस कुछ तरीके बदले है,,बाकी सब वही…अब उसमें प्री,मेन्स और इंटरव्यू होते हैं..अधिकतर हिस्सा बहु-वैकल्पिक होता है…उसके लिए देश भर मे हज़ारों-हज़ार कोचिंग एजेंसिया हैं जो तैयारी करवाती हैं…यह अरबों खरबों का व्यवसाय है..इलाहाबाद की जगह अब दिल्ली ने ले लिया,..अब इंजीनियरिंग वाले ज़्यादे होते है,कंसट्रेशन और क्या।
अभ्यर्थी ने खूब अभ्यास किया है “इस पैटर्न का।जम कर चार महीने अभ्यास के बाद पैटर्न कर लेंगे।वह सारी गुणवत्ता आप मे आ जाएगी जो मनोविज्ञान के सो-काल्ड प्रोफ़ेसरो के अनुसार सर्वोच्च सेवाओ के लिए होनी चाहिए,गुड।एक हिरण,बैल,बकरा,खरगोश,लोमड़ी,बंदर और ईल,गौरैया,कबूतरों में से आप्शनएबिल क्विश्चनो के सहारे बाघ,शेर,बाज और मगर-मच्छ तलाशा जाता है,हमें इन चयन आयोंगो की दाद देनी चाहिए उनमें से शेर निकाल भी लेते हैं।
सारी दुनियाँ हँसती है मैं क्यों न हँसू??
शेर,बाज,मगर एक्जाम देने भी क्यों आएगा?
अगर आया भी तो प्रतिस्पर्धियों को देखकर शिकार की कामना न जाग जाएगी?
वेरी-गुड बहु-वैकल्पिक प्रश्न देश का भविश्य तय करते हैं,..
तभी तो सत्तर सालों में ये हाल हो गया….!
इनको किसी सार्वजनिक उद्यम में बैठा दो न बंद हो जाए तो कहना,इन सत्तर सालों में “ये,
चयनित कोई भी एक काम सफलता से कर सकें हो तो(बाबूगीरी के अलावा) एक उदाहरण दिया जाए..!
हा!हा!हा!हा!हा!
हिरण,बैल,बकरा,खरगोश,लोमड़ी,बंदर और ईल,गौरैया,कबूतरों का सिंडिकेट बहुत ताकतवर है,शेर से भी ज़्यादा,पूरा जंगल,नदी,पहाड़,धरती,आसमान,देवता उसके काबू में हैं।अपने हाथ से कुछ ना निकलने देगा,कुछ भी न बदलने देगा।
उस साल उन्होने चुपचाप एमए में एडमिशन लेकर पढ़ाई जारी रखी थी।

साहेब-35

-B-
“इनको मैं ने तब देखा था जब यहाँ पाँच साल पहले आया था,…यह सबसे तेज तर्रार और जीनीयस समझे जाते थे..अब जाने क्या हो गया !…,,
सावन जी ने महताब से कहा…!
अब सब पहचान चुके थे,.अपने समय के
ताराचंद में रहते थे,,यहीं से बूढ़े होकर निकले थे,..सब हंस पड़े!
भदेस को दुख हुआ..इस आदमी को उसनें भी किसी के कमरे पर देखा था,,..तब शायद पीसीएस के लिए उमर बढ़ा दी सरकार ने दो साल बढ़ने के कारण सरना चौधरी को एक और मौका मिल गया…एक ट्राई और करने आए थे…अपने गाँव से..चेहरे की मुर्दनी साफ-साफ देखी जा सकती थी…दो तीन साल पहले की बात है!
कुछ दिनों पहले उनकी तूती बोलती थी,.
लेकिन सड़क पर गिरने लायक तो न थे…
गाँव मे दो बेटियाँ हैं जो ब्याहने लायक हो गयी हैं
वह पूरी तरह ठीक नही हुए..!
इस बीच मकान मे शिफ्ट कर गये,..न जाने क्या सोचकर मकान का ऊपरी हिस्सा किराए पर लिया था,इसमें कई कमरे थे,..दोस्त,साथी,रिश्तेदार,जिले से सबका आना जाना,भदेस को इलाहाबाद पसंद आ गया थ.उन्हे लंबे समय तक रहना होगा..बगल में ही मिश्रा भी रहने आ गये थे..
उसी मकान में सरना चौधरी को ले आया था।
सेवा शुश्रुआ इज्जत-आफजाई के बाद उन्होंने टुकड़े-टुकड़े में बताई थी।सुन कर “भदेस जी, की मनोदशा विचित्र हो गयी थी,सावन की आँख भीग गई।
सावन जी को घटनाएँ याद आने लगी।
जब प्रतियोगी परीक्षाओ का रिजल्ट आता तो सारे लडके नाम ढूढ़ते जिसका सेलेक्शन हो जाता वह पार्टी देता जिसका नही होता वह उसी पार्टी में गम गलत करता।शुरुआती दौर में जब वह यहाँ आये थे उन्हें अच्छे से याद है “सरना चौधरी चौधरी सूटेड-बूटेड हर पार्टी में गम गलत करते मिलते।
दोस्त लोग कहने लगे कमरे पर लाने की क्या जरूरत?
भदेस के दोस्तों की जमात को इनका फैसला अखरा।
अच्छा भला जश्न लायक मकान लिया है उसमे एक…उठा लाया।
“सीनियर थे आखिर हमारा कोई दायित्व इनके लिए नही है क्या?,
“अबे कैसा सीनियर?,
चलती ट्रेन में सवारियां सीनियर जूनियर में थोड़े ही आंकी जाती हैं। असफल आदमी किसी का सीनियर
कैसे हुआ??
भदेस चुप लगा जाते हैं।
“जब इनकी यह सोच अभी से है तो सेलेक्ट हो जाने के बाद जनता से कैसी होगी!!,
….उस दिन बरसते पानी में कैसे उठाया था मैं ही जानता हूँ।रिक्शे वाले के साथ मिलकर भी उठाने के दौरान सारा कस-बल निकल गया था।
…चार दिन बाद बोलने बतियाने लायक हो सके थे।20 दिन बाद डिस्चार्ज हुए थे।
इतने दिनों तक सावन जी और भदेस ने देखभाल की थी।बाकी तो “तैयारी,करते रहे।बीच-बीच में देखने आते थे “सरना सर, को”!
जिस इलाहाबाद में 15 साल रहकर गये थे
…दो दिन बरसते पानी में सडक पर पड़े रह गये,बुखार में तपते,बेहोश किसी ने पलट कर देखा तक नही।
एक्जाम देकर गाव वापस न जाने का रास्ता तलाशने लगे।
8 दिन भूखा रहने के बाद सडक पर गिरे थे।
उससे पहले का सुनिए!
कई दिन इनके कमरे-उनके कमरे रुकते रहे।
सब बहुत जूनियर!अपने साथ वाले वाले तो कब के पढ़-लिख,सेलेक्ट अन सेलेक्ट जा चुके थे।
जो वकील आदि बन गये थे उनके पास कितना दिन रुकते।
इधर-इधर काफी जुगाड़ मारा कुछ न मिला,कैसे मिलता..क्या सीखा था??
जो करके खाते!
मनोबल तो कब का टूट चुका था।
अब केवल जीने लायक कोई काम चाहिए था।
एक काम था ट्यूशन….जाट थे,.वह तो मेहनती होता है…..साहब बनने के नशे में प्रकृति-प्रदत्त शक्तियां स्वयं नष्ट हो जाती हैं…देह-यष्टि लम्बी-चौड़ी थी.”लम्बा झेलने, की वजह से.नशा-पानी की आदत लग गई थी..चेहरा-मोहरा ऐसा हो गया था..लोग डाकू समझे… .वे अपने बच्चो को इनसे क्यों पढवाने लगे??
बिल-बिलाते भूख पर गांजा…!
कपडे-लत्ते गंदे…संगम पर…आते-जाते लोग भिखमंगा समझ .हाथ पर रख देते…यह मांगते न थे लोग दयालु होते हैं।
धीरे-धीरे “पिशाचावस्था, में पहुँच गये।..फिर अष्पताल…!
अब गाँव जाना है…बस।
“”तुम्हारा भला भगवान् करेंगे,,उनकी अंतरात्मा से निकले शब्द भदेस महसूस कर रहे थे।
यह उनके लिए नई अनुभूति थी
एक-दम नई!!
भदेस सोच रहे थे…
अनन्त शान्ति की इस अवस्था को क्या कहते हैं
इससे अच्छा तो यह होता कि हम न पढ़ते,हम अनपढ़ रहकर अपने लोगों,देश,समाज की सेवा करने लायक तो रहते हैं,..
यह तैयारी तो हमें कही का न छोड़ती है,किसी काम लायक नही बचते,तैयारी के समय महत्वाकांक्षी सपने एक अलग तरह का संस्कार दे जाते हैं..जो जीवन पर्यंत सामान्य नही बनने देता,इस देश को स्पेशल नही बहुत साधारण लोगों की जरूरत है,उमर निकलने के बाद स्तर मेंटेन करने वाले तीन-चार कार्य ही बचते हैं..उसमें भी सफलता की गुंजाइश कम रह जाती है वकालत,पत्रकारिता,ठेकेदारी और राजनीति.. बिजनेस भी एक ऐसी विकल्प हो सकता है किंतु उसके लिए पैसा चाहिये..पत्रकारिता एक समय-खाऊँ एवं सस्ता काम है…ले देकर वकालत ही बचाता है.
कैरियरिस्ट तैयारी करते समय ही ला मे एडमिशन ले लेते हैं,फिर जैसे ही लगा की उमर गयी,…अब गुंजाइश कम है तुरंत काला कोट तैयार,हाई कोर्ट वापस गये तो जिलों मे तो अदालतों की भरमार है,कही भी रखो तखत शुरू कर दो जिरह!
बस आम का ईमली जताना आना हो,
सावन जी इसी लिए कभी पढ़ना बंद नही किए…चुनाव लड़ने के लिए एडमिशन लिए रहना पड़ता आयी…बीए,..फिर एमए फिर एलएलबी,एलएलएम,पीएचडी… आगे भी चुनाव लड़ना है तो जो भी कोर्श मिल जाए ले लो एडमिशन..पढ़ते रहो,डिग्री बटोरते रहो,..
सावन जी ने अब एलएलबी मे एडमिशन ले लिया है..भदेस से घुटती है..तो घूम फिर दोनो साथ ही रहते है..!
दोनो को इस देश के लिए कुछ करना है..चौबीसों घंटे देश-राष्ट्र का चिंतन चलता रहता!

साहेब-34

A-
सच है,,क्या झूठ क्या,,
बरसात के इसे मौसम में घर से निकलना बहुत झेलाऊं लगता है…इलाहाबाद में पानी बरसता है तो लगता है शहर ही डूब जाएगा..लेकिन बरसात रुकने पर कुछ ही देर में सारा पानी कहाँ चला जाता है कुछ कहा नही जा सकता..!
विभाग बंद था…फिर भी लाइब्रेरी गये थे,देश में इमरजेंसी का माहौल है…बीए मे पढ़ने वाले भदेस हालैंड हाल में रहते हैं.रिजल्ट आ चुका है,हास्टल खाली करने की नोटिस भी,,उन्होने टैगोर-टॉउन मे एक मकान भी ले लिया है,कुछ दिनों मे शिफ्ट हो जाएँगे… इस साल भदेस भी “सिविल सेवा की परीक्षा मे बैठने वाले हैं,.पानी बरसा है बरसात में , भीगने का बड़ा शौक है…उसके एक सीनियर “”सावन,जी हैं रैगिंग के शुरुआती दिनो से उनसे गहरी छनने लगी..सावन जी के साथ वह अपना ज़्यादा-तार समय लाजो-और अन्य छात्रों के साथ बिताने लगा था….गजब उर्जा से भरे हुए सावन जी आए तो थे तैयारी करने,रुपये-पैसे की कमी थी .मदद माँगने के चक्कर में एक बड़े नेता से परिचय हो गया.. उनके घर आने-जाने लगे तो राजनीति का चस्का लग गया…एक तो वे पढ़ाकू-थे ऊपर से नेता-गीरी का चस्का…जो किताबें भदेस पढ़ते उस पर हस्टल-हास्टल घूम-घूम, रात-रात भर बहस..बहुत सारे विषय तो दोनो को मुँह-ज़ुबानी याद रहता,,…!
शाम होते ही दोनो संगम के लिए रवाना,बरसात छोड़कर बाकी के मौसम में नाव लेकर संगम तक न गये ..तो इन्हे लगता क़ि आज तो जीवन ही बेकार हो गया!
बरसात के कारण सावन जी नही आए “भदेस,पैदल ही मेडिकल कालेज की तरफ भीगते हुए चल पड़े…!
उनकी नज़र उस तेज बरसात में ज़मीन पर पड़े भीग रहे एक आदमी पर पड़ी!
सूनसान सड़क,तेज बहता आदमी..पास जाकर देखा…..चेहरा पहचाना लगा,याद नही आ रहा!
आप यहां क्यों..कमजोर आवाज़,छुआ तो तेज बुखार….भदेस दया,सहानुभूति से भर गये..बड़ी मुश्किल से रिक्शा मिला अपने साथ हास्पिटल ले गये भरती करने में बड़ी मशक्कत हुई..अपना पैसा लगाकर दवा-वग़ैरह खरीदने में लग गये…!
बुखार अगले दिन तक उतर गया..!
दो-तीन जेआर परिचित थे..आ गये उन्होने ही बताया कई दिन से भूखा रह जाने के कारण उसकी आते सूख गयी है.ग्लूकोज छड़ाया जा रहा है होश आने और ठीक होने में वक्त लगेगा….!
भदेस रात में उसकी देखभाल करते रहे…सावन जी सुबह आ गये,…!
कौन है..?
“पता नही..!
होश मे आ जाए तब पता चलेगा,मैं ने कही देखा है याद नही आ रहा/.,
“दोस्तों ने कहा क़ि जान-न पहचान रात भर पहरा देते रहे ?,,
भदेस चुप्प!
सावन जी ने कहा “क्या मानवता का कोई संबंध नही होता..?,
“”हम यहाँ मानवता निभाने नही तैयारी करने आए हैं हमारा एक-एक मिनट तैयारी में ही खर्च होना चाहिए.!,
“‘सरकारों ने नाम दिया है सर्विसेज यानी सेवा लेकिन है नौकरी…..नौकरी के लिए तैयारी कैसी.?
उसके लिए तो “प्रशिक्षण, होना चाहिए,यह ट्रेनिंग केवल-मात्र उचित-ढंग व ईमानदारी से सेवा का होना चाहिये,..
देश के युवाओं का बड़ा हिस्सा अपना “क्रीम टाइम, सेवाओं की तैयारी में खर्च करता हैं…
तैयारी की जाती है युद्ध के लिए,
सफलताओं के लिए…जीवन् के लिए..प्राप्तियों के लिए..नौकरी कार्य को करने का एक अवसर हो सकता है किंतु ,…अवसर तो संयोग और भाग्य से मिलता है फिर तैयारी कैसी…?
देश सेवा का अवसर चाहिए,उसके लिए चौबीसो घंटे पढ़ते-मँगते,चटते आँख खिया जाती है….इतनी मंगाई क्यो,..इतना रगड़ाई क्यो…इतनी मेंहनत का क्या काम,,?
यह पढ़ना-लिखना अगर देश-सेवा के लिए है तो जब भी अवसर मिले सेवा करो,न क़ि तैयारी.!
अगर देश सेवा का जज़्बा होगा तो देश सेवा करोगे…न कि तैयारी..!
जब देश और देश के लोगो के प्रति कोई भाव ही नही है तो अवसर मिलने के बाद क्या करोगे तुम लोग…!,,
पागल हो का बे?
“‘जब कुछ करने लायक बनोगे तभी देश सेवा कर पाओगे…ई देश-सेवा,वेवा के चक्कर में तुम कैरियर मरा लोगे..?,,मिश्रा जी बोले
“”इसका मतलब लोक-तंत्र और देश पर जो रट-पढ़ कर कंपटीशन निकालते हो वह केवल इम्तिहान पास करने तक सीमित रहने वाला है,,.?
मतलब यह है कि राष्ट्र तुम्हे अगर नौकरी नही देगा तो तुम्हारे सामने कोई मार भी जाएगा और उसके लिए तुम कुछ ना करोगे..!
उसे बचाने की कोशिश भी न करोगे..?,,
अखिल सिंह जो कि दोस्तों में सबसे होशियार समझे जाते थे…
भदेस!तुम तैयारी पर ध्यान दो नही तो इधर-उधर की चीज़ों में उलझ कर अपना कैरियर चौपट लोगे!,,
तैयारी!!!!
देश भर से पढ़ाकू छात्र यहाँ कैरीयर बनाने आते हैं..पूरब का आक्सफोर्ड!
पढ़ाई-वढाई जैसी भी हो इस शहर की अर्थ-व्यवस्था की रीढ़,हाई-कोर्ट तथा तैयारी करने वाले छात्र हैं,.अन्य शहरों से कई गुना महँगा..!
चाय-बंद,बिस्कुट का शहर,,,..पूर्वी उप्र..नही-नही पूर्वी भारत का ऐसा कोई जिला ना होगा जहा से हज़ार-पाँच सौ पढ़ाकू लड़के यहाँ “तैयारी,, करने ना आते हों…!
घी-तेल,सत्तू,चना,चबेना लिए दिनों रात..किताबों मे आँखे फोड़ते हुए..ज़्यादातर की घरेलू अर्थ-स्थिति बेहद अभाव से गुजर रही होती है,,फिर भी थोड़े-बहुत घर से आ जाते हैं और थोड़े बहुत इधर-उधर से माँग-मूँग कर काम चला लिया जाता है..
मित्र-मंडली बड़ी कंपरोमाईज़िंग और समाज-वादी होती हैं,..कभी किताबें माँग ली जाती हैं..तो अख़बार-पत्रिकाएँ एक म्ंगाता है सब पढ़ते हैं….
लाजो में रहने वाले तैयारीबाज डीबीसी के सहारे देह और जीवन् चलाते…मिट्टी के तेल से स्टोव की आँच पर दाल में ही आलू भी उबाल लेते हैं उसमें सरसो के तेल मे भरूंआ मिर्च मसल कर तैयार “चोखा, तैयार…और सर चले नहाने लौटने के थोड़ी देर बाद चावल भी फदकने लगता है….खाया,बरतन धोया और बैठ गये पढ़ने….. इस तरह दाल,भात,चोखा के सहारे सपने पूरे किए जाते हैं…!
शाम को थोड़ी देर सिविल-लाइन या चौक घूम आए,और फिर बैठ गये पढ़ने… रात में भूख-उूख लगी तो फिर खिचड़ी-सिचड़ी चढ़ा देंगे स्टोव पर…!
घर से आने वाले मनी-आर्डर के इंतजार में…उन्हे पता है यह सौ-पचास रुपये किस मेहनत और मशक्कत से माँ या बाप ने भेजा है…!
साथ में एक चिट्ठी हर हफ्ते आती है जिसका लब्बो-लुआब यही होता है
“बेटा एक भी पल बर्बाद नही करना..!,,
तैयारी यानी साहब बनने की प्रतियोगिताओं करने की पढ़ाई…इस शहर से ही सारी प्रतियोगी पत्रिकाएँ छपती हैं,,बताने-पढ़ाने वाले बहुत सारे लोग हैं..प्रतिस्पर्धी माहौल है,..
इस समय दो ही शहर पढ़ने वाले लड़कों को बहुत रास आते हैं बनारस और इलाहाबाद…!
कहते हैं काशी विद्वान बनाती है…इलाहाबाद “‘साहब,,
केवल सोहबतिया बाग में 4-5 पाँच हज़ार लड़के तैयारी करते है…आइ.ए.एस,पीसीएस और सरकारी नौकरियों का सपना लिए रात-रात भर किताबों में आँखे गड़ाए वह विषय याद करने की कोशिश करते हैं जो जीवन में दुबारा कभी उपयोग मे नही आने
वाली..!
कुछ की मेंहनत रंग ले आती है उनका सेलेक्शन हो जाता है…बाकी फ़्रस्ट्रेशन के साथ और ज़ोर-शोर के साथ लगते है..साल-दर साल बीतते चले जाते है..उनमें से अधिकतर यानी बड़ा हिस्सा खाली हाथ लौटता है..कोई नही जानता अब वे क्या कर रहे हैं…आज़ादी के 30 सालवां जशन!
अपने गाँव मे मना रहे होंगे न…!

साहेब-33

अख़बार के दफ्तर में में बैठे किसी खबर पर माथा-पच्ची कर रहे थे,.. बिना किसी सूचना के”बड़े,आ गये।
आँखे उतरी थी।उनमे अजीब सी चमक और गहराय थी।
भगवा पहने,ढेरों रुद्राक्ष एवं किस्म- किस्म की मालाएं!
दुबला हो गया था।हड्डिया रह गयी थीं।
उनका मन भर आया,…
घटनाएँ निगाह में तैरने लगी।
गोरा-चिट्ठा मक्खन जैसा,सावन जी की नजर से भी हट जाये तो…पूरा घर हिल उठता था….जमघा की असली ड्यूटी ही यही थी बड़े की फरमाइशे पूरी करो….!
“”महामाया का कोप,,,!!
क्या हुआ बेटा,अचानक!इतनी दूर,बिना बताये???
“”अंकल मैं ने सन्यास ले लिया,यात्रा पर निकला हूँ इधर आया तो सोचा आप से मिल लूँ.आप की याद आती रहती है.।,
भदेस जी ने सोचा!!
“जरुर इसे गंजेंडियों का कोई ग्रुप मिल गया!!
“”30-35 साल की उम्र है।यह उम्र कोई सन्यास की होती है?,,
उसने केवल इतना कहा ”मुझे गुरु मिल गये,,आँख बंद कर ली।
..बाद में बताया… “मम्मी ने ही कहा “”जमघा अंकल बंधे रहते थे,उनकी गुर्राहट घर में गूजती थी..इधर वह बड़ी तेजी से नार्मल हो रहे थे…मम्मी से बाते भी करने लगे थे..मम्मी घर का काम सम्भालने लगी थी…फिर जानें क्या हुआ….एक सुबह जब हम सो कर उठे तो उनकी गुर्राहट-चिल्लाहट और जंजीर हिलाने की आवाजें नही आ रही थी……उनका शरीर नीला पड़ गया था..
उनके जाने के बाद मम्मी फिर गुम-सुम हो गईँ….अचानक एक दिन उनके गुरु जी आये…मेरी दीक्षा करवा दीं…मम्मी ने ही कहा
.””..गुरु जी के साथ-साथ रहो दुनिया देखो,अपना जीवन जी लो!!,,
सच अंकल!शायद मेरा जन्म इसी कार्य के लिए हुआ था…पहले सब अधूरा-अधूरा लगता था…..अब पूर्ण हो गया…अकूत आनंद है…अनंत शान्ति….!
वह फिर कहीं खो गया..आँख बंद हो गयी।
बड़े कई रात घर पर रुका..।
“”गांजा,भांग सब छोड़ दिया है अब प्रभु धुन का नशा चढ़ गया।,
दस-दस घंटे आँख बंद किये जाने क्या करता रहता है!!,,
छोटे सरकार के बारे में उसी से खबर मिली थी।
“कमाल है इतनी बड़ी बात हमें अखबारों की दुनिया में रहते हुए भी पता न चली!!,
“..उसे देश का युवा संगठन देने की तैयारी थी…हाई-कमान का फोन आया था…दोस्तो के साथ दूर कही पार्टी करने निकला था रात को पी-पा के लौटा…..घनघोर नशे में था…अंड-बंड बकता हुआ,….. जाने किस-किस को गंदी-गन्दी गालिया बक रहा था।अगले दिन के लोकल अखबारों में खबर छपी कि किसी “लड़की, ने बालात्कार का आरोप लगा दिया है।
गिरफ्तारी हुई फिर जेल गया..एक दिन बंद भी रहा.!
कहो तो लड़की के बाप ‘अलबरूनी अंकल,के मैनेजर थे……गोपाल मामा के साथ उन्होंने बीच में पड़कर सुलह-सपाटा करके उसे बचाया…चुपचाप बैक-डेट में दोनों की शादी करवा दी..लड़की ने केस वापस ले ली लेकिन…!!!,,,
“लेकिन क्या..??
वह लड़की घर पर रहने लगी…. “”घटना की सूचना हाई-कमान को लग गयी थी। पदों की घोषणा के समय इसका नाम नही था।
इसका दिमाग डिस्टर्ब रहने लगा…डिप्रेसन…वाइलेंट होता था…सबको मारता,पीटता,गालियाँ,बकता आये दिन पुलिस आती…एक दिन उस लड़की को किसी लड़के के साथ पकड़ लिया……खुद पर तो पहले भी कभी काबू नही था उसका…क्रोध से भरा बोतल पत्नी के “सर, पर दे मारा…जेल-जमानत और मुकदमा …और दिमागी संतुलन भी बिगड़ गया है…अब बाँध कर रखना पड़ता है…..जमघा अंकल जिसमे रखे जाते थे…वहाँ रहना कठिन लगने लगा,…मम्मी अब आश्रम में रहने लगी है..भजन-पूजन-कीर्तन करतीं हैं। खुश हैं…..जमीन,शेयर,दुकाने सब बेचकर पैसे ट्रस्ट को दान दे दिया है।,,
भदेस का दिमाग जाने अपनी ही गति में चले जा रहा था।
“छोटे सरकार,सचमुच खतरे में थे!!!
“”क्या उस रात सचमुच सावन जी की आत्मा थी???
आँख भर आई।मैं उनकी अपेक्षाओं पर खरा नही उतर पाया।
मैं हमेंशा की तरह असफल रहा!!
मैं किसी लायक नही हूँ।
हमेशा अधूरा..अशांत…घुप्प उदासी में रहने वाला हूँ।
भदेस के अखबार में सम्पादकीय लिखा था।
“””पूरा समाज एक जंगल की तरह ही है।जंगल में हर रोज सुबह होने पर हिरन सोचता है कि मुझे शेर से ज्यादा तेज भागना है, नहीं तो शेर मुझे मार के खा जायेगा।
और शेर हर सुबह उठ कर सोचता है कि मुझे हिरन से तेज भागना है, वरना में भुखा मर जाऊंगा।
आप शेर हो या हिरन,उससे कोई मतलब नहीं है।अगर आप को अच्छी ज़िंदगी जीनी है,तो हर रोज़ भागना पड़ेगा।
“संघर्ष के बिना कुछ नहीं मिलता है।”
व्यक्ति,परिवार,समाज,राष्ट्र,संसार सब एक दुसरे से जुड़े लगातार संघर्ष करते हुए प्रगति कर रहे हैं…एक दुसरे से जुड़े हुए बदलाव ला रहे हैं!!
जो बहुत शातिर हैं उसमे से “अपने लिए रास्ते बनाते हैं हिरण उस प्रगति के “खाद्य वाहक, होते जाते हैं।लेकिन हम मानव समाज हैं हिरण या खाद्य नही।
विकास का यह क्रम अनाज के दाने-आग-पहिये-घोड़े-सडक से होता हुआ गति डाक-संचार-साइकिल-मशीन-मोटर वाहन-तार-बेतार-फोन-मोबाइल-मेल-से गुजर कर सोशल मीडिया के जमाने में आ पहुंचा है..!
“संघर्ष के तरीके,, बदल गये हैं।
अगर तुम्हारा लूटने का तरीका बदला है तो सामान्य जन के हाथ में भी खुद् के अति आधुनिक हथियार हैं।सूचना-संपर्क और संगठन केवल तुम्हारी ताकत नही रही माई-बाप!!
बदल जाओ साहब!!ज्यादा दिन शेर की खाल ओढ़े नोटिंग,फाइलें,नियमावलियों,और संविधान की गलत व्याख्या से देश को भटका,बरगला न सकोगे,.
सम्भल जाओ,बदल जाओ,
वरना खत्म कर दिए जाओगे।,,
खी!खी!खी!खी!खी,हुंह!!
कहाँ,कौन इन बातों को सीरीयसिली लेता है? कल अख़बार के इसी पन्ने पर कोई न कोई नमकीन-समोसे खायेगा इनका अधिकतम उपयोग यही है।

साहेब-32

अपना बेबस शरीर…!
हाथ क्यों नही उठ पा रहा।
कंपीकपी,
सीने का तेज दर्द,घुटती साँसे…
डूबता दिल!!
तेज पेशाब…बह रहा रुक क्यों नही रहा??
यह सुन्न होती देह!!!
हे मेरे परमात्मा..दयाशंकर।। देव..बाबूजी…माँ….उमेश…..सावनजी!
आप लोग।
तेज सिहरन के बीच-बीच में आँख खुलती…कई चेहरे दिखते..लोग कुछ बोलते…वह हाथ
गाड़ी हिलती थी… हम कहाँ जा रहे??
आवाज क्यों नही निकलती..??
हास्पिटल में थे…कमजोर आवाज में पूछा था…
“नूतन हम कौन सी जगह हैं…??
पत्नी ने जबाब दिया
आप अब ठीक हैं।
“”कुछ नही हुआ है आप को….
हम जाली ग्रांट में है…देहरादून!!”,,
पत्नी और कई दोस्त सब रुआँसे।
हडबडाहट के साथ उनका पहला वाक्य “छोटे-सरकार, को फोन करो तुरंत….!
एक दोस्त ने उसकी मोबाइल पर फोन मिलाया ..
कौन…???
“पत्नी,, ने नेता को पूरी बात बताई यह भी ‘”होश,में आने के बाद तुरंत पहला फोन तुम्हे करवाया है।
जाने क्यों! बात कर लो,,
पापा के दोस्त थे।बात करनी ही थी।
अच्छा अंकल…आप …कैसे हो गया.. कैसे क्या हो गया??
तुम ठीक हो??
“बेटा!! जल्द से जल्द यहाँ आ जाओ।,
“”तुम खतरे में हो.,,भदेस जी की आवाज बहुत क्षीण हो गयी थी।
उधर से वह जोर से हंसा था
“”अंकल बेफिकर रहिये!! मेरा कोई बाल-बांका भी नही कर सकता।,,
वह फिर हँसा था।
उन्होंने उस हंसी में कुछ महसूस किया था।उनकी महसूसने की क्षमता प्रकृति-प्रदत्त थी।
भदेस ने कहीं पढ़ा था
“मौत तो हंसती है।,,
हां!अंकल मैं जल्दी ही आ कर मिलता हूँ।,,
“ओके!!
बहुत सारे पत्रकार मित्र आ गये थे।
उन्ही ने बताया था।
यह “”हार्ट अटैक,,…था!
पत्नी की हिम्मत और सूझ-बूझ की वजह से जान बच गई।
बाद में जिज्ञासा से नूतन ने पूछा था कि आप
पूरी बेहोशी के दौरान सावन-सावन जी क्या बड़-बड़ा रहे थे.??
!!..!!
‘छोटे-सरकार,को ही क्यों फोन किया था
क्या बताते??
उस रात मैं हडबडी में जगी…
गार्ड भागता हुआ आया था…!
साब लान में थे…आप सीना पकड़े जमीन पर थे…कोट और साल नीचे..बिखरा हुआ…!
चीख-चिल्लाहट में कई लोग इकट्टे हो गये थे।
वो तो कहो “कथा-प्रवचक बाबा जी, के साथ एक डाक्टर थे उन्होंने फर्स्ट-एड दिया…नीद का इंजेक्शन भी…परेशान हाल मैं क्या करती???
…जब कुछ समझ में न आया तो आपकी मोबाइल से गोपेश्वर के अपने रिपोर्टर और आपके “पत्रकार मित्रो,को फोन कर दिया।
सब एक्टिव हो गये।
तुरंत एम्बुलेंस वगैरह पहुँच गया।
,प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री आपके मित्र न होते तो हम दोपहर तक यहाँ जाली-ग्रांट कत्तई न पहुंच पाते!
हम ईश्वर के समीप थे।
केदार क्षेत्र में।
मन्त्र और भगवान को याद करती रही।
परमात्मा की कृपा से ही इतनी मदद मिल सकती है।
सीएम् भी आये थे।
आप सो रहे थे इसलिए जगाया नही।उन्होंने ही मना कर दिया।
सीएम् बता रहे थे
आपके साथ पढ़े है,,??,
नूतन गर्वीले प्रेम से भर उठी।
नही बहुत जूनियर था”मुझसे,।।
फीकी सी मुस्कराहट।।
वह “”छोटे सरकार,,के बारे में सोचने लगे।
वह तो ठीक है।
किसी को कुछ बताने लायक भी नही है!!
लोग जाने क्या समझ बैठे।।
“क्या वह सपना था??
क्या सब दिमाग ने खुद गढ़ लिया।
लेकिन “मैं,लान में कैसे पहुंचा???
हाथ उठाकर देखा।
‘चिकोटी का गहरा निशान मौजूद था!!!!!

साहेब-31

कौन???
आपके साथ और लोग भी हैं???
भदेस भौचक और डरी-डरी निगाह से “सावनजी,के प्रेत को देख रहे थे।
इन चर्चाओं के दौरान वे भूल गये थे की सावन जी तो….!
तो क्या मैं एक “भूत,से बात कर रहा हूँ!
उनका डर गहराई में उतराने लगा।
सावन ने फिर देखा…!
कुछ कम हो जाता है।
कुरसी हिल रही है।
यह कल्पना नही है न ही सपना।
बाई हाथ पर चिकोटी काटी..दर्द हो रहा।
“आपने किस-किस को देखा??
“उन सभी नेताओ,अफसरों,सत्ताधारियों को देखता हूँ जो “पवित्र भारत भूमि,का पैसा डकार कर मरें।
जो चेतना के स्तर पर कर्म और राष्ट्रत्मा के प्रति ईमानदार नही थे।
वे ‘प्रेत,बनें मंडरा-मंडरा कर मुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।कोई विदेशी बैको के इर्द-गिर्द मंडराता है तो हवाई जहाजो में,कोई बिल्डिंगो में,तो कोई उस बड़ी कुर्सी को खड़ा निहारता रहता है,कोई भीण में खड़ा भाषणों की गलतियाँ ढूढता है तो कोई सड़क पर नंगा घूमता है,कोई अपने परिवारी जनो के आस-पास मौजूद रहकर बताना चाहता है कि मत-चुनों इस रास्ते को…तो कोई मुक्ति के लिए संतो के मठो में रहना चाहता है।
सब आत्म-पीड़ा की आग में जल रहे है जो हजारों बिच्छुओ के दंश से भी ज्यादा कष्टदायक है।
जब तक देश में शासन और व्यवस्था की वजह से लोग दुःख में जकड़े रहेंगे इन्हें मुक्ति न मिलेगी।
कोई बहुत पवित्र “राजयोगी, ही इन्हें मुक्ति दिला पायेगा।,,
यह सपना है।
भदेस इसको मानने को तैयार नही हो पा रहे हैं।
“” ..हत्याओं के बारे में कुछ बताइए!!,,
तुम क्या सोचते हो राजनीतिक हत्याओं या “बड़ी अवैध रकमों,,के पीछे हुए खुनी संघर्षों का रहस्य कभी खुल सकता हैं…..उनको यह दर्द हजारों ढंग से सताता रहता है की इतने बड़े पद पर रहकर आसानी से मार दिए गये,और उनकी हत्या के पीछे की साजिशो का पर्दाफास भी न हुआ!!
यह उनकी बनाई व्यवस्था ही चरम-दुःख का कारण बन जाती हैं।कोई कुछ नही कर सकता।सब एक झटके से बिक जाते हैं या डर जाते हैं।वह रूपये अपने लिए कोई नया व्यवस्थापक दूंढ ही लेते हैं।
हत्याएँ कराने का रिकार्ड है-!
दुनियां में राजनीतिक हत्याओ का रहस्य कभी नही खुलेगा।
जनता को छोटी-मोटी चीजों के बारे मे ही जानने दिया जाता है।
नेता जी घोस! मारे गये उनकी हत्या किसने करवाई थी-?
उन्हे मार कर केस भी न बनाने देने मे किसका लाभ था-?
डा. चटर्जी मारे गये जहर देकर उनकी हत्या किसने करवाई थी-?
किसका लाभ था?
आचार्य मारे गये किसने हत्या करवाई थी-?
पंडित मुखाध्याय की हत्या हुई थी,हत्यारा आज तक नही पकड़ा गया किसने यह जघन्य हत्या करवा दी-?
उससे कुछ ही दिन पूर्व पीएम् मादाम जी,की विचित्र ढंग से हत्या कर दी गयी थी..बिना कोई प्रश्न या जाँच हुए यहाँ ताजपोशी हो गयी थी किसने करवाई थी-?
कौन लाभान्वित हुआ था.?
तमाम लोग इमरजेंसी के दौरान गायब करवा दिए गये थे या अबूझ ढंग से मार दिए गये थे-कौन था पीछे-?
उसके बाद “बड़का तिवारी,की बम बिस्फोट करके हत्या कर दी गयी थी-?
हाईमैडम का “छुटका बेट़ा, हवाई यान दुर्घंटना मे मारे गये थे-?
देश के प्रधान मंत्री का बेटा था..कोई मंद बुद्धि भी न मानेगा-?
फिर मदाम के अंग रक्षको को रातो-रात क्या सूझी थी कि इतने श्रम,कष्ट से चयनित होकर कैरिअर के मुकाम पर पहुच कर बाडीगार्ड्स होकर भी हत्या कर दी..?
कुलवंत,महंत दोनो पागल थे क्या-?
बडे मकड़े आज तक ना पकड़े गये..कौन थे वह-?
बिना साजिश के इतनी बड़ी नीव् हिल गयी??
कोई साजिश ही नही थी??
तत्कालीन नेतृत्व के लिए चुनौती बन रहे “समर-बहादुर, की पेरिस में मौत हो गयी ….जबकि उनको ह्रदय की कोई समस्या नही थी…?
“वशिस्ठ नारायण, को जेल मे लेड युक्त पानी पिलाकर उनके गुर्दे फेल करके उन्हें मार डाला गया ?
जबकि वो उस समय देश की जनता के सामने एक बड़ी ताकत बनकर उभर रहे थे …???
2001 को हेलीकाप्टर दुर्घटना मे मारे गये “राजा बिंदिया, क्या इतने कच्चे खिलाड़ी थे कि (पीक)राजनीति के उच्चतम स्थान पर पहुच कर एक खराब हेलीकाप्टर मे चढ़ते-?
आख़िर जून 2000 को महेश ड्राइवर जितने बड़े कद का नेता जो कई बार केन्द्रीय मंत्री रहा सड़क दुर्घटना मे मारा जा सकता है-?
के दौरान मई 2006 को विपक्ष के बड़े नेता “उग्रसेन जी, को उस भाई ने मार दिया जिसे उन्होने पाल-पॉस कर बड़ा किया था..क्यो?
यह सयोग नही हो सकता कुछ ही दिनो बाद वह भाई भी मर गया-?
सितंबर 2009 को दक्षिण के मुख्य-मंत्री महाशेखर उड्डा,
मई 2011 को पूर्वोत्तर के एक सीएम् “मिर्जू मेड़ें ,भी हेलीकाप्टर दुर्घटना मे मारे गये..?
लेटेस्ट मिलिंदा सुन्जर-?
मरकट त्रिपाठी,महावीर जन्झाराम मंजुल बाबू,अतहर मिया,जुगनू सिंह आदि-आदि कितने नाम गिनाऊँ,आखिर नाम में क्या रखा है कोई भी रख लो घटनाएँ तो सत्य है न
ऐसी हत्याएं होती रहती हैं…..इनका राज खोलने का हश्र भी मौत ही होता है। कोई भी देह-धारी यह रिस्क लेना नही चाहेगा।यह मौतें स्वाभाविक रूप में पेश की जाती है।
भदेस जी!! नेताओ की हवाई मौतो मे किसी “बेहतरीन एक्सपर्ट, का हाथ और रणनीति नही नही दिख रही-?
और भी कई नेताओ की रहस्यमयी मौत किसी बड़े सिंडिकेट का इशारा नही कर रही-?
यह सब इसलिए याद दिला रहा हूँ क्योंकि
इन हत्याओं में और मेरी मौत में …,तारतम्यता है,..यह किसी सधे खिलाड़ी का हाथ दर्शा रहे हैं ……सत्ता के लिए बेकरार,…. लाभ के लिए लालायित मंजे हुए खिलाड़ी दिख रहे हैं…।
इतनी मौते वही करा सकता है जो मौत देने का माहिर खिलाड़ी हो।
सभी मौतों का तर्ज वही है,
“अलबरूनी,, तो एक नाम है….राग राजनीतिक है!..मति-गति और जाल साहबों का बुना हुआ है.
.बिलकुल सधा हुआ तरीका बता रहा किसी “पवित्र-संगठन,, के अभाव में सत्ता,स्वार्थ,लालची लोगो की साजिशें…..कभी बेनकाब न होंगी..।
अंत में सधे हाथ के खिलाड़ी भी हमारे ही बीच के सदस्य बनते हैं।,,
वह हांफने लगने।
आवाज तेज होकर धीमे हो गयी।
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देश में बम विस्फोट कर फरार हुए गुंडे कभी नही पकडे जाते वे मिडिल क्लास व्यापारियों से वसूली बिना साहबो की मरजी के कर लेंगे!!!
उसी जगह बेचारे छोटे-मोटे नागरिक बिला वजह पूरा का पूरा जीवन जेल मे बिता देते हैं,,…वह भी बिना किसी अपराध के…?
क्या मामला है भाई..?
..यही न कि क़ानून का डर बना रहे और उसकी वजह से “भैया,.
लोग मज़े करते रहें…!
डर भी बना रहे
यह बड़ी समस्या नही है…
लेकिन हमसे जुड़ी हुई है……!
देश के वास्तविक लोकतंत्र से जुड़ी है..आज़ादी के बाद से ही कुछ शक्तिशाली लोगो ने वास्तविक “लोकतंत्र,, को हैक कर रखा है…विदेशी जीवनशैली जी रहे..वे परिवार…राजशाही जैसा ही रह रहे हैं एक तरह से जनता उनकी गुलाम है..नासमझ होने की वजह से यह सच समझना उसके बूते की बात भी नही है….नये पैदा होने वाले नेता उन्ही जैसा ही जीना-रहना चाहते हैं……यह भारतीय लोकतंत्र की नियति बन चुकी दिखती है…”साहब,लोगो को बनाये रखने मे इसी वर्ग का सीधा-सा लाभ है कम से कम उनको यही मुगालता है जबकी “साहब,उनके बाप हैं।
. सच तो ये है कोर्ट न्याय की एक्टिंग केवल शैफटी वाल्व का काम करती है..!
“हाई प्रोफाइल,, केस कभी हल् नही होते–?
एक सुनिश्चित रकम से बड़े आँकड़ो के मामले कभी निस्तारण तक नही पहुचते…!!
कुछ बड़े (लगभग 300)और ताकतवार परिवारों का सिंडिकेट जो देश की इकोनामी का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 78 प्रतिशत) कब्जाये है..उनमे दो-चार घटते-बढ़ते रहते हैं……कुछ परिवार आजादी के पहले से ही या तो राजपरिवार रहा है या बड़ा जमीदार..अथवा बड़े व्यापारी रहे हैं।….अग्रेजो के आने के बाद इन्होने भारतीय जनता को गुमराह कर पोजीशन हासिल कर ली…गौरांग महाप्रभुओं ने अपनी सत्ता के साथ-साथ इन परिवारों को भी विकसित-स्थापित किया था..आजादी के बाद तो सब कुछ उनके लिए ही था…हालाकि कुछ पिट्ठू नौकरीबाज परिवार भी आगे आये लेकिन वे सदा ही मालिको के “अच्छे नौकर, साबित हुए इस देश के अच्छे नागरिक नही।…
…..70 सालो से सारी नीतिया उन्ही के हितो को ध्यान मे रखकर बनाई जाती रही हैं…!
उनके पास साम,दाम,दंड,भेद,हर तरह के रास्ते हैं….क़ानून…पुलिस….लालची नेता,ब्यूरोक्रेट्स,मीडिया और व्यवस्था की साथ उनकी लगातार गठजोड़ रही है…,नीतियाँ उनके लाभ के लिए बनती रही हैं…जनता सदा से अनपढ़ और नासमझ तथा जाति-पांति में बाँट दी जाती है। छोटी-छोटी समस्याओ में उलझाये रखो बड़ी चीजों पर वैसे भी नजर न पड़ेगी!!!
पहले ये हाई-प्रोफाइल मामले होते है उनके खिलाफ बोला नही जा सकता था,लोग बैठकबाजी कर चुप हो जाते थे..।उनके लिए अब एक बड़ा स्ँकट सोशल मीडिया आ गया है….मैनेजर रास्ते निकालने में लगे हैं।
और साहब उनका कुछ न होगा!!!
उनका कुछ न बिगड़ेगा।
“साहब पर कुछ असर नही पड़ता है वे अपने हितो की सुरक्षा में कोई न कोई क़ानून बनवा ही लेंगे।.
भदेस सोच रहे हैं भाषण देने की आदत गयी नही”!
तुम से मदद चाहिए…..!!
“”छोटे सरकार को बचा लो…!,
वह खतरे में है..!!,
क्या-क्या!!
कैसा खतरा..!,,
….रोष..
गूं
गूं
गुर्राहट…ख़,ख,
….
कहाँ गये!!”
..आवाज गायब हो गयी!!!
सावन जी कहाँ गये…!!
यहाँ तो कोई नही है।
क्क्क्क्क ओऊऊऊ!!”””””!!!!!!!!
हिस्च!!

साहेब-30

“”कामना के नियम,
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यात्रा बुखार में ही कटी “!!!
नीद नही आ रही थी।
आज शाम से फिर महसूस हो रहा है कोई है!!
कोई मौजूद है आस-पास!!!!
“……..???????,,
राजधानी जाकर डाक्टर को भी दिखा आए थे”!
ढेर सारी जांचे…!
सिटी स्कैन भी हुआ था।
काउंसिलिंग हुई”!
साइकेट्रिक कंसल्टेंट ने कहा “कई बार तनाव की वजह से वहम हो जाता है।,
आप कहीं घूम आइये।
वह पत्नी सहित “चोपता,आ गये हैं।
हरिद्वार से टैक्सी लेकर आ गये।
पत्नी भी साथ हैं।
चोपता गोपेश्वर से ऊपर है।उखीमठ वाले रास्ते में पड़ता है।तुंगनाथ के के लिए चढाई यहीं से शुरू होती है।
यहां से चार किमी है।
सावन जी के साथ बहुत साल पहले पञ्च केदार का दर्शन किया था।
कहते हैं अगर पांचो केदारो के दर्शन करके पशुपति नाथ के दर्शन कर लिए जाएँ तो मानव से निम्न योनियो (पशु,पक्षी,कीट,आदि) में जन्म नही मिलता।यह कठिन और मेहनत से भरा काम है।दोनों को सनक सवार हो गयी चल पड़े।
उसी साल सावन जी अपना पहला चुनाव् हारे थे।
उस साल एक बार में ही तुंगनाथ,केदारनाथ,कल्पनाथ के दर्शन कर ले गये थे।
अगले साल फिर आकर रुद्रनाथ गये थे।यह खड़ी चढाई होती है।
अगले साल मद-महेश्वर गये।
स्वर्गिक आनंद के वे पल भुलाए नही भूलते!!
पशु-पति नाथ एक साथ न जा पाए।
घर के पास होने कारण भदेस तो पहले से वहां जाते रहते थे किन्तु सावन जी का छूटा तो छूट ही गया।
ध्यान,साधना करते हुए कितने साधु-संतो,अघोरियो से भेंट होती।
प्रश्न और उनके उत्तर मिलते।
लेकिन बीच-बीच में दोनों को जब भी समय मिलता चोपता चले आते।
राष्ट्र चिन्तन,ध्यान और घंटो बातें।
उस समय तो यहा रुकने के लिए लकड़ी का एक घर हुआ करता था, बूढ़ा नेपाली रहता था जो भोजन आदि का इंतजाम करता।
वह घर अब एक शानदार होटल में बदल चुका है जिसमें आधुनिक जीवन की हर सुख-सुविधा मौजूद है।”मालिकान, गढवाली थे जिनका होटलों का व्यवसाय चल निकला।
अब गढवाल के हर तीर्थ स्थल पर उनके होटल बन गये हैं।
लेकिन अपना मुख्यालय चोपता को ही बना रखा है।
अब चोपता को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाने लगा है!!
होटल खाली पड़ा था।अभी सीजन नही है इसलिए कोई पर्यटक नही है।
..कोई टीवी वाले “कथा-वाचक,बाबा जी अपने दो-तीन सेवको के साथ रुके हैं।
उम्मीद तो नही थी किन्तु मैनेजर इनको देखते ही पहचान गया।
बड़े उत्साह से स्वागत करने लगा।
सावन जी की महिमा।
अपने पुराने”सूइट,में रुके।
बुखार की वजह से सो गये।
शायद बुखार उतर गया!
देह हल्का महसूस हो रहा है।घड़ी देखी,रात के दो बज रहे हैं।
अदभुत शान्ति,प्राकृतिक सौन्दर्य,हरियाली,चारों और बर्फ से ढंके पहाड़।
उसी कमरे में रुके थे जिसमे कभी रुका करते थे।परदा हटा कर बाहर देखा।
चांदनी में पहाड़ साक्षात “खड़े महादेव की भांति दिखते..!
नूतन सो रही थी,थकी होने के
कारण गाढ़ी नीद।
दिल धक से रह गया सामने सोफे पर कौन है।
साल ओढ़े बैठा है।
साफ बाहर से नियान लाईट की रोशनी सोफे पर पड़ रही है।
एक दम साफ़-साफ़ देखा
सावन जी!
आश्चर्य,डर,दर्द मिश्रित भाव!!!
डर के मारे साँसे उखड़ने लगी।
सीने में तेज दर्द,हाथ नही उठ रहा
माथे पर पसीना,आवाज क्यों नही निकल रही।
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भूल गये???
एक गहरे-उजालों से भरी उदास ठंढक भरी रात!
सावन जी बोले “डरो मत!
मिलने का बहुत मन कर रहा था।बहुत सारी दैवीय-आत्मिक शक्तियों की मदद से ही तुम्हे “दिख,पा रहा हूँ।तुम्हारी “आतंरिक आकर्षण शक्ति,मुझे खींच रही थी नही तो ‘केन्द्रित,हो सामने आ पाना संभव नही होता।यह पहली और आख़िरी बार है,बहुत जरूरी है इस लिए डर पर काबू पाओ भदेस जी!!,,
वह सम्हल गए।
समस्या की जड़ पकड़ लिए।
आओ चलो बाहर चलते हैं
“नूतन सो रही है उसे सोने दो।
हमारी बातचीत से नीद डिस्टर्ब हो जाएगी।,
दोनों लोग बाहर निकल गये।
लान में..!
क्या हो गया था।
कुछ नही “मुरुगन, अलबरूनी को पैसे की हवस लग गयी थी!
और मुझे मरना पड़ा!,
पैसे???
“हाँ…तुम नही समझ सकते।
हमने खरबों-खरब बटोरे थे।
मैं ने इसके लिए कोई प्रयास नही किया था “ये,खुद आते हैं।उस पद पर पहुचने के बाद,यह दस्तूर है।,
कितना??
“जितने की जरूरत कभी नही पड़ती,
उतना जितने में देश की तकदीर बदल सकती है।,,
अलबरूनी का पूरा एम्पायर उसी पैसे से खड़ा है।
तुम्हे याद है न मैं स्वदेशी का समर्थक था।इमानदारी और चरित्र पर गायन-वादन दोनों करता था।
हा,हा,हा,हा।
शुरू में मैं पैसे भी नही चाहता था,बड़ा विरोध किया जब लगा कि यह मैं नही लूंगा तो कोई न कोई ले ही लेगा!मैं नही तो हाई-फैमिली,मुझसे पैसा भी जाएगा और पद भी,तो मैं ने भी लेना शुरू किया।
देशो में ..साहबों ने ऐसा ही समझाया था।
“साहबों,के उच्चारण के समय उनकी आवाज अजीब हो गयी।
कहाँ गये पैसे???
“नाम न लो वे कहीं नही जाते!!
जाता आदमी हैं।,
अलबरूनी मेरा करीबी था।आज वह सबका करीबी है। वैसे करीबी तो वह अपने बाप का भी नही था।,
“साहब ख़ास थे।ख़ास तो वह खुद के भी नही होते,
विदेशी बैंको में जमा करना।
“देश,का पैसा बाहर भेजना मुझे ठीक न लगा।
अलबरूनी के साथ डील की।
विभिन्न व्यवसायों,निर्माणक कार्यो में लगाना शुरू किया गया।
“अलबरूनी एम्पायर का 91 प्रतिशत हिस्सा मेरा है।सोचा था “चुनावी राजनीति, के काम आएगा।इसी के सहारे मुख्य-कुर्सी हासिल करके भ्रष्टाचार खत्म कर दूंगा,अपनी वह नीतियाँ लागू करेंगे जिसकी हम चर्चा करते थे।
यह राष्ट्र वैभव सम्पन्न बनेगा।,,
“किसी को पता है?,
“साहब अलबरूनी और करीबी स्टाफ को।,
“पत्नी को क्यों नही बताया?
“”उससे मतलब ही कब रहा!
हम केवल साथ-साथ रहे थे,और सामाजिक औपचारिकताएं निभाते थे,मेरे राजनीतिक और व्यावसायिक विषयों में उनको कभी मतलब नही रहा।,
“क्या यह एक हत्या थी?,
“भदेस ने डरते-डरते पूँछा,,
“हाँ!!
“उनकी तरफ देखने की हिम्मत नही हुई..,
कैसे??
कभी हमने-तुमने पढ़ा था याद है न धन की तीन ही गत होती हैं। दान,भोग और नाश, जब “वेद,महा भागवत,पुराण,शास्त्र आदि ग्रन्थ लिखा गया था तब राज्य,उद्योगीकरण और उदारीकरण,वैश्वीकरण,और ऐसे मंत्रालय,विभाग, और साहबों का एशोसियेशन नही होता था।इतने बड़े “धनराशियों, के बारे में नही पता था,न ही वे या सामान्य जन कल्पना कर सकते हैं।इसलिए धन की चौथी “गत,के बारें में कुछ नही लिखा गया है।
चौथी गत होती है “विनाश,!!
यह धनराशियाँ अपने साथ व्यवस्था,मनुष्य,जीवन-जगत,प्रकृति,और लोक के विनाश के लिए जन्मती हैं।
बेवकूफ!! इतनी बड़ी रकम के लिए कोई भी पागल हो सकता है।वह जो करता है “विनाश, होता जाता है।…
…..
….
“”साहब के असली फितरती सोच को मैं जीवन भर न पहचान सका।अलबरूनी में इतनी हिम्मत कभी न थी।मुरुगन ही पैसे की देख-रेख करता था।साहब के कहने से मैं ने एम्पायर में मुरुगन को कंट्रोलर बना दिया था।उन्होंने मुरुगन का दिमाग गंदा करना शुरू कर दिया।
गोपाल के लिए क्या नही किया!
वह राष्ट्र्रीय राजनीति में जाना चाहता था और उसे डर था मेरे रहते वह प्रदेश की राजनीति से कभी बाहर नही निकल पायेगा।साहब और अलबरूनी ने उसकी महत्वाकान्क्षा को उभारना शुरू कर दिया।
मुरुगन को लगा की “ससुर,के जीते जी मुझे कुछ मिलना नही सब कुछ उसके बेटो का है,उसे यह भी पता चल चुका था “बिटिया, मेरी सगी बेटी नही है,
छोटे-बड़े दिमाग के हल्के थे मैं ने कभी एम्पायर के साथ अपने असली रिश्ते की भनक नही लगने दी।इसका अंदाजा भी मुरुगन को था।यही “गोपनीयता, नीयत खराब होने के साथ मेरी मौत की वजह बनी!!
“आपने भागने को क्यों कहा,???
“”मोह इसके अलावा क्या हो सकता है?
अनुभव की वजह से “सधे हाथो की गोली,, से मैं तुरंत सब समझ गया।
बचना मुश्किल है।
बड़े और ताकतवर लोग इन्वाल्व है।
सब बिकेंगे और मेरा परिवार मार दिया जाएगा।
मुरुगन भी!!
बड़ी ‘रकमें, अपना निर्णायक और नियंता खुद होती हैं।वे अपना मालिक भी खुद चुनती हैं।
सारी शक्तियां,ग्रह,नक्षत्र और तारे उनके लिए काम करती हैं।
इतनी बड़ी रकम और करीबी लोगो का इन्वाल्वमेंट!!
सब मारे जायेंगे।
चूक कहाँ थी यह भी!
समझ गया था।
अब कुछ नही हो सकता था।
मरने के बाद “अपयश, की गाथा नही चाहता था।
साहब और टीम पूरी तरह प्लांड थे।
संगठन बदनामी न लेता,इस-लिए जाँच आदि पर जोर नही दिया।
‘लूट का दस्तूर,चालू है उसको डिस्क्लोज करके वर्तमान सरकार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगी??,,
सब छुपाने में लगेंगे।
इसलिए उस मूर्ख से कहा भागो और जान बचाओ नही माना।
अब अशरीरी बना किसी बिल्डिंग के आस-पास बेचैन मडराता रहता है।शायद इसीलिए घुटे हुए नेता विदेशी बैंको में रखते हैं।,,
वह पत्थर की शान्ति ओढे थे!!”
भदेस सुन रहे हैं।
इससे निकलने का कोई उपाय है??
“”नही है।
तुम्हारे ही बनाये नियम से तुम बंधे हो।
इसे मैं ने ही चुना था भोगना तो पड़ेगा।
“”लाख साधना करो।
माया बड़ी ठगिनी है!कितना भी सजग रहो लपेट ही लेती है।
राजयोगी होना कठिन है।भदेसजी वह असम्भव है।
“उनकी आवाज कूंए से आ रही है क्या?
किधर देख रहे हो सावन जी?
“वो देखो तुंगनाथ मैं वहां अब नही जा सकता,।
जहां जहां तुम जा रहे हो वहीं तुम्हारे प्रश्नों की शक्ति से बंधा मैं चल पा रहा हूँ।तुम्हारी शक्तिशाली आग!!
“सतगुण छूट जाता है, रज-तम बुरी तरह लपेट लेता है।वह चेतना को अपने साथ जोड़ लेता है।
कामनाएं बाँध लेती है।मैं सत्ता की कामना से बंध गया।
कामनाएं इतनी गाढ़ी होती हैं कि असली चीज से मन इधर उधर डोलता रहटा है।
मुक्ति भी कामना ही होती है।
उथली एकांगी साधना,
जैसे ही आप फ़ोकसड होते हैं प्राप्तिया भी केन्द्रित होने लगती है।
जो भी कामना उत्पन्न होती है,
आप का एकाउंटट आप की सब इच्छाए कलेक्ट कर उलझा देता है।
हालाकि किसी न किसी देंह में वह पूरी भी होंगी किन्तु उलझाये रखेगा।उसी में फसे रहेंगे।
भदेस जी लोककल्याण भी कामना है वह रजोगुण में पटक देता है।
अब मैं एक अशरीरी प्रेत हूँ!युगों तक मुझे और मेरी तरह कइयो को भटकते हुए राज-दुर्दशा देखनी है।
तुम्हारे साथ की गयी साधनाओ की वजह से मैं “स्मृति-लोप प्रेत,, नही बना!
तुम्हे कुछ राज बताने थे न!……बाकी नेताओ के प्रेत तो अपनी “हवस और लालसाओं की आग,, में दहकते रोते-कलपते रहते हैं।
महामाया की रचना में “ला आफ कर्म,, कोई नही बदल सकता.कोई नही तोड़ सकता.. यही भोग है जिससे कोई नही बचा सकता।
“””कर्मो के नियम के अलावा सबकुछ परिवर्तनशील है।वह अटल है और स्थिर भी।
मनुष्य का
जन्म और पुनर्जन्म
दोनों ही उसके कर्म और
कर्मफल पर आधारित होते है
जन्म से मृत्यु तक
जब तक यह शरीर है
तो तब तक जीवन है
और जीवन है तो
कुछ न कुछ शारीरिक या मानसिक
कर्म वह करता ही रहता है
कर्म किये बिना तो एक क्षण को भी रह पाना असम्भव है
मनुष्य जीवन तो
कर्म करने के लिए ही मिला है
यह बात अलग है कि
वह कर्म सतकर्म करे या फिर कुकर्म..।
विज्ञान का सिद्घांत
हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है ।
हर कार्य का परिणाम होता है,
उसी प्रकार हर कर्म का कर्मफल होता है।
सारा विश्व
निश्चित नियम व सिद्घान्तों पर चल रहा है।
महामाया के इस जगत में
अराजकता नही वरन
न्याय और अनुशासन का ही साम्राज्य है।
उसने मनुष्य को लोकहित के कर्म को करते हुए 100 वर्ष तक जीवित रहने का व्यवस्था की है।
पर मनुष्य लोकहित को भूल कर
अपने स्वार्थ व् अहंकार की पूर्ति की दिशा में अपने कर्मो को नियोजित कर रहा है।
इस नियम के अनुसार इस विकारग्रस्त
पापकर्म का फल भोगते हुए दारुण दुःख प्राप्त करता है। दुःख उत्पन करने वाले कर्मफल उसी प्रकार अपना मालिक ढूंढ लेते हैं जैसे उत्पन्न “सुख,पुण्य रूप में खुद ब खुद कर्ता में ही पहुच जाते है और उसे सुखी करते हैं।
सत्ता के शिखर पर पहुँच कर सोचते हैं हम “कर्मदंडो,से बच लेंगे।
इन नियमो को किसी भी भांति बदला नही जा सकता।
कोई देवी,देवता,महाशक्ति तुम्हारे कर्मफल से अलग नही कर सकता।
कितने पूजन,हवन,अर्चन,दान,साधना,सेवा आदि कर लो वह अलग से कलेक्ट होगा लेकिन पाप कर्मो को किसी भी भांति नष्ट न कर सकेगा।
“कर्मों से जिस प्रकार का सुख मोंह,राग-द्वेष आदि उत्पन्न किया होगा उसी प्रकार का दुःख भी उत्पन्न होता है।दुःख उत्पन्न करने वाली “आत्मा चेतना, जितनी बड़ी होगी भोगकाल उतना बड़ा होता है।
वह तुम्हे बाँध लेता है।
तब तुमसे उत्पन्न दुःख समाप्त नही हो जाता है।
भदेस जी,कुछ काल के लिए बड़े पद पर पहुंचा पदधारी यह नही जानता कि नाश हो जाने तक 120 गुनी पीड़ा के साथ लगातार सैकड़ो साल तक “प्रेत,रूप में मंडराना पड़ता है।
अपने उत्पन्न धन और परिजनों का विनाश तो अपने सामने देखते ही है
वह सारी पीड़ा पल-पल भुगतनी पड़ती है जो हमने अपने “सुखो,की खातिर देश-दुनिया में उपजाई थी।
उससे भी पीड़ादाई यह है वह स्मरण बना रहता है।
सामान्यजन पैदा होते हैं कुकर्म का फल थोड़े काल तक भुगतते है और नया शरीर पाकर अपने कर्मफल दुसरे तरह भोगने चले जातें हैं क्योंकि परिमात्रा और संख्या इक्की-दुक्की या कम होती है।
लेकिन प्रभुसत्ता धारी और राजनेता वही चीजें बहुत लम्बे काल तक भोगते है,उसका कारण यह है उनकी जिम्मेदारियां और दायरे बहुत बड़े होते है,करोड़ो करोड़ लोग उनसे पीड़ित और प्रभावित।उस पीड़ा का वर्णन असम्भव है।यहाँ (देह छूटने के उस पार) केवल नेता,मन्त्र्री,प्रधानमन्त्र्री ही नही है हजारों लाखो राजा,सम्राट,बादशाह,नबाब,सेनाधिकारी,सत्ताधिकारी,अफसर,बाबू,
पुलिसवाले,जज,वकील,डाक्टर,कुलपति,मठपति,मौलाना,पादरी,
धर्माचार्य,उद्योगपति,
कथाकार,
प्रोफेसर,
लेखक,साहित्यकार,पत्रकार,फिल्मकार,साहित्य कार भी हैं।खुद के सामने ही बड़ी भयानक दुर्दशा भोग रहे हैं।,ये समझ लो जिसने भी अपने दैहिक जीवनकाल में सार्वजनिक जीवन का सुख लिया और उसके प्रति “निरासक्त भाव से इमानदार न रहे वे सब के सब यहाँ भयानक दंड में मुझे दीखते हैं।अब उन्ही में मैं भी हूँ ,,,
भदेस ने पूछा …ऐसे तो डर के कारण कोई सत्ता-धारी ही नही बनना चाहेगा फिर व्यवस्था कैसे चलेगी??
“””इसीलिए तो यह नियम अदृष्य हैं।किताबों और महापुरुषों के सत्संग से आता है किन्तु सत्ता का अहंकार इन सबसे दूर कर देता है।
तमाम पुण्यकर्मो को इकट्ठा करके जीव कल्याण करने के लिए “लोक दायित्व, मिलता है।मनुष्य भटक जाता है।
राग-द्वेष,मोह से मुक्त अनासक्त भाव व् लोक कल्याण की भावना से ही “राजकर्म,या सार्वजनिक जीवन कर्म करना चाहिए।राजा जनक और भगवान् राम,के आदर्श हमेंशा सम्मुख रखकर राजनीति में उतरना चाहिए अन्यथा न उतरना ही ठीक रहेगा।
मैं ने इसे चुना है तो मैं ही इसे भुगतुंगा।,,..,,,,
सुन्न…
सन्नाटा…”
चुप्पी।
“”बोलिए आप यह क्या बोल रहे सावन जी!!!,

साहेब-29

संयोग..????
साल भर की बातें सोच-सोच वह सो नही पाते।
सावन का फोन देर रात में आता था।
उनकी आँखे टेंशन से तन जाती हैं।
फिर नीद आये भी तो कैसे??
यह सब हो क्या रहा है।
वह अपनी बेचनी का कारण खोजते हैं समझ नही पाते।
अंदर स्याह अँधेरा कुछ नया देखने-समझने नही देता।
उसके बाद की घटनाओ पर तो किसी का ध्यान ही नही गया…!!
श्रीमती जी से मिलने गये थे दुःख से “पथरा, गईं थी।
वह एक “वाक्य,भी नही बोल पाती थी।
उनका मुख्य बाडीगार्ड “जमघा,25 साल से छाया की तरह उनका सुरक्षा-प्रहरी था,
उसको जाने कौन सी बीमारी लग गई थी।
सदा से अल्पबुद्धि था किन्तु उनके एक इशारे पर किसी को भी फाड़ देता…छ: फिट से अधिक उंचाई वाला अचूक निशाने वाला”जमघा, घर के अंदर भी पञ्च फयरा लिए “सावन जी,के पीछे तना रहता,दस आदमी मिल कर भी उसे हरा नही सकते थे।मच्छर भी बिना उसकी अनुमति के कान में नही गुनगुना सकता।इसमें क्या सच्चाई है कुछ कह नही सकते!!लेकिन लोग उसके बारे में बताते थे एक बार पचीस “डकैतो,,के एक गिरोह को अकेले मार गिराया था,किसी ‘राजनीतिक विरोधी, ने चुनाव के दौरान सावन जी को मारने भेजा था।
जमघा उनका वफादार,राजदार ऐसा सिपाहसालार था कि सावन जी बोले अपना गला काट लो..वह गला काटने को तैयार…नेता जी के लिए उसने शादी व्याह कुछ न किया…!
गाँव पर छोटे भाई वगैरह थे।बहनों की शादियां..छोटे भाईयों की नौकरियां सब सावन जी की कृपा थी।
पैसे वगैरह भेज देता लेकिन इनको पल भर न छोड़े।
लोग उसे छाया कहते थे।
सावन जी के कई करीबी आपस में मजाक करते
“…जमघा के होते हुये जाने कैसे इनको बाल-बच्चे पैदा हो गये!!,
एक बार तो किसी बड़े नेता को ही ठोक दिया था।
वह थोडा पास चला गया था न!
उठा कर दस फीट दूर फेंक दिया था।
उस “अँधेरी सुबह, के
चार दिन पहले किसी डाक्टर से कोई टानिक ले कर आया था…फिर उसका मानसिक संतुलन बिगड़ता गया एक कमरे में बांध कर रखना पड़ता।
उस दिन कमरे में क्या बंद हुआ आज तक जंजीर से बाँध कर रखना पड़ता है।
उसकी चीखने की आवाज बंगले की शांति भंग करती है।
उनके मरने के दो-महीने बाद एकाउंटेट कम मैनेजर पीए “अनीस कुमार मिश्रा, जो 22 साल से जुड़े थे अचानक बुरी तरह बीमार पड़े,बहुत इलाज हुआ किन्त “पेट के कीड़ो,, की वजह से गुजर गये!
20 साल से उनका “जनसम्पर्क देखते थे,आपस में गहरे दोस्त मेंहरा और जौकी हिरोइन की ओवर-डोज से मरे,..!
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में आदी बताया गया था।
उनके घर-वालों ने भी बचाने की बहुत कोशिश की किन्तु होनी को जो मंजूर है कौन बदल सकता है??
शुरुआत से ही “मीडिया और लेखन, से सम्बन्धित काम देखने वाला
“आदिल,घरेलू झगड़े में मार दिया गया।
पट्टीदारो से रंजिश थी।
“आदिल, से कई मुकदमें चल रहे थे।जमीन के उस बड़े प्लाट के झगडे में उसके चचेरे भाइयों ने मार दिया था।
पुलिस की फाइनल रिपोर्ट यही थी।
शिवनी 16 साल से सावन जी की रिसेप्श्निस्ट कम आफिस इंचार्ज थी।ये तो छोटे मोटे लोग हैं ये खबर नही है
अगर बनी भी तो “सिंगल कालम, प्रदेश पेज पर।
“वह झरने से फिसल गयी और जाने कहाँ बह गयी।आज तक उसकी लाश बरामद नही हुई।
…..साल भर की “खबरे, एक साथ सुनकर भदेस
को अजीब सा लगा।
आदिल की खबर के अलावा किसी भी मौत की खबर किसी अखबार में नही छपी थीं।स्वाभाविक मौते थी न!सब संयोग है।
उन्हें ‘बड़े,, ने बताई थी।नशे में था।
“बड़े, को किसी से मतलब नही था।
वह गांजे में मस्त माँ के पास छाया बना रहता।
भदेस उसे देख बहुत दूखी हुए थे।
हां!छोटे सरकार हर मौत पर उस घर तक गये थे।उत्तराधिकारी थे न।
और कल दोपहर “मुरुगन, “शार्ट टेम्पर्ड आदमी,बेचारे!
अचानक ब्रेन हैमरेज हो गया,कोमा में रहे फिर चल बसे…..
बड़े एम्पायर का सपना!!!