पैरासाइट

हमारे गाँव में एक बरगद का पेड़ हैं। शुद्ध बरगद का पेड़, शुद्ध इसीलिए बोल रहा हूँ कि क्योंकि कुछ साल पहले वो पूर्णतः बरगद नहीं था साथ में महुआ का पेड़ संलग्न था लेकिन अब महुआ का पेड़ बरगद में पूरी तरह से विलीन हो चुका हैं। जब मैं दस साल का था तब बरगद और महुआ के पेड़ आधे-आधे हुआ करते थे । एक दिन उसी पेड़ की छाँव में बैठे-बैठे पापा से आश्चर्यवश पूंछा कि ये पेड़ थोडा अजीब नहीं हैं, एकदम आधा-आधा , एक तरफ बरगद का तो दूसरी तरफ महुआ का ? या तो इसे पूरा बरगद का होना चाहिए था या फिर पूरा महुआ का। आधा-आधा कैसे,क्या कोई आधे-आधे वाले बीज भी होते हैं ??

तो पापा ने बताया – नहीं बेटा,ये आधे-वाधे वाले कोई बीज नहीं होते । बीज एक ही का होता हैं या तो बरगद का या फिर महुआ का । रही बात इस पेड़ के आधा-आधा होने की तो 25-30 साल पहले ये सिर्फ महुआ का पेड़ हुआ करता था। ये ऊपर तना देख रहे हो ना जहाँ से बरगद अलग और महुआ अलग दिखाई दे रहा हैं वहाँ पे किसी चिड़ियाँ के बीट से बरगद का पौधा ऊगा और वो पौधा इसी महुआ के भरोसे पलता-बढ़ता गया ।
फिर इसके लट निकलने शुरू हो गए और वो लट यहाँ ज़मीन में धँसने लगे और महुए के तने से लिपटने लगे और इस महुए के तने को धीरे-धीरे ढँकने लगे या यूँ कहे कि इसे लीलना शुरू कर दिया। अभी ये इसे आधा ही लील पाया हैं,हो सकता है आगे 20-25 सालों में ये इसे पूरा निगल जाए और लोगों को पता भी ना चले कि कभी यहाँ महुआ का भी पेड़ हुआ करता था ।

और बिल्कुल हुआ ऐसा ही। अब वहाँ महुआ के पेड़ का नामोनिशां नहीं हैं। अब वो शुद्ध बरगद का पेड़ बन चूका हैं,और धीरे-धीरे विशाल भी होता जा रहा हैं। कभी वहाँ एक तरफ़ महुआ के फूल और कौड़ी(फल) गिरा करते थे तो दूसरी तरफ़ बरगद के फल। लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ बरगद के ही फल गिरते है । हाँ चिड़ियों का रैनबसेरा वही है जहाँ कभी महुआ हुआ करता था। और उन चिड़ियों के बिष्ठों से ज़रूर बरगद के ऊपर दो-चार छोटे-छोटे पौधें(बरगद के नहीं) हैं,लेकिन इतने सक्षम नहीं कि वो बरगद को अक़्वायर कर सके। बस बरगद के ऊपर निर्भर हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि मैं ये बरगद और महुआ की बात क्यों बता रहा हूँ? बता इसलिए रहा हूँ कि इसका हमसे, आपसे और पुरे भारतवर्ष से सीधा-सीधा संबंध हैं।यहाँ बरगद रूपी मुसलमान हैं और महुआ रूपी हिन्दू।1400 साल पहले इस्लाम का बीजारोपण हुआ फिर यहाँ सींचता गया फलता-फूलता बढ़ता गया ।इसकी जड़े ज़मीन में धंसती गई और आकार बढ़ता गया और बढ़ता ही जा रहा हैं। कहने में ज़रा भी अतिश्योक्ति नहीं हो रही कि यदि इनकी टहनियों से निकलती लटाओं को ज़मीन में धंसने से रोका नहीं गया तो ये पुरे के पुरे महुआ को कुछेक वर्षों में लील जायेगा। और आने वाली पीढ़ीयां कभी जान ना पायेगी की यहाँ कभी महुआ का पेड़ हुआ करता था। इराक,ईरान,अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश की जमीन यह इस्लाम धीरे-धीरे हिंदुओं से छीन कर निगल लिया है।अब बरगद अपना आकार बढा रहा है।वह कश्मीर केरल बंगाल भी लीलने के करीब है। महुआ को बचाने का रास्ता खोजना चाहिए।

जो कोई भी मुसलमान ये कहते हुए दिखाई दे कि हमसब भाई-भाई हैं, गंगा-जमुनी तहज़ीब हैं, आदि आदि फलाना ढिमकाना , यकीन मानिए ये अभी आधी-आधी वाली फेज में हैं मतलब एक तरफ़ महुआ का फल गिर रहा हैं तो दूसरी तरफ़ बरगद का। लेकिन बरगद उसकी विकास को धीमा कर अपनी विकास दिन दुनी रात चौगुनी कर रही हैं और महुआ उसमे विलीन होता जा रहा हैं। जो कोई कहता है कि अरब मुल्कों में कितने ही हिन्दू काम कर रहे हैं, रोजी-रोटी कमा रहे हैं , परिवार पाल रहे हैं और ख़ुशी-ख़ुशी रह रहे हैं, उन्हें कोई समस्या नहीं होती वहाँ पे। तो सुनो… वें लोग वटवृक्ष बन जाने के पश्चात उसके ऊपर उगे छोटे-मोटे पौधें है, जिनसे विशाल वटवृक्ष बन चुके बरगद को कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं हैं। अभी भी वक़्त हैं,क्योंकि भूतकाल में हमनें इनकी जड़ों को ज़मीन में धँसने दिया हैं परिणामतः वें अपनी अलग बरगद की पहचान लिए हमसे कट गए। लेकिन उसकी कुछ टहनियाँ यहाँ बची रह गई और आज पुनः उन टहनियों से जड़ें निकलना प्रारंभ हो गया है व पुनः ज़मीन में धंसने को लालायित। कृपया इन्हें ज़मीन में ना धंसने दें।

दुनियां की सबसे प्राचीन पशु चिकित्सा पुस्तक!

शालिहोत्र संहिता घोड़ों की देखभाल और प्रबंधन पर एक बड़ा ग्रंथ है जिसमें संस्कृत में लगभग 12,000 श्लोक हैं जो ऋषि शालिहोत्र (2350 ईसा पूर्व) का प्रमुख कार्य है जो एक ऋषि पुत्र थे।

उन्हें शालिहोत्र संहिता की रचना के लिए जाना जाता है, जिसका श्रेय आधुनिक पशु चिकित्सा विज्ञान को दिया जा सकता है। शालिहोत्र संहिता आयुर्वेद पर आधारित थी और इसमें औषधीय पौधों का उपयोग करके रोगों के उपचार का व्यापक रूप से दस्तावेजीकरण किया गया था।पशु चिकित्सा का दायरा व्यापक है, जिसमें पालतू और जंगली दोनों तरह की सभी पशु प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिसमें विभिन्न प्रकार की स्थितियां शामिल हैं जो विभिन्न प्रजातियों को प्रभावित कर सकती हैं।ऋषि शालिहोत्र एक पशुचिकित्सक और लेखक थे। उनका काम, शालिहोत्र संहिता, पशु चिकित्सा (हिप्पियाट्रिक्स) पर एक प्रारंभिक भारतीय ग्रंथ है, जो संभवतः तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में लिखा गया था।

शालिहोत्र हयघोष नामक ऋषि के पुत्र थे। उन्हें भारतीय परंपरा में पशु चिकित्सा विज्ञान का संस्थापक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वह श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश में गोंडा और बहराइच जिलों की सीमा पर आधुनिक सहेत-महेट) में रहते थे।पशु चिकित्सा विज्ञान ज़ूनोटिक रोग (अमानवीय जानवरों से मनुष्यों में संचारित संक्रामक रोग) की निगरानी और नियंत्रण, खाद्य सुरक्षा और चिकित्सा अनुसंधान के माध्यम से मानव अनुप्रयोगों के माध्यम से मानव स्वास्थ्य में मदद करता है।वे पशुधन स्वास्थ्य निगरानी और उपचार के माध्यम से खाद्य आपूर्ति बनाए रखने में भी मदद करते हैं, और पालतू जानवरों को स्वस्थ और लंबे समय तक जीवित रखकर मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने में भी मदद करते हैं।

पशु चिकित्सा वैज्ञानिक अक्सर काम के प्रकार के आधार पर महामारी विज्ञानियों और अन्य स्वास्थ्य या प्राकृतिक वैज्ञानिकों के साथ सहयोग करते हैं।शालिहोत्र संहिता का ईरानी, अरबी, तिब्बती और अंग्रेजी और सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इस कार्य में घोड़े और हाथी की शारीरिक रचना, शरीर विज्ञान, शल्य चिकित्सा और रोगों का उनके उपचारात्मक और निवारक उपायों के साथ वर्णन किया गया है।इसने घोड़ों की विभिन्न नस्लों की शारीरिक संरचनाओं के बारे में विस्तार से बताया, और उन संरचनात्मक विवरणों की पहचान की जिनके द्वारा कोई घोड़े की उम्र निर्धारित कर सकता है। दो अन्य रचनाएँ, अर्थात् “अश्व-प्रश्न” और “अस्व-लक्षण शास्त्र” का श्रेय भी शालिहोत्र को दिया जाता है।मुनि पलकाप्य ने हस्ति आयुर्वेद लिखा, जिसमें हाथी चिकित्सा के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।

इस पुस्तक में हाथियों की शारीरिक रचना सहित चार खंड और 152 अध्याय हैं।महाभारत काल के दौरान, अश्व-चिकित्सा के लेखक नकुल को अश्व विशेषज्ञ माना जाता था, जबकि सहदेव पशु प्रबंधन के विशेषज्ञ थे। प्राचीन विश्व के कभी न ख़त्म होने वाले युद्ध में घोड़े और हाथी महत्वपूर्ण संपत्ति थे।इंसानों का इलाज करने वाले चिकित्सकों को जानवरों की देखभाल का भी प्रशिक्षण दिया जाता था। चरक, सुश्रुत और हरिता जैसे प्राचीन भारतीय चिकित्सा ग्रंथों में रोगग्रस्त, साथ ही स्वस्थ जानवरों की देखभाल के बारे में अध्याय या संदर्भ हैं।शालिहोत्र और ऋषि अग्निवेश एक ही शिक्षक के शिष्य हैं; परंपरा के अनुसार, भारद्वाज के आयुर्वेद, जीवन का विज्ञान, को पहली बार अग्निवेश द्वारा अपनी पुस्तक अग्निवेश तंत्र में और बाद में चरक (चरक संहिता, चिकित्सक चरक का विश्वकोश) में पाठ के रूप में प्रस्तुत किया गया था।

कुलदेवी,कुलदेवता।

कुलदेवी का अर्थ जानते हो?
कुलदेवी का अर्थ है उन समस्त लोगों की देवी, जिनका वंश वृक्ष, हजारों वर्षों में बढ़ते बढ़ते इतना बढ़ गया कि उसको जात या जाति कहा जाने लगा।

ब्रिटिश के आने के पहले जाति का अर्थ इतना ही था। हर जाति की अपनी विशेष संस्कृति और परंपरा होती थी। हर जाति के आंतरिक कलह और विवाद को उसी जाति के चुने हुए सम्मानित बुजुर्ग निपटाते थे।

जिसको इस परंपरा को देखना समझना हो वह 1807 में फ़्रांसिस हैमिलटन बुचनान के दक्षिण भारत के सर्वे के रिपोर्ट से पढ़ सकता है। लगभग 1500 पेज में लिखी हुई यह पुस्तक आज भी उपलब्ध है – 3 वॉल्यूम में।

जातियां किसी धर्म पीठ और राजसत्ता से जुड़ी हो सकती थीं, लेकिन वे उनसे शासित नही होती थी।
सामाजिक व्यवस्था के तहत आपसी सम्मान हेतु जो भी ऊंच नीच हो इन जातियों में, लेकिन कोई सरकारी परवाना नही था इन्हें ऊंचा नीचा घोसित करने हेतु।
यह वर्ण व्यवस्था के अंदर आती थीं।
व्यवस्था का अर्थ है – मानवीय ज्ञान और स्किल के अनुसार उनका विभाजन।

  • ब्राम्हण – मेधाशक्ति
  • क्षत्रिय – रक्षाशक्ति
  • वैश्य – वाणिज्य शक्ति
  • शूद्र – श्रमशक्ति और शिल्प शक्ति।
    सभी वर्णों में इस तरह सैकङो कुल और जातियां थी ।
    उदाहरण स्वरूप मेरी जाति और कुल हुवा – सूर्यवंश।
    ऐसे ही सबका था।
    1807 तक ब्रिटिश दस्युवों को अभी हिन्दू धर्म की खामियां निकाल कर ईसाइयत को श्रेष्ठ प्रमाणित करने का न कोई अवसर मिला था, और न ही आवश्यकता थी।

अभी तो उन्हें भारत पर कब्जा करने और लूटने से ही फुर्सत नहीं थी।

लेकिन एक बात सत्य है कि इस व्यववस्था के रहते – ईसाइयत का प्रवेश हिन्दू धर्म मे प्रवेश संभव नही हो सकता था। इस्लाम के प्रवेश को भी इसी व्यवस्था ने रोका था।

लेकिन आने वाले समय मे ऐसा अवसर आएगा जब उन्हें ऐसा लगेगा कि यह व्यवस्था ईसाइयत के प्रसार में बाधक है।
वही हुवा।
1859 में #आर्यन_अफवाह का रचयिता – मैक्समुलर लिखता है “जाति ( Caste) …….. धर्म परिवर्तन में सबसे बड़ी बाधा है। लेकिन यह किसी व्यकि नही वरन पूरे समुदाय ( जाति या कुल ) के धर्म परिवर्तन का सबसे शक्तिशाली इंजन की तरह काम करेगा”।
( रेफ – ब्रेकिंग इंडिया : राजीव मल्होत्रा )

लेकिन अपने आप तो कुछ होगा नहीं ?
कुछ करना पड़ेगा।
और उन्होंने किया।

और “एलियंस और स्टूपिड प्रोटागोनिस्ट्स” ने उनके किये गए कृत्य को संविधान में जोड़ा।

बुचनान ने कास्ट/ ट्रेड की जो लिस्ट बनायी दक्षिण भारत की उसमे एक भी कास्ट को उसने अछूत नही घोसित किया। न पूरे ग्रन्थ में अछूत शब्द का उल्लेख है।

लेकिन उसी के वंशजों ने 1936 में 429 #अछूत_जातियां खोज निकाली। बहुत सारे तो नहीं पेरियार और अम्बेडकर जैसे मूर्ख पिछलग्गुओं ने उनकी मदद किया इस पुनीत कार्य मे।

कैसे बनी इतनी अछूत जातियां एक शताब्दी में?
इसका उत्तर कौन देगा ?

आप इस पुस्तक को पढ़ सकते हैं।
गूगल आर्काइव से मैंने चार वर्ष पूर्व डाउनलोड किया था।

CoronaVirus ने पूरी दुनिया को अछूतपन की प्रैक्टिस करने को बाध्य कर दिया है।

हम इसको #शौच या #सैनिटेशन कहते थे। लुटेरों के लूटने के बाद बेरोजगार और दरिद्र हिंदुओं को संक्रामक रोगों से पीड़ित होकर मरने के लिए मजबूर कर दिया गया – 1850 के बाद। उन संकामक रोगों से बचने और उन बीमारियों के प्रसार से बचने के लिए हिंदुओं ने शौच का व्यवहार अपनाने का निर्णय लिया।

उन्होंने उसे #Untouchability कहा। उनके अपने कारण थे – उन लुटेरे ईसाइयों को हिंदुत्व से श्रेष्ठ प्रमाणित करना था। अपनी लूट अत्याचार और उसके कारण भारत पर आरोपित नरसंहार से अपना चेहरा ढकना था। हिन्दुओ को बांटना था। और ईसाइयत के प्रसार के लिए पृष्टभूमि तैयार करना था।

आज उसे भारत सरकार, WHO और विश्व की सरकारें #Containment, Isolation, Quarantine, आदि आदि नाम से व्यवहार में ला रहे हैं।

निशाने पर हिंदू चिकित्सा पद्धतियां

समझ गए ना!आखिर सुप्रीम कोर्ट जो मांग रहा है दे क्यों नही देते?

सभी बड़े ड्रग माफियाओं की तरह,सभी एलोपैथिक दवा निर्माताओं की तरह सुप्रीम कोर्ट के जजों के आदेशों को मान करके वे भी आसानी से अंग्रेजी दवा कंपनियों के तर्ज पर मनमाने प्रचार का अधिकार भी हासिल कर सकेंगे। उन्हे तत्काल सुप्रीम कोर्ट की बात मान लेनी चाहिए।ज्यादा जिद नहीं करना चाहिए।भैया यह इस देश में एक कानून बन चुका है, उसका सम्मान करना चाहिए। पतंजलि वाले भी अंग्रेजी दवा कंपनियों की तरह ही मनमाने,भ्रामक,गलत दावे वाले विज्ञापन का अधिकार चाहते हैं।

उन्हे मालूम ही नहीं है एलोपैथिक ड्रग कार्टेल विश्व भर में 8 लाख करोड़ डालर का बाजार चलाता है। वे दुनियां भर में सरकारें बनवाते गिरवाते हैं।वे जो चाहे दे,ले,कर सकते है। पिद्दी भर की पतंजलि हर साल 2 लाख से अधिक लोगो को नकली दवाओं से मार देने वाले ड्रग कार्टेल से मुकाबला करने चली है।कहां भारी भरकम ईसाइयों का बाजार सिस्टम और कहां हिंदुओं का छोटा मोटा आयुर्वेदिक बाजार! बस आप जान लीजिए सुप्रीम कोर्ट को भारत के जनता के स्वास्थ्य की घनघोर चिंता है।10 करोड़ से अधिक केस रिजर्व रख कर वह सीधे पतंजलि के केस के लिए पूरा समय देती है।जो केस विभिन्न अदालतों में न्याय प्राप्ति के लिए सड़ रहे हैं जल्द ही उसका अचार खरीदने की सुविधा भी भारत की जनता को मिलेगी।विश्वास करिए हर साल जो 2 लाख लोग न्याय के इंतजार में सिसक सिसक कर मर जाते है जल्द ही उनके लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदरियां तय करने का जहमत भी उठाने वाली होगी ही।

आज पतंजलि वाले मामले से यह तो साबित ही हो गया कि सुप्रीम कोर्ट को जनता के लिए बहुत चिंता है और लगभग सरकार वही चलाती रही है,बल्कि वह चुनी हुई सरकारों से ऊपर है। आज दवाओं का भ्रामक प्रचार जारी रखने के मामले में पतंजलि के हलफनामे पर SC ने असंतोष जताया है।अत्यंत जिद्दी रामदेव और बालकृष्ण कोर्ट में रहे मौजूद रहे।आज भी अवमानना का मुकदमा चलाने की चेतावनी देते हुए SC ने दोनों को अंतिम मौका दिया है। 10 अप्रैल को फिर सुनवाई है।सुप्रीम कोर्ट ने टिप्प्णी की है “ऐसा लगता है कि पतंजलि के कार्यकलापों में केन्द्र और राज्य सरकार दोनों शामिल हैं! केंद्र सरकार को बताना होगा कि बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि, कोर्ट के आदेश के बावजूद भ्रामक और गलत दावे करती रही और सरकार ने आंखें बंद कर ली थीं।आयुष मंत्रालय को जवाब देना होगा,,।बता दें कि सुप्रीम कोर्ट इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA, केस दाखिल का निर्णय इसके तत्कालीन कट्टर कैथोलिक ईसाई अध्यक्ष ) की ओर से 17 अगस्त 2022 को दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी।इसमें कहा गया है कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया।वहीं खुद की आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया।

जिस दिन I.M.A.(इंडियन मेडिकल ऐसोसिएशन) के तत्कालीन ईसाई अध्यक्ष डा० जॉनरोज ऑस्टिन जयलाल ने कहा था की… “वैक्सीन नही बाइबिल करेगी कोरोना से ठीक” हम उसी दिन समझ गए थे की मिशनरी व सोनिया गठजोड मिलकर अब राष्ट्रवादी योग गुरु बाबा रामदेव जी को बजाने वाले है। डीप स्टेट एवं सोनिया व मिशनरी के निर्देशन मे अब योग और आयुर्वेद को निशाना बनाया जा रहा है।इस समय अपनी चिकित्सा पद्धतियों का समर्थन कीजिए वरना डीप स्टेट उन्हे लील लेगा।सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से उनका असली निशाना बाबा रामदेव और पतंजलि नहीं है बल्कि आयुर्वेद है अर्थात भारतीय चिकित्सा पद्धतियां है जो उनके 8 लाख करोड डॉलर के सालाना कारोबार को लगातार घटाती जा रही है।ध्यान रहे भारतीय चिकित्सा पद्धतियां बाजारवादी नहीं है बल्कि लगभग मुफ्त में है।उनकी बहुत ही थोड़ी अर्थव्यवस्था है।

मुस्लिमों की एक संस्था है वक्फ लैबोरेट्रीज।जो हमदर्द के नाम से कई प्रोडक्ट बनाती है, उसने अपने कुछ दवाओं के बारे में इतने बढ़ा चढ़ा के दावे किए हैं लेकिन आज तक किसी भी व्यक्ति ने उन दावों पर सवाल नहीं उठाया है।उसकी एक टानिक है, जिसे वह सिंकारा के नाम से बेचती है।वह कहती है कि आप इसे पीते ही एकदम जोश और स्फूर्ति से भर जाएंगे।वृंदा करातजो पतंजलि की हर दवाओं को तमाम लेबोरेटरीज में भेज कर उसका रिपोर्ट लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करती है, उन्होंने कभी भी सिंकारा पीकर, प्रेस कॉन्फ्रेंस करके, यह नहीं कहा कि, यही दवा पीकर मैं हाथ उठा उठा कर भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाल्लाह इंशाल्लाह के नारे लगाती हूं।क्योंकि यह दवा यह टॉनिक मेरे अंदर जोश भर देती है ऐसा सिंकारा के बारे मे कभी नही कहा।

एक शरबत है रूह अफजा।वक्फ लेब्रोटरी दावा करता है कि, इसमें ताजे गुलाब डाले गए है लेकिन क्या आज तक किसी ने लैब में परीक्षण करके यह पता लगाया कि इसमें सच में ताजे गुलाब डाले गए हैं या विदेशों से गुलाब का केमिकल एसेंस डाला गया है..?एक सिरप है साफीदावा करता है कि ये खून को पूरी तरह से साफ कर देता है मैंने आज तक मीडिया या सोशल मीडिया में कभी नहीं देखा, किसी ने उस पर सवाल उठाया हो।आखिर इस साफी में ऐसी कौनसी चीज है जो ये खून को फिल्टर कर देती है ?

अपने बड़े-बड़े दावों के समर्थन में, वक्फ लैबोरेटरी, यानी मुसलमानों की यह संस्था, कौन सी जांच रिपोर्ट का हवाला दे रही है?ऐसे ही एक और दवा है, रोगन बादाम।इसके बारे में कम्पनी दावा करती है कि यह बादाम का अर्क, यानी जूस है।100 ग्राम की सीसी यह 750 रूपये में बेचती है।मेरा फिर वही सवाल है की, क्या किसी ने सवाल उठाया कि इसमे असली बादाम है या बादाम के एसेंस हैं..?मैंने अपने एक मित्र से पूछा, तब उन्होंने बताया कि अगर आपको 100 ml बादाम का कंसंट्रेटेड एसेंस निकालना होगा, तो उसके लिए कम से कम आपको 5 किलो बादाम चाहिए।अब आप 5 किलो बादाम की कीमत करीब ढाई से 3000 रूपये होगी और यह कंपनी आपको मात्र 700 रूपये मे 100 ml बादाम का एसेंस कैसे दे रही है..?

इसी तरह आप हमदर्द के सारे प्रोडक्ट देख लीजिए सिर्फ बड़े-बड़े दावे किए गए हैं कहीं कोई सच्चाई नहीं है।आज तक किसी भी नेता ने, हमदर्द के दवाओं के बड़े-बड़े दावों पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया है।लेकिनअगर पतंजलि कोई उत्पाद लांच करती है तो पूरा सोशल मीडिया, सारे नेता, सारे सेक्युलर, चीफ फार्मासिस्ट बनकर, ऐसे ज्ञान देते हैं जैसे उनसे बड़ा ज्ञानी इस धरती पर कोई नहीं है।दरअसलबाबा रामदेव का सबसे बड़ा अपराध यह है कि उन्होंने भगवा वस्त्र धारण किया है।

सोचिए रामदेव बाबा खुद एक ऐसे समुदाय से आते हैं जो ब्राम्हण नहीं है फिर भी यह दिलीप मंडल से लेकर बृंदा करात, सीताराम येचुरी, असदुद्दीन ओवैसी सब के सब उन पर इसलिए टूट पड़ते हैं क्योंकि उन्होंने भगवा धारण किया है।

क्या डियो लगाने से सेक्सी लड़की मिलती है ?क्या एनर्जी ड्रिंक्स पीने से बच्चे मजबूत होते हैं ?क्या सुअर खान गुटखा खाता है तभी वह हीरो है ?क्या रिफाइंड तेल खाना हार्ट के लिए अच्छा है ?क्या आलिया और करीना लक्स से नहा कर चमकने लगती है?क्या ‘फेयर एन्ड हैंडसम’ क्रीम से कोई साँवला व्यक्ति गोरा हो सकता है या सामान्य व्यक्ति हृतिक रोशन जैसा दिख सकता है?क्या ‘मसल ब्लेज’ टेबलेट्स खाने से मसल्स बन जाते हैं, मसल्स चमकने लगते हैं?विज्ञापन सिर्फ बाबा रामदेव और पतंजलि ने ही दिए? और कोई नहीं देता?

क्या कारण है कि अब कॉलगेट भी खुद को ‘हर्बल’ लिखने लगा है? क्या कारण है कि एलोपैथिक कंपनियाँ तुलसी का इस्तेमाल कर रही हैं कफ-सिरप में? अगर योग और आयुर्वेद भ्रामक है तो फिर गारंटी कौन देता है?कौन सी कंपनी भ्रामक विज्ञापन नहीं देती.

एक कंपनी का नाम बताइए जो अपने प्रोडक्ट के बारे में झूठ नहीं बोलतीI विज्ञापन का पूरा कोरोबार झूठ और अतिरेक पर टिका है।पतंजलि के उत्पादों की quality पर सवाल उठाइये… कीमत पर बात कीजिये, Value For Money पर ऊँगली उठाइये…. लेकिन यहाँ तो बात ही अलग जा रही है।बात सिर्फ इतनी है कि एक हिंदू बाबा ने बिजनेस कैसे कर लिया. पच नहीं रहा है वामपंथियों और इनके Cartel को.. सुप्रीम कोर्ट को ?

हिन्दुओं अब आप ही बताओ आप को क्या करना चाहिये?

बेचारा गरीब पुजारी।

● दयनीय दशा

हमारे मन्दिरों के पुजारियों की दयनीय दशा

क्या हमने कभी किसी मन्दिर के पुजारी को 90-100-110 किग्रा वजन का देखा है?

क्या हमने कभी किसी पुजारी को किसी नगर के पॉश इलाके में 250 वर्ग गज में बनी कोठी में रहते देखा है?

क्या हमने कभी किसी पुजारी के पास 5-7 लाख रु मूल्य की कार देखी है?

क्या हमने कभी किसी पुजारी की कलाई में सोने का कड़ा देखा है? हाँ उन्हें दहेज में मिली सोने की अंगूठी उनके दायें हाथ की उँगली में अवश्य देख ली होगी।

क्या हमने कभी किसी पुजारी को लकदल मँहगे कपड़े पहने देखा है?

क्या हमने किसी पुजारी के पैरों में मँहगे जूते देखे हैं?

क्या हमने कभी किसी पुजारी की संतान को कॉनवेंट जैसे मँहगे स्कूल/कॉलेजों में पढ़ते देखा है?

हमने अभी तक जितने भी पुजारी देखे होंगे उनमें से कितने पुजारियों की सन्तानें डॉक्टर/इंजीनियर बनी हैं?

आज यदि कुछ प्रतिशत पुजारियों को अलग कर दिया जाये तो शेष सभी पुजारियों की दशा दयनीय ही है।

ऐसा क्यों है?

आज मन्दिरों में पुजारियों को वेतन मिलता ही कितना है! किसी भी मन्दिर में उन्हें यहाँ तक कि बड़े सेठ लोगों के निजी मन्दिरों में भी उन्हें 7-8-9 हजार रु मासिक से अधिक वेतन शायद ही मिलता हो। इसके बावजूद उन्हें मन्दिरों में प्रातःकाल 4 बजे से दोपहर 12 बजे तक और सायंकाल 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक ड्यूटी देनी होती है।

अब हम यह कहेंगे कि वे श्राद्धों और माँगलिक अवसरों पर हमारे यहाँ अच्छा भोजन तो लेते ही हैं और हम उन्हें वस्त्र भी दान में देते हैं।

अरे भाई जी, किसी दिन उन्होंने स्वयं के घर में जीरे का छौंक लगी मूँग की दाल के साथ 4 रोटी खा ली या किसी यजमान के यहाँ किसी माँगलिक अवसर पर तर भोजन कर लिया तो उससे उनकी आर्थिक स्थिति पर तो कोई अन्तर पड़ता नहीं है। चलो हम एक बात का मनन और करें कि जो वस्त्र हमें उन्हें दान में देते हैं तो क्या वैसे वस्त्र पहनना हम स्वयं पसन्द करते हैं।

इसी के साथ यह बात भी जुड़ी है कि हम माँगलिक अवसरों पर बहुत धन व्यय करते हैं मगर अनुष्ठान करवाने वाले पुरोहितों को 1100-2100-5100 रु दक्षिणा देने में हमारा बजट गड़बड़ाने लगता है।

मन्दिरों में जाने पर हमें क्या करना होगा?

बहुधा ऐसा होता है कि हम मन्दिरों की रखे दानपात्र में 1-5-10 रु डाल कर ऐसा सोचने लगते हैं जैसे कि हमने बहुत बड़े पुण्य का कार्य कर दिया है। हमें यह पता होना चाहिये कि उस दानपात्र में डली राशी में से वहाँ कार्यरत पुजारियों की जेब में एक पैसा भी नहीं जाता है।

फिर वह धन कहाँ जाता है?

वह धन उस मन्दिर की ट्रस्ट के पास जाता है।

ट्रस्ट उस धन का क्या करती है?

कोई भी ट्रस्ट उस दान राशि का कितना सदुपयोग करती है या नहीं कर पाती है यहाँ ऐसी चर्चा करना अनावश्यक है।

फिर हम क्या करें?

बढ़िया तो यह रहेगा कि हम मन्दिरों में रखे दानपात्रों में 1-10-21 रु प्रतीकात्मक रूप में डाले और अपनी क्षमतानुसार शेष बची राशी को वहाँ कार्यरत पुजारी को भेंट कर दें।

ना जी वहाँ तो सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं।

हाँ अनेक मन्दिरों में ऐसे उपकरण लगे होते हैं जिनके कारण उन मन्दिरों के पुजारी श्रद्धालुओं से नकद राशि नहीं ले सकते हैं।

इसका उपाय सीधे सीधे यह है कि हम उन पुजारियों को वहाँ लगे सीसीटीवी कैमरों से दूर हट कर उन्हें राशि भेंट कर सकते हैं।

नोटः मेरे स्वयं के ब्राह्मण होने के कारण से मेरे इस लिखे को जातिवाद से जोड़ कर न देखा जाये।

इल्युमनाती अब डीप स्टेट के नाम से जाना जाता है!

लंदन में बराक ओबामा और जॉर्ज सोरोस का होना और भारत विरोधियों से मिलना कोई इत्तेफाक नहीं है।

बार बार एक डीप स्टेट का जिक्र होता है, जिनके ये हिस्सा हैं, जो भारत में अपने एजेंट्स और दलालों के माध्यम से मोदी सरकार को उखाड़ फेकना चाहती है। हर दिन एक नया बवाल खड़ा करते है।

आखिर यह डीप स्टेट है क्या, क्यों पूरी दुनिया में उथल पुथल करते रहते हैं।

डीप स्टेट उन अति धनाढ्यों का एक गैंग है जो पूरी दुनिया की आधी संपत्ति और दौलत की मालिक है।इन्होने दुनिया भर में राष्ट्रवादी विचारों और नेटिव जीवन पद्धति को कंट्रोल में रखने के लिए यह खडा कियाI बेसिकली यह 1810 में वेटिकन द्वारा द्वारा दुनिया पर आर्थिक नियंत्रण के लिए बनाया गया थाIजहां जहां जिन जिन देशो पर यूरोपियन्स का कब्जा था वहां के जो भी नवकुबेर बने उनके आर्थिक हित भी समान होते गए तो धीरे धीरे यह भी इस इल्युमनाती ग्रुप से जुड़ते चले गएI

एक एक मेंबर की दौलत दुनियां के कई देशों के GDP से ज्यादा है। ये पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को कंट्रोल करते हैं।

डीप स्टेट के जरिए ही धनकुबेर पूरी दुनिया का व्यापार अपने कंट्रोल में रखना चाहते हैं चाहे इसके लिए हजारों लोगों की जान ही क्यों ना लेनी पड़े।

इसी डीप स्टेट ने इराक, यमन, सीरिया, लीबिया को तबाह किया है। मनमाफिक सरकार नहीं है तो तख्ता पलट करने की साजिश रचते हैं।यह अमेरिका के राष्ट्रपतियों,दुनिया भर के तमाम नेताओं और राष्ट्राध्यक्षो को मरवाने का काम करती रही हैI

इसी डीप स्टेट के कैपिटलिस्ट अमेरिका, यूरोप में सरकारें चलाते हैं। यही लोग अफ्रीकी देशों में उथल पुथल करते हैं। यही डीप स्टेट अमेरिकी सरकार की मदद से पाकिस्तान में सरकारें बनाते बिगाड़ते हैं। यही डीप स्टेट भारत में भी अपने पाले हुए गुलामों के जरिए उथल पुथल कर रहे हैं।

ये चाहते हैं कि भारत की जनता उनके लिए गुलामी करे, उनके सामान खरीदे। डीप स्टेट ईस्ट इंडिया कंपनी की मोडिफाइड वर्जन है जो किसी भी तरीके से भारतीयों का अपना आर्थिक गुलाम बनाना चाहती है।

डीप स्टेट में सबसे बड़ा गैंग अमेरिका की हथियार लॉबी का है, ड्रग्स लाबी,पेट्रोल लाबी,बैंकिंग लाबी,पेट्रोल लाबी,माइंस लाबी, टेकनौलाजिकल कंपनियों के मालिकान,एवं साइबर/इंटरनेट लाबी के साथ साथ मीडिया मुगल भी शामिल है जो दुनियां भर की सरकारो को अपना कठपुतली बना कर रखते हैं।केवल उदाहरण के लिए बता रहा हूँ दुनिया के आधे बीज बाजार और तीन-चौथाई कृषि रसायन कारोबार को 4 कंपनियां (Bayer, Corteva, Syngenta and BASF) कंट्रोल करती हैं।कुछ ही दवा कम्पनियों के हाथ में मूल दवाओं का साल्ट बनाने का काम हैI

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति JFK के भतीजे रोबर्ट कैनेडी जूनियर ने कहा है कि मेरे अंकल को सीआईए ने मरवा दिया था क्योंकि वो अमेरिका की वॉर पॉलिसी के बीच मे आ रहे थे। आजकल रॉबर्ट अमेरिकी राष्ट्रपति की दावेदारी कर रहा है और लोगों से बातचीत कर रहा है कि कैसे अमेरिका दूसरे देशों में युद्ध करवाता है।

इसका ताजा उदाहरण सूडान है जहां गृहयुद्ध चल रहा है लोकतंत्र बचाने के नाम पर और वहां की मिलिट्री और उसकी पैरा मिलिट्री आपस मे जंग कर रही है।

अमेरिका का अपना एक मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स है। सीआईए इसी के लिए काम करता है। इसको आप डीप स्टेट के नाम से भी जानते हैं और जो लोग इल्युमिनाटी से परिचित होंगे ये उसी का मिलिट्री कॉम्प्लेक्स है।

अमेरिका जिसे हम एक देश समझते हैं ये कॉम्प्लेक्स उसकी सरकार के अधीन नही आता। ये वैसे ही है जैसे अमेरिका का फेडरल बैंक है वो भी अमेरिकी सरकार के अधीन नही है। ऐसे ही जिसे आप वर्ल्ड बैंक, IMF, UN के नाम से जानते हैं वो इसी डीप स्टेट का है। नाटो जो दिखता है कि अमेरिका के पिछलग्गू यूरोपियन देश हैं वो भी अमेरिकी सरकार के पिछलग्गू नही बल्कि इस डीप स्टेट के हैं। डॉलर जिससे पूरी दुनिया चलती है वो इन्ही का है जिस वजह से OPEC देश(तेल वाले देश) वो भी इसी का हिस्सा हैं। इसी तरह जो फार्मा इंडस्ट्री पूरे अमेरिका और यूरोप की हैं वो भी अपने अपने देशों की नहीं बल्कि इस डीप स्टेट की है। आप अक्सर देखते होंगे बिल गेट्स को यहां वहां के देशों में घूमते। भारत भी आता रहता है। वो कोई फिलॉन्थोपिस्ट नही जो गरीब देशों में दान कर्म करने जाता है बल्कि वो फार्मा इंडस्ट्री का नुमाइंदा है जो विशेषतः वैक्सीन से जुड़ी फार्मा लॉबी के लिए मार्केट करने या गरीब देशों में नई वैक्सीन के लिए गिनी पिग ढूंढने का काम करता है।

इस तरह आप समझ सकते हैं कि आर्म, आयल और फार्मा लॉबी जो डीप स्टेट(इल्युमिनाटी) के तीन सर हैं उनका चेहरा भर है ये अमेरिका नामक देश जहां की सरकारें इनकी कठपुतली भर होती है।

हमें यह भी बहुत बड़ी गलतफहमी है कि अमेरिका लोकतांत्रिक देश है। दरअसल इतना बूथ कैप्चरिंग तो भारत में नही हुआ होगा जितना अमेरिकी इलेक्शन Rigged होता है। वहां ये लॉबी अपने हिसाब का राष्ट्रपति लाती है और यदि ये दिखता है कि इनका चुना हुआ चेहरा उतना पॉपुलर नही है और दूसरे की जीत की गुंजाइश है तो पूरी कोशिश होती है कि चुनाव में धांधली कराइ जाए। फिर भी अगर दूसरा जीत जाता है तो उसके पीछे सीआईए लगा दी जाती है जो ये तय करवाती है कि अमेरिका की पालिसी क्या बनेगी। इसके बाद भी यदि वो अपनी चलाता है तो JFK की तरह उसकी हत्या से लेकर ट्रम्प की तरह उसके खिलाफ BLM करवा उसे अनपॉपुलर करवाया जाता है और तब भी वो नही हार रहा तो चुनाव में धांधली कराई जाती है। और ये काम उसके साथ भी होता है जो इनका चुना हो मगर बाद में इनके कहने पर चलने से मुकर जाए।

आपको याद भी होगा कि ट्रम्प के पिछले चुनाव के समय 1 महीने तक रिजल्ट घोषित न हो सका क्योंकि जगह जगह यही आरोप लग रहे थे कि हमारे वोट कम किये गए हैं। यहां तक कि ट्रम्प के समर्थक कैपिटल हिल में चढ़ दौड़े थे कि चुनाव फ्री एंड फेयर नही हुए। ऐसा ही कुछ तब भी देखने को मिला था जब ब्रिटेन से स्कॉटलैंड को अलग करने को चुनाव हुए थे लेकिन धांधली कर घोषित कर दिया गया कि स्कॉटलैंड आजाद नही होना चाहता। अब वहां फिर से स्कॉटलैंड को अलग करने के लिए चुनाव की बात शुरू हो गयी है जब से नया स्कोटलैंड का प्रीमियर जीता है।

इसी वजह से आप देखेंगे कि ट्रम्प दोबारा न खड़ा हो सके तो उसके लिए उसपर एक पोर्नस्टार से हश मनी का केस लगवा दिया और उसे जेल भेजने की कोशिश हुई। न्यूयॉर्क का DA जो सोरोस के पैसे से अटॉर्नी बना है उसने इसमें जी जान लगा दी है कि ट्रम्प पर चार्जेस लग जाएं ताकि वो गिल्टी होकर कभी चुनाव न लड़ सके। कोई नही कह सकता कि जो ग्रैंड ज्यूरी बैठेगी उसमें इनके कितने आदमी होंगे जो ट्रम्प के खिलाफ फैसला देंगे? सोरोस के लड़के के वाइट हाउस में दर्जन भर से ज्यादा चक्कर लग चुके हैं और बाइडन से मुलाकातें हो चुकी हैं जो साफ दिखाता है कि डीप स्टेट किस तरह राष्ट्रपति को आदेश देता है।

बेसिकली डेमोक्रेट्स जो हैं वो इस डीप स्टेट के ज्यादा करीबी हैं बजाय रिपब्लिकंस के। बाइडन हो, हिलैरी हो या ओबामा ये सब डीप स्टेट का आर्डर फॉलो करने में कोई IF BUT नही करते। वहीं ट्रम्प जैसे जो होते हैं वो कुछ भी करने से पहले ये सवाल करने लग जाते हैं कि इससे अमेरिका की जनता का क्या फायदा होने वाला है?

यही वजह थी कि ट्रम्प के चार साल में एक बार भी उसने किसी देश मे बम नही गिरवाये जबकि बराक हुसैन ओबामा पहला मुस्लिम ब्लैक अमेरिकन कितने मुस्लिम देशों में बम गिरा गया इसकी गिनती उसे पता भी नही होगी।

इसीलिए इसी डीप स्टेट ने साजिश के तहत ये नियम बनाया था कि अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नही बन सकता क्योंकि यदि कोई मोस्ट पॉपुलर व्यक्ति सत्ता में आ गया जो 20-30 साल तक हारे ही नही तो डीप स्टेट का सारा गेम प्लान खराब हो जाएगा और जरूरी नही कि हर बार हत्या या हिंसा करवाकर सफलता मिले ही मिले और अमेरिका में गृहयुद्ध करवाना उतना अच्छा मैसेज दुनिया मे देगा नही जितना आसान दूसरे देशों में होता है जैसे आजकल सूडान, उससे पहले अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया आदि में किया गया है।

तो इस तरह अमेरिका नामक देश के चेहरे का इस्तेमाल करकर डीप स्टेट काम करता है। इसकी तीन प्रमुख लॉबी होती हैं जैसे बताया है।

आर्म जिसे मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स चलाता है जो इतना लालची और युद्ध बेचने वाला है कि खुद के देश मे भी गन कल्चर खत्म नही होने देना चाहता। दूसरा है आयल जिसे OPEC चलाता है जिसके तहत मिडिल ईस्ट से लेकर अन्य देश आते हैं। और तीसरा है फार्मा लॉबी जो मुख्यतः UN के अंडर काम करती है और गरीबी, भुखमरी, महामारी, बीमारी, कुपोषण आदि के नाम से अपना धंधा चलाती है।

UN इनका वो मुखौटा है जो बना ही इसलिए था कि जो काम 1945 से पहले सीधे दूसरे देशों में उतरकर करने पड़े थे उन्हें अब दूसरी तरीके से किया जाए। और इसमें सबसे मुख्य है किसी भी देश को अपने खेमे में करना और उसके लिए सबसे मुख्य चीज है उस देश की सत्ता को कंट्रोल करना और ऐसा नही होने पर अंततः रिजीम चेंज करना।

UN इसके लिए ह्यूमन राइट्स की आड़ लेता है, लोकतंत्र बचाने की आड़ लेता है, शिक्षा से लेकर गरीबी के नाम पर NGO उस देश मे चलाता है, स्वास्थ्य से लेकर भोजन के नाम पर सरकारी सहायता(AID) के काम करता है। अपने लोगों को ज्यूडिशरी, अकेडमिया, मीडिया में भरता है। यही लोग आतंकी संगठनों को भी फाइनेंस करते हैं। अब इनका नया हथियार सोशल मीडिया भी है।

इसके बाद ये तीन उस देश को प्रभावित करने को 3M का सहारा लेते हैं। मूवी, मीडिया और मिलिट्री।

मूवी इंडस्ट्री से ऐसी फिल्में आएंगी जो बताएंगी कि दुनिया का रक्षक जो है वो अमेरिका है। मीडिया ये बताएगी कि दुनिया मे बुरे सिर्फ एन्टी अमेरिका वाले लोग हैं। फिर मिलिट्री ये बताएगी कि फलां देश आतंक से पीड़ित है या मानवता का दुश्मन है जो या तो तानाशाही कर रहा है या फिर ऐसे हथियार बना रहा है जो मानवता पर खतरा हैं।

इन सबको बैकिंग देता है 4th M यानि मनी जो दुनिया की एक है और उसका नाम है डॉलर।

ये डीप स्टेट का है नाकि किसी अमेरिकी सरकार का तो ट्रिलियन्स डॉलर फूँकने में भी इन्हें टेंशन नही होती। ये तो खुद अमेरिकी सरकार को भी कर्ज देते हैं देश चलाने को। कभी सोचा कि अगर डॉलर अमेरिका का है तो अमरीकी सरकार पर 32 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज किसका है जो उन्हें चुकाना है?

क्योंकि अमेरिका भी उसी तरह इनसे उधार लेता है जैसे अन्य देश। जब भी दुनिया मे संकट आता है तो इन्हें उल्टा खुशी होती है क्योंकि डॉलर इंडेक्स मजबूत होता है और इनकी चांदी होती है डॉलर के मजबूत होने से और दुनिया की मुद्राओं के डॉलर के मुकाबले कमजोर होने से। इनके हथियार से लेकर आयल और फार्मा वाले सबसे ज्यादा किसी संकट से ही कमाते हैं।

लेकिन ये ऐसे संकट को ज्यादा दिन टिकने देना इसलिए नही चाहते कि ऐसी परिस्थिति में फिर दुनिया दूसरे रास्ते अपनाने लगती है। जैसे इस समय हो रहा है जब डॉलर पर संकट आने लगा है और दुनिया अल्टरनेटिव करेंसी की ओर देखने लगी है।

दुनिया अब बाइपोलर से मल्टीपोलर की बात करने लगी है। BRICKS जैसे संगठन G7 को आंखे दिखाने लगे हैं। NATO के अंदर बगावत चल रही है। ग्लोबल साउथ की बात हो चुकी है जिसका मकसद ही सारे कथित थर्ड वर्ल्ड कंट्री को एक साथ लाना है।

अमेरिका ने यूक्रेन को उकसाया रूस के खिलाफ जबकि रूस की मांग ये थी कि मेरी सीमा में NATO न आकर बैठे। जर्मनी जिसकी गैस पाइपलाइन नॉर्दस्ट्रीम थी, तोड़ डाली और रूस पर उंगली उठा दी। बाद में पता चला कि ये अमेरिका ने किया तो कहा कि ये काम तो प्रो यूक्रेनियन लोगों का था। इस वजह से यूरोप में एनर्जी संकट आ गया। बाद में खुलासे हुए कि अमेरिका यूक्रेन के लिए इतना क्यों मचल रहा तो अमेरिका ने यूक्रेन में चुपचाप 30 से ज्यादा जैविक लैब बना रखी हैं। परमाणु संयंत्र के नाम पर अमेरिका यूक्रेन में अपने न्यूक्लियर बेस बना रहा है। इसके बाद उसे NATO में शामिल करने का प्लान था ताकि अमेरिकी सेना रूस के बॉर्डर पर हर तरह के हथियार के साथ बैठ जाये।

इसी से जर्मनी चिढ़ गया पर जर्मनी की 1945 से ही संधि है कि युद्ध मामलों में वो अमेरिका पर निर्भर रहेगा, तो ज्यादा कुछ नही बोला। लेकिन फ्रांस ने इसपर उंगली उठा दी कि तुम क्यों जबरदस्ती दुनिया को युद्ध की तरफ धकेल रहे हो तो जिस मैक्रो को पपेट बना वहां बिठाया था उसके खिलाफ एक टुच्चे से पेंशन बिल के नाम पर जनता सड़क पर करवा दी ये वार्निंग देते हुए कि हमारे खिलाफ गया तो हम रिजीम चेंज करवाने का दम भी रखते हैं।

इजरायल जो बना ही इसलिए था कि मिडिल ईस्ट में इनका बफर स्टेट बने जैसे पाकिस्तान रूस और भारत के बीच मे बना था, उसने जब मिडिल ईस्ट में शांति की बात करने की कोशिश की तो वहां भी ज्यूडिशरी में दखलंदाजी के बहाने लोग सड़कों पर आ गए। वो कहता रहा कि इसके पीछे CIA है लेकिन किसी ने नही सुनी क्योंकि मीडिया तो इनके कंट्रोल में है जो रूस तक का पक्ष कभी दुनिया को जानने नही देती।

अमेरिका में वो जर्नलिस्ट या तो नौकरी से निकलवाये जा रहे हैं या जेल भेजे जा रहे हैं जो इन बातों को उठा रहे हैं।

बाकी मीडिया स्वतंत्रता की फिर इनसे जितनी बड़ी बड़ी बातें करवा लो।

हर देश को ये इसी तरह किसी न किसी बहाने धमकाते हैं। न मानने पर अपने लोग एक्टिव करवाते हैं। विक्टोरिया नुलन्द, जॉर्ज सोरोस इसी तरह के इनके प्यादे हैं जिनका काम उस देश के अंदर के लोग खरीद उस देश मे आंतरिक कलह शुरू करवानी होती है। इनके लोग तो उस देशों में दशको से NGO, मीडिया, ज्यूडिशरी, अकेडमिया, मूवी इंडस्ट्री आदि में बैठे ही होते हैं तो वो फिर अपने देश के अंदर एक्टिव हो जाते हैं। विपक्षी पार्टी जो सत्ता में आने के लिए तड़प रही होती है उससे ये लोग डील कर देते हैं कि हमारे पपेट बनकर रहोगे तो हम तुम्हे सत्ता में बिठा देंगे।

भारत के मामले की बात करें तो पहले ब्रिटिश यहां डायरेक्ट ही थे। उनके जाने के बाद यहां रूस ने इसी तरह की घुसपैठ की। जो इनकी नही मानते थे उनकी हत्या यहां आम थी। फिर वो प्रधानमंत्री हो, न्यूक्लियर साइंटिस्ट हों, स्पेस साइंटिस्ट हों, अन्य पोलिटीशयन हों या कोई और..

1990 तक KGB का यहां ज्यादा प्रभाव रहा। सीआईए और उसकी ब्रांच ISI ने यहां रूसी समर्थक सरकारों के खिलाफ बहुत आंदोलन भी करवाये। यहां तक कि KGB की गलतियों को भुना उनके ही लोग फिर अपने कंट्रोल में लिए जैसे खलिस्तान हो या लिट्टे.. पर KGB यहां फिर भी भारी ही पड़ा रहा सीआईए पर।

बाद में जब सोवियत संघ टूट गया तो KGB कमजोर हो गयी और उसकी जगह सीआईए आ गयी। तब से डीप स्टेट सीआईए के माध्यम से यहां की सरकारों को कंट्रोल करता है लेकिन जब भी कोई ऐसी सरकार यहां आती है जो इनके कहने पर काम नही करती तो उसके खिलाफ रिजीम चेंज का काम शुरू हो जाता है। उसके लिए उसके पास कौन कौन से असेट्स हैं ये दोहराने की जरूरत नही है।

लेकिन भारत के मामले में एक नया प्लेयर भी उभरा है और वो है चीन।

चीन ने अपने देश मे पहले सीआईए का इस्तेमाल किया और खुद को रूस से रिप्लेस किया। बाद में रूस के टूटने पर उसकी जगह ले ली अमेरिकी डीप स्टेट के खिलाफ बाइपोलर दुनिया का एक धड़े का नेतृत्व करने लगा। ये डीप स्टेट का सबसे बड़ा ब्लंडर साबित हुआ।

यही वजह है कि डीप स्टेट भारत के मामले में ये नही चाहता कि भारत भी एक अन्य धड़ा बन जाये रूस और चीन की तरह। इससे फिर सीधी लड़ाई ही वेस्ट बनाम ईस्ट की हो जाएगी।

इसी का फायदा भारत भी उठाता है लेकिन भारत की समस्या ये है कि चीन भी भारत को बड़ा बनता नही देख सकता क्योंकि एक तो उसे यूरेशिया में एक क्षत्र राज चाहिए और दूसरा कि चीन को डर है कि जैसा रूस को हटाने को चीन का इस्तेमाल हुआ था उसी तरह भारत का इस्तेमाल चीन के लिए न हो सके।

इस वजह से डीप स्टेट के साथ साथ चीन भी भारत के खिलाफ एक्टिव रहता है। चीन को भी भारत मे ऐसे लोग चाहिए जो उसके पपेट हों। और मजे की बात कि भारत मे इस मामले में अमेरिकी डीप स्टेट और चीन फिर एक मंच पर आ जाते हैं जैसे यहां इस्लाम-ईसाइयत-वाम हिन्दुओ के खिलाफ आ जाते हैं जबकि आपस मे वो एक दूसरे के दुश्मन भी हैं।

भारत मे आज की तारीख में चीन और अमेरिकी डीप स्टेट की लड़ाई ये भी चलती है कि विपक्ष को कौन ज्यादा कंट्रोल करेगा। यूँ तो ये तब आसान होता जब सत्ता में बैठे लोग एक पक्ष के होते और दूसरे को फिर कोई एक अपने पक्ष में कर लेता लेकिन समस्या यही है कि सत्ता में बैठे किसी पक्ष के न होकर भारत के पक्ष के हैं।

इसलिए यहां भी वही फार्मूला चलता है जो इस्लाम-वाम-ईसाइयत चलाती है कि पहले हिन्दू को तो खत्म करो फिर फैसला कर लेंगे कि आपस मे क्या करना है।

उसी तरह चीन हो या अमेरिका दोनों इस प्रयास में रहते हैं कि पहले इस सरकार को तो हटाओ फिर देखेंगे कि क्या करना है।

क्योंकि पहले यही होता था। सत्ता में कांग्रेस थी और वो अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील करती थी तो चीनी समर्थक वामपन्थी उसे सत्ता से गिराने की धमकी देने आ जाते थे कि डील कैंसिल करो। इस तरह अमेरिका बनाम चीन यहां चलता था।

जबकि इस समय जो सरकार है वो चीन को तो अपना नम्बर 1 दुश्मन कहती ही है बल्कि अमेरिका को भी साइड रख उसके लाख धमकाने पर भी रूस से डील करना नही छोड़ती क्योंकि इसकी पॉलिसी है भारत फर्स्ट।

इसलिए सारे बाहरी दुश्मन भी एक हैं और भीतरी भी।

चीन अमेरिका भी एक हैं और कांग्रेस और वामपन्थी भी एक साथ भारत जोड़ने निकले हैं।

कुलमिलाकर किसी को भी ये सरकार नही चाहिए। इसके लिए इस सरकार के खिलाफ जो माहौल बनाया जा सकता है बनाया जायेगा। दंगो से लेकर हत्या के प्रयास तक भी किये जायेंगे।

मोदी इस बारे में बात करते भी रहते हैं। जब वो कहते हैं कि आपको नही पता कि मैंने किन लोगों से दुश्मनी ले रखी है तो इन्ही की बात वो करते हैं। हाल में उन्होंने रिपब्लिक भारत के मंच में भी कहा कि आपको नही पता मैंने फार्मा लॉबी के खिलाफ अपना पोलिटिकल गुडविल दांव पर लगा दिया था जब सारे मेरे पीछे पड़े थे कि वैक्सीन इम्पोर्ट करो और मैंने कहा था कि हम तो स्वदेशी वैक्सीन ही बनाएंगे। यहां पर डीप स्टेट और चीन दोनों चाहते थे कि उनकी वैक्सीन भारत खरीदे क्योंकि ये धंधा अरबों डॉलर का था क्योंकि भारत की आबादी ही 1.40 अरब हो चुकी है।

अमेरिका के अंदर हजारों लोग हर साल अंधाधुंध गोलियों के शिकार होते हैं।हर हत्याकांड, विशेषकर स्कूलों में हत्या के बाद हर सरकार लाइसेंस की बात करती है लेकिन हथियार लॉबी के दबाव में चुप हो जाती है।

डीप स्टेट हथियार लॉबी के लिए दशकों से पूरी दुनिया में युद्ध कराती रही है।

वियतनाम में खत्म हुआ तो अफ्रीकन देशों में शुरु किया। इराक में खत्म हुआ तो सीरिया, यमन में शुरु हुआ। लीबिया के तानाशाह गद्दाफी को ख़त्म कर दिया।

अफ़गानिस्तान में खत्म हुआ तो यूक्रेन में शुरु हो गया।

यूक्रेन युद्ध का अंत तभी होगा जब हथियार लॉबी को नया युद्ध क्षेत्र मिल जायेगा।

हथियार लॉबी नहीं चाहता कि कोई और देश दुनियां के हथियार बाजार में प्रवेश करे। रूस बड़ा हथियार निर्माता और निर्यातक है लेकिन इस समय उसे ही चीन से आयात करना पड़ रहा है।

इस लॉबी को यह बिल्कुल पसंद नहीं है कि भारत उनके अलावा किसी अन्य देश से हथियार आयात करे या निर्माण करे।

लेकिन मोदी अलग मिट्टी के बने हैं, इनके दबाव में नहीं आते। आयात भी रूस और फ्रांस से करते हैं और बहुत बड़े पैमाने पर निर्यात भी कर रहे हैं।

हर दिन एक नए रॉकेट, मिसाइल, टैंक, हेवी गन का परीक्षण हो रहा है। हथियारों का निर्यात हो रहा है।

अगले 5 साल में निर्यात में कई गुना बढ़ोत्तरी की योजना बनाई जा चुकी है।

ऐसे हालात में डीप स्टेट का बौखला जाना स्वाभाविक है। वे अपने NGOs और हवाला के जरिए करोड़ो, अरबों रुपए भारत में भेज रहे हैं। देशद्रोही भारतीयों को क्या चाहिए, पैसा। वह भर भर कर मिल रहा है। हर दिन किसी ना किसी बहाने सड़के जाम करते हैं, रेल रोकते हैं जिससे देसी को हर रोज करोड़ों का नुकसान होता है।

ओपन सोसायटी फाउंडेशन, राकफेलर फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन, बिल गेट फाउंडेशन ने सैकड़ों की तादात में भारत के भीतर NGOs खुलवा दिए हैं।

भारत के भीतर शायद ही कोई नेता हो जिसका एक या अनेक NGO ना हो, शायद ही कोई ब्यूरोक्रेट हो जिसके परिवार के पास NGO ना हो। शायद ही कोई पत्रकार हो जिसके पास NGO ना हो। केजरी ने 2000 में ही NGO शुरू कर दिया था जब वह सरकारी नौकरी में थे।

इन सभी को भर भर कर विदेश से पैसा आ रहा है। जाहिर है जो पैसा देगा, वह अपना भी काम कराएगा।

लेकिन कुछ NGOs तो सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत विरोधी कामों में जुटी हुई थी। विकास को अवरूद्ध करना इनके एजेंडे में था।

भारत विकास करेगा तो डीप स्टेट के व्यापार का नुकसान होगा। इन्ही NGOs के जरिए डीप स्टेट ने भारत में सिंचाई के लिए डैम बनाने में रोड़ा अटकाए, पर्यावरण के नाम पर सीमा पर सड़कों के निर्माण को रूकवाने के लिए SC में याचिकाएं दायर करते रहे। हाईवे और एक्सप्रेस वे बनाने में रोड़ा अटकाते हैं। जंगलों में सड़के और ट्रांसमिशन लाइन नहीं ले जानें देते।

सैकड़ों NGO आज भी धर्मांतरण में जुटे हुए हैं।हजारों NGOs के लाइसेंस रद्द किए जा चुके हैं लेकिन किसी ना किसी अवैध रास्ते से भारत में देशद्रोहियों के पास पहुंचा ही देते हैं।दुनिया बहर कम्युनिष्ट विद्रोह होते हैंIवे उसे क्रान्ति कहते हैIइसके बाद लोकल लोग स्पेशिली बौद्ध या हिन्दू इसाई होने लगते हैंIध्यान से अध्ययन करिए तो ईसाई मिशनरियां ही होती हैं कम्युनिष्टो की आड़ में।वह तो उनका ही एक विंग होता हैI

नेपाल पर हाफ अ मिलियन डॉलर अमेरिका की बाइडन सरकार ने खर्च किये हैं वहां हिंदुओं से हिन्दू धर्म छुड़वाने को। ये बात का खुलासा अमेरिकी कांग्रेस(संसद) में हुआ है।

अमेरिका की असली असलियत यही है इस वजह से उसपर कोई भरोसा नही करता है।बाइडन तो बस मुखौटा है। असल काम डीप स्टेट का किया है ये। न सिर्फ डीप स्टेट बल्कि उन्ही का दूसरा मुखौटा चीन भी इसमें एक्टिव है कई साल से।

भूलें नहीं कि जिस दिन नेपाल से राजशाही का अंत हुआ था और वामपन्थ की सत्ता स्थापित हुई तो उन्होंने भारत से अपने शपथग्रहण समारोह में किसे बुलाया?

सीताराम येचुरी जैसे चीनी एजेंट को।इसने वहां क्या कहा था?

“हमे खुशी है कि दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र भी खत्म हो गया है,।

इससे पहले नेपाल से राजशाही खत्म करने का काम कौन कर रहा था?

भारत की रॉ।

लेकिन किसके कहने पर?

राजीव गांधी के कहने पर।

बहाना क्या बनाया गया?

कि सोनिया को पशुपति नाथ नहीं घुसने दिया गया क्योंकि वो हिन्दू नही है।

लेकिन हकीकत क्या थी?

कि राजीव द्वारा ये सब सोनिया नही बल्कि सीआईए(चीन भी) सब करवा रहा था और राजीव ने इसके लिए हमारी रॉ तक को विलन बना दिया। जिस वजह से नेपाल की जनता भारत विरोधी और चीन समर्थक हो गयी।आज वहां सरकार से लेकर विपक्ष सब वामपन्थी है। जिसमें से हमे ये देखना पड़ता है कि कौन कम वामपन्थी अर्थात कट्टर नही है और फिर उसकी सरकार वहां बनवानी पड़ती है चीन को नेपाल से दूर रखने को।

इसलिए मैं कहता हूँ कि डीप स्टेट का एक अकेला अमेरिका ही नही पाला हुआ है। बल्कि अमेरिका का दुश्मन दिखने वाला चीन सहित, भारत की कांग्रेस और दुनिया भर में ऐसे लोग सब डीप स्टेट के पाले हुए हैं।

पूरा कोल्ड वॉर डीप स्टेट ने चलवाया और दोनों अमेरिका और रूस उसके प्यादे थे या यूं कहें कि अमेरिका और रूस की सत्ता में बैठे उनके प्यादे थे।क्योंकि डीपस्टेट के असल संचालक वेटिकन में बैठे हैं।

वह तो अमेरिका में रिपब्लिकन इनके दुश्मन हैं या यूं कहें कि इनके गुलाम नही है। इसलिए ये रिपब्लिकन से उसी तरह चिढ़ते हैं जैसे भारत में मोदी(भाजपा) से। उधर ट्रम्प को ठिकाने लगाने की कोशिश हो या इधर मोदी को, ये पूरी कोशिश करते रहते हैं। वैसे भी भारत हो या अमेरिका या कोई और देश इन्होंने हर उसको ठिकाने लगाया है जो इनके खिलाफ रहता था फिर वो उन उन देशों का राष्ट्राध्यक्ष क्यों न हो।

इसी तरह रूस में वामपन्थ उखड़ने के बाद जब से पुतिन आया है वो इनका दुश्मन है। इसलिए उसके खिलाफ भी मोर्चा खोले रहते हैं। नेतन्याहू भी इसी तरह है और थोड़ा बहुत जिनपिंग भी।जबसे उसने अपने पंख फैलाने और दूसरा माओ बनने की कोशिश की है।

हालांकि आपने गौर किया हो तो जो ट्रम्प ने चीन के साथ इकोनॉमिक वॉर शुरू की थी, बाइडन के आते ही वो बन्द हो गयी।दोनों तरफ से बस बोलबचन चलते रहते हैं। जबकि कोरोना जैसा कांड भारत जैसा देश कर देता तो अब तक ये सारे मिलकर उस पर युद्ध छेड़ दिए होते।क्योंकि वेटिकन नहीं चाहता शी जिनपिंग जैसे ईसाई को डिस्टर्ब किया जाए।

इसका कारण भी ये है कि डीप स्टेट के कहने पर ही कोरोना फैलाया गया था।क्योंकि डीप स्टेट को एक तो पॉपुलेशन कंट्रोल करना है जो उनके एजेंडे में है। दूसरा कि सिर्फ हथियार और तेल से ही क्यों पैसा बनाया जाए जब फार्मा से भी पैसा बन सकता है।इस वजह से भारत जैसे देश मे फाइजर लॉबी इतनी एक्टिव थी। लेकिन मोदी ने फाइजर को घुसने नही दिया।इसीलिए कांग्रेस सहित सबने मोदी के खिलाफ इस बात पर मोर्चा खोल था।जिसकी खुन्नस में डीप स्टेट ने महीनों तक भारत की वैक्सिनों को WHO से मान्यता नही होने दी थी। उसी WHO(डीप स्टेट का अंग क्योंकि पूरा UN उनका है) जिसका चीफ चीनी पालतू भी था और इसने कोरोना को चीनी वायरस कहने पर अघोषित प्रतिबंध लगवा दिया था।

बाकी, आजकल तो खैर ये वापिस हथियार और आयल वॉर खेल रहे हैं। मिडल ईस्ट वॉर में भी और रूस-यूक्रेन वॉर में भी और अब तो इन्होंने रूस में 26/11 करवा दिया है। जिसका मतलब ये वॉर अब और बड़ी बनेगी और ये और पैसा छापेंगे।

अंत मे याद दिला दूं कि फाइजर को यहां घुसवाने की कोशिश की तरह ही इन्होंने रूस से तेल खरीदने से भी भारत को रोकना चाहा था लेकिन भारत ने इन्हें ठेंगा दिखाते हुए रूस से न सिर्फ तेल खरीदना जारी रखा बल्कि इतनी बड़ी मात्रा में खरीद लिया कि यहां से रिफाइन कर भारत तेल को यूरोप में भी एक्सपोर्ट कर रहा है और डॉलर छाप रहा है। इसपर जब अमेरिका(डीप स्टेट) ने यूरोपियन यूनियन के माध्यम से आपत्ति जतवाई तो जयशंकर ने कहा था कि वो तेल अब रूस का कहाँ से हो गया, वो तो भारत का है जैसे अगर कोई कच्चा माल कहीं से खरीदे और अपने यहां फाइनल प्रोडक्ट बना दे तो वो उस देश का प्रोडक्ट होता है, जिसका जवाब फिर EU दे नही पाया था।

यहां तक कि इसी तरह भारत से तेल मिडिल ईस्ट के नॉन आयल देशों में एक्सपोर्ट हुआ और पाकिस्तानियों ने भी वहां से उसे खरीदा और अपने देश मे कहा कि हम कौन सा भारत का तेल खरीद रहे हैं क्योंकि रूस से तेल ये खरीद नही सकते थे क्योंकि एक तो अमेरिका नाराज होता, दूसरा इनके पास डॉलर नही थे जो ये खरीदें और तीसरा कि इनके पास रूसी तेल को रिफाइन करने की रिफाइनरी भी नही हैं जैसी भारत के पास हैं।

इस तरह से पूरी जियोपोलिटिक्स चलती है दुनिया में। जिसमें इधर भारत भी अब एक बड़ा प्लेयर बनता जा रहा है। इस वजह से भारत विशेषतः मोदीजी से डीप स्टेट खार खाये बैठा है।लेकिन उसका बस नही चल रहा कि किस तरह मोदी को राजनीतिक या शारीरिक रूप से हटाया जा सके।

800 साल का स्वातंत्र्य समर-3

भारत के कुछ महान राजा जिनका इतिहास सभी हिन्दू को पढना चाहिए|

  1. बप्पा रावल– अरबो, तुर्को को कई हराया ओर हिन्दू धरम रक्षक की उपाधि धारण की।
  2. भीम देव सोलंकी द्वितीय – मोहम्मद गौरी को 1178 मे हराया और 2 साल तक जेल मे बंधी बनाये रखा।
  3. पृथ्वीराज चौहान – गौरी को 16 बार हराया और और गोरी बार बार कुरान की कसम खा कर छूट जाता …17वी बार पृथ्वीराज चौहान हारे।
  4. हम्मीरदेव (रणथम्बोर) – खिलजी को 1296 मे अल्लाउदीन ख़िलजी के 20000 की सेना में से 8000 की सेना को काटा और अंत में सभी 3000 राजपूत बलिदान हुए राजपूतनियो ने जोहर कर के इज्जत बचायी ..हिनदुओ की ताकत का लोहा मनवाया।
  5. कान्हड देव सोनिगरा – 1308 जालोर मे अलाउदिन खिलजी से युद्ध किया और सोमनाथ गुजरात से लूटा शिवलिगं वापिस राजपूतो के कब्जे में लिया और युद्ध के दौरान गुप्त रूप से विश्वनीय राजपूतो , चरणो और पुरोहितो द्वारा गुजरात भेजवाया तथा विधि विधान सहित सोमनाथ में स्थापित करवाया।
  6. राणा सागां– बाबर को भिख दी और धोका मिला ओर युद्ध . राणा सांगा के शरीर पर छोटे-बड़े 80 घाव थे, युद्धों में घायल होने के कारण उनके एक हाथ नही था एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे।
  7. राणा कुम्भा – अपनी जिदगीँ मे 17 युदध लडे एक भी नही हारे।
  8. जयमाल मेड़तिया– ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था। चित्तोड़ में अकबर से हुए युद्ध में जयमाल राठौड़ पैर जख्मी होने कि वजह से कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे, ये देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आयी थी, जंग में दोनों के सिर काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और 8000 राजपूतो की फौज ने 48000 दुश्मन को मार गिराया ! अंत में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर जयमाल मेड़तिया और पत्ता जी की मुर्तिया आगरा के किलें में लगवायी थी।
  9. मानसिहं तोमर– महाराजा मान सिंह तोमर ने ही ग्वालियर किले का पुनरूद्धार कराया और 1510 में सिकंदर लोदी और इब्राहीमलोदी को धूल चटाई।
  10. रानी दुर्गावती– चंदेल राजवंश में जन्मी रानी दुर्गावती राजपूत राजा कीरत राय की बेटी थी। गोंडवाना की महारानी दुर्गावती ने अकबर की गुलामी करने के बजाय उससे युद्ध लड़ा 24 जून 1564 को युद्ध में रानी दुर्गावती ने गंभीर रूप से घायल होने के बाद अपने आपको मुगलों के हाथों अपमान से बचाने के लिए खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली।
  11. महाराणा प्रताप – इनके बारे में तो सभी जानते ही होंगे … महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच, भाला, ढाल, और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो था।
  12. जय सिंह जी – जयपुर महाराजा ने जय सिंह जी ने अपनी सूझबुज से छत्रपति शिवजी को औरंगज़ेब की कैद से निकलवाया बाद में औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उनकी हत्या विष देकर करवा डाली।
  13. छत्रपति शिवाजी – मराठा वीर वंशज छत्रपति शिवाजी ने औरंगज़ेब को हराया तुर्को और मुगलो को कई बार हराया।
  14. रायमलोत कल्ला जी का धड़ शीश कटने के बाद लड़ता- लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़ शांत हुआ उसके बाद रानी पति कि चिता पर बैठकर सती हो गयी थी।
  15. सलूम्बर के नवविवाहित रावत रतन सिंह चुण्डावत जी ने युद्ध जाते समय मोह-वश अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के तौर
    पैर अपना सर काट के दे दिया था, अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गये थे।
  16. औरंगज़ेब के नायक तहव्वर खान से गायो को बचाने के लिए पुष्कर में युद्ध हुआ उस युद्ध में 700 मेड़तिया राजपूत वीरगति प्राप्त हुए और 1700 मुग़ल मरे गए पर एक भी गाय कटने न दी उनकी याद में पुष्कर में गौ घाट बना हुआ है।
  17. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलो से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटो लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहा छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है।
  18. जोधपुर के यशवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी सिंह ने हाथो से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था।
  19. करौली के जादोन राजा अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरो पर रखते थे।
  20. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 राजपूत सैनिक थे और अकबर की और से 85000 सैनिक थे फिर भी अकबर की मुगल सेना पर हिंदू भारी पड़े।
  21. राजस्थान पाली में आउवा के ठाकुर खुशाल सिंह 1857 में अजमेर जा कर अंग्रेज अफसर का सर काट कर ले आये थे और उसका सर अपने किले के बाहर लटकाया था तब से आज दिन तक उनकी याद में मेला लगता है।
    इसके अतरिक्त बहुत से योद्धा हुए है इस धरती पर जिनका नाम यहाँ नहीं किन्तु इससे उनका भारत को दिया योगदान कम नहीं होगा।

जप,तप और प्राणायाम

18 types of maha japa works on ur आज्ञा चक्र .

  1. उपांशु जप

जिस जप में केवल जिह्वा हिलती है या इतने हल्के स्वर से जप होता है, जिसे कोई सुन न सके, उसे ‘उपांशु जप’ कहा जाता है। यह मध्यम प्रकार का जप माना जाता है। विशारदों का कथन है कि उपांशु जप सौ गुना फल देता है

  1. वाचिक जप

जप करने वाला ऊंचे नीचे स्वर से, स्पष्ट तथा अस्पष्ट पद व अक्षरों के साथ बोलकर मंत्र का जप करे, तो उसे ‘वाचिक’ जप कहते हैं। विशारदों का कथन है कि वाचिक जप एक गुना फल देता है,

  1. मानस जप

जिस जप में मंत्र की अक्षर पंक्ति के एक वर्ण से दूसरे वर्ण, एक पद से दूसरे पद तथा शब्द और अर्थ का मन द्वारा बार बार मात्र चिंतन होता हैं, उसे ‘मानस जप’ कहते हैं। यह साधना की उच्च कोटि का जप कहलाता है। विशारदों का कथन है कि और मानस जप हजार गुना फल देता है

(विशारदों का कथन है कि मंत्र मुख्यतया साधकों को उपांशु या मानस जप का ही अधिक प्रयास करना चाहिए)
मंत्राधिराज कल्प में तेरह प्रकार के जप बतलाएं हैं

रेचक ,पूरक, कुंभा गुण त्रय स्थिरकृति स्मृति हक्का ।

नादो ध्यानं ध्येयिकत्वं तत्त्वं च जप भेदः ॥

  1. रेचक जप – नाक से श्वास बाहर निकालते हुए जो जप किया जाता है वो रेचक जप कहलाता है।

5.पूरक जप – नाक से श्वास को भीतर लेते हुए जो जप किया जाए वो पूरक कहलाता है।

  1. कुंभक जप -श्वास को भीतर स्थिर करके जो जप किया जाए वो कुंभक जप कहलाता है।

7.सात्त्विक जप -शांति कर्म के निमित्त जो जप किया जाता है वो सात्त्विक जप कहलाता है।

  1. राजसिक जप – वशीकरण आदि के लिए जो जप किया जाए उसे राजसिक जप कहते हैं।
  2. तामसिक जप- उच्चाटन व मारण आदि के निमित्त जो जप किया जाए वो तामसिक जप कहलाता है।
  3. स्थिरकृति जप- चलते हुए सामने विघ्न देखकर स्थिरतापूर्वक जो जप किया जाता है उसे स्थिरकृति जप कहते है
  4. • स्मृति जप- दृष्टि को नाक के अग्रभाग पर स्थिर कर मन में जो जप किया जाता है उसे स्मृति जप कहते हैं।
  5. हक्का जप – श्वास लेते समय या बाहर निकालते समय हक्कार का विलक्षणतापूर्वक उच्चारण हो उसे हक्का जप कहते हैं।
  6. नाद जप- जप करते समय भंवरे की आवाज की तरह अंतर में आवाज उठे उसे नाद जप कहते हैं।
  7. ध्यान जप – मंत्र – पदों का वर्णादिपूर्वक ध्यान किया जाए उसे ध्यान जप कहते हैं।
  8. ध्येयैक्य जप-ध्याता व ध्येय की एकता वाले जप को ध्येयैक्य जप कहते हैं।
  9. तत्त्व जप- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – इन पांच तत्त्वों के अनुसार जो जप किया जाए वह तत्त्व जप कहलाता है।
  10. सगर्भ जप- पराणायाम के साथ किया जाता है विशारदों का कथन है कि सगर्भ जप मानस जप जप से भी श्रेष्ठ है।
  11. अगर्भ जप-

प्रारंभ में व अंत में प्राणायाम किया जाता है।

800 साल का स्वतंत्रता संघर्ष

इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था कि, विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है।

भारतीय इतिहास का प्रारम्भ तथाकथित रूप से सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है, कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे।

पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, आज का पूरा पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा (पारस) ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC से भी प्राचीन पाया गया है।

इस प्राचीन सभ्यता की सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है। इतिहासकारों का दावा है, कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है, और पढ़ी नहीं जा सकी। जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं।

आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढना सरल हो गया है।

सिन्धु घाटी की लिपि को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढने के सार्थक प्रयास किये गए। भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर नकारात्मकता से ग्रस्त स्वयं सिद्ध इतिहासकारों का कब्ज़ा रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी।

क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और स्वयं सिद्ध इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे, कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए?

अंग्रेज और स्वयं सिद्ध इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्नलिखित खतरे थे…

  1. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी। इजिप्ट, चीनी, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई से भी पुरानी. जिससे पता चलेगा, कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। भारत का महत्व बढेगा जो अंग्रेज और उन इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा।
  2. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजो और स्वयं सिद्ध द्वारा फैलाये गए आर्य द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपगंडा के ध्वस्त हो जाने का डर है।
  3. अंग्रेज और स्वयं सिद्ध इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित ‘आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी। वे लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र व आदिवासी बन गए’, आदि आदि गलत साबित हो जायेगा।

कुछ इतिहासकार सिन्धु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे तो कुछ इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा, और तो और, कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे। ये सारे प्रयास असफल साबित हुए।

सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्लिखित समस्याए बताई जाती है…

सभी लिपियों में अक्षर कम होते है, जैसे अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52 आदि, मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं। सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में यह कठिनाई आती है, कि इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है, जिसमे लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है। ये निष्कर्ष लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद निकला।

भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक लिपि है जिसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता है। इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनी। यह लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी भारत में उपयोग की जाती थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत के अनेक ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते है।

सम्राट अशोक ने अपने धम्म का प्रचार प्रसार करने के लिए ब्राह्मी लिपि को अपनाया। सम्राट अशोक के स्तम्भ और शिलालेख ब्राह्मी लिपि में संस्कृत आदि भाषाओं में लिखे गए और भारत में लगाये गए।

सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताएं है। साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है। इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि को पढने का सार्थक प्रयास सुभाष काक और इरावाथम महादेवन ने किया।
सुभाष काक ने तो बहुत शोध पत्र तैयार किया एवम सिंधु घाटी की लिपि को लगभग हल कर लिया था, परंतु प्रकाशित करने के एक दिन पहले रहस्यमय मृत्यु हो गई। ये भी शास्त्री जी वाली कहानी थी।

सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षर के बारे में यह माना जाता है, कि इनमे कुछ वर्णमाला (स्वर व्यंजन मात्रा संख्या), कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं। अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है। विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा।

बाएं लिखी जाती है, उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाएं से बाएं लिखी जाती है। सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं।

इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं, लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है। और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है। अब हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी ध्वनि पता लगा सकते हैं।

ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढने पर सभी संस्कृत के शब्द आते है जैसे; श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि।

निष्कर्ष यह है कि…

  1. सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है।
  2. सिन्धु घाटी की लिपि को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है।
  3. उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु घाटी की लिपि में लिखा गया था।
  4. सिन्धु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे।
  5. वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन है।

वैदिक सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है, यहां के लोगों का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश (सिन्धु सरस्वती क्षेत्र) था जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था।वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे। आर्य द्रविड़ जैसी कोई भी दो पृथक जातियाँ नहीं थीं जिनमे परस्पर युद्ध हुआ हो।

वह उत्तर प्रदेश जिसकी सीमा के अंदर त्रेतायुग की अयोध्या आती है, द्वापरयुग की मथुरा आती है, और सारे युग युगांतर से प्राचीन काशी आती है। उसी प्राचीन पवित्र धरा के बागपत का एक छोटा सा गांव सिनौली विश्व के सारे इतिहासकारों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है। कारण यह कि चार वर्ष पूर्व हुए उत्खनन में वहाँ भूमि से कांसे तांबे के कीलों से बने रथ, और तलवारें आदि मिली हैं।

कार्बन डेटिंग पद्धत्ति से हुई जांच उन्हें 3800 वर्ष प्राचीन बताती है। अर्थात ये चीजें 1800 ईस्वी पूर्व की बनी हुई हैं। रथ का डिजाइन बता रहा है कि उसमें घोड़े जोते जाते होंगे। उस छोटे से हिस्से में हुई खुदाई से मिली चीजें प्रमाणित कर रही हैं कि तब इस क्षेत्र में एक अस्त्र शस्त्रों से सम्पन्न विकसित लड़ाकू सभ्यता थी।

मजेदार बात यह है कि हमारे यहाँ इतिहास की किताबों में पढ़ाया जाता है कि भारत में रथ और घोड़े बाहर से आर्यों के साथ आये, और आर्य भारत में पश्चिम से सिंधुघाटी सभ्यता को उजाड़ कर आये। सिंधु घाटी सभ्यता का समापन काल लगभग 1000 ईस्वी पूर्व का बताया जाता है, अर्थात लगभग उसी समय भारत में आर्य आये।

आर्यों के मूल स्थान के सम्बंध में भी यूरोपियन्स और भारत के इतिहासकारों ने खूब भ्रम फैलाया है। उन्हें मध्य एशिया, हंगरी, डेन्यूब घाटी, दक्षिण रूस, आल्प्स पर्वत, यूरेशिया, बैक्ट्रिया और जाने कहाँ कहाँ से आया बताया गया है। प्रयास यह सिद्ध करने का था कि आर्य कहीं के भी हों भारत के नहीं थे। इसके लिए मैक्समूलर, गौइल्स, जे.जी. रोड, मेयर, पिग, शर्मा, थापर, और जाने किस किस ने अपनी मनगढ़ंत थ्योरी से आर्यों की उत्पत्ति के सम्बंध में भ्रम फैलाया है। आर्यों के भारत आने के समय को लेकर भी अलग अलग दावे किये गए हैं, पर अधिकांश इतिहासकार 1500 ईस्वी पूर्व पर एकमत हैं।

अब सिनौली में इसके लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व के तीन तीन रथों का मिलना इतिहास के षड्यंत्रों को नंगा कर रहा है।

आजादी के बाद गढ़ा गया भारत का इतिहास शायद आधुनिक युग में विश्व का सबसे मूर्खतापूर्ण षड्यंत्र है। चंद विदेशी सिक्कों से अपनी कलम बेंच चुके फर्जी इतिहासकारों ने अपने इतिहास को जिस तरह निर्दयतापूर्वक विकृत किया वह बड़ा ही घिनौना है। आर्यों को बाहर से आना और यहाँ के निवासियों को दास बनाने जैसे समाज में विद्वेष फैलाने वाले दावों से समाज को खंडित करने का जो प्रयास इन विदेशी शक्तियों ने किया वह बताता है कि भारत के प्राचीन गौरव को कलंकित करने का षड्यंत्र कितना शक्तिशाली था।

पश्चिमी विद्वानों ने आर्यों को आक्रांता सिद्ध करने के लिए कैसे कैसे हास्यास्पद तर्क गढ़े हैं। उदाहरण देखिये, सीरिया के पास बोगजकोइ नामक स्थान पर हुई खुदाई में लगभग 4000 वर्ष प्राचीन संस्कृत के कुछ अभिलेख मिले जिनमें इंद्र, सूर्य, मरुत आदि देवताओं के नाम हैं। इस आधार पर अंग्रेज इतिहासकारों ने यह दावा कर दिया कि आर्य वहीं मध्य एशिया से निकल कर भारत आये। जबकि इसका अर्थ यह निकलना चाहिए कि भारतीय वैदिक आर्यों का प्रसार ईरान सीरिया तक था, क्योंकि इसके अनेक साहित्यिक साक्ष्य मौजूद हैं।

सभ्यताओं के विमर्श में स्वयं को बड़ा सिद्ध करने के दो ही मार्ग होते हैं। या तो स्वयं का इतना उत्थान करो कि बड़े हो जाओ, या जो बड़ा है उसे किसी भी तरह छोटा सिद्ध कर दो। यूरोपियन्स ने स्वयं को सनातन से बड़ा दिखाने के लिए दूसरे रास्ते को अपनाया।

भारत की प्राचीन संस्कृति इतनी विकसित और शक्तिशाली थी कि उसके समक्ष यूरोप का अंधा इतिहास कहीं खड़ा ही नहीं हो सकता था। सो उसे छोटा सिद्ध करने के लिए आर्यों को बाहरी और भेदभाव करने वाला बताया गया। पर सत्य को षड्यंत्रों से नहीं मारा जा सकता।

सिनौली में मिले साक्ष्यों ने आर्यों को लेकर गढ़ी गयी सारी पुरानी थ्योरी को बकवास सिद्ध दिया है। इससे यह दावा समाप्त हो जाता है कि आर्य बाहर से आकर सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों से लड़े और उनको पराजित कर के भारत में स्थापित हुए। इससे यह सिद्ध होता है कि आर्य-द्रविड़ द्वंद वस्तुतः मूर्खतापूर्ण सिद्धांत है, सच यह है कि सिंधुघाटी सभ्यता और प्राचीन वैदिक सभ्यता दोनों एक ही समय में फल फूल रही दो अलग सभ्यताएँ थीं।

यह वस्तुतः भारतीय इतिहास के साथ हुए षड्यंत्र की समाप्ति का प्रारम्भ है।