लंदन में बराक ओबामा और जॉर्ज सोरोस का होना और भारत विरोधियों से मिलना कोई इत्तेफाक नहीं है।
बार बार एक डीप स्टेट का जिक्र होता है, जिनके ये हिस्सा हैं, जो भारत में अपने एजेंट्स और दलालों के माध्यम से मोदी सरकार को उखाड़ फेकना चाहती है। हर दिन एक नया बवाल खड़ा करते है।
आखिर यह डीप स्टेट है क्या, क्यों पूरी दुनिया में उथल पुथल करते रहते हैं।
डीप स्टेट उन अति धनाढ्यों का एक गैंग है जो पूरी दुनिया की आधी संपत्ति और दौलत की मालिक है।इन्होने दुनिया भर में राष्ट्रवादी विचारों और नेटिव जीवन पद्धति को कंट्रोल में रखने के लिए यह खडा कियाI बेसिकली यह 1810 में वेटिकन द्वारा द्वारा दुनिया पर आर्थिक नियंत्रण के लिए बनाया गया थाIजहां जहां जिन जिन देशो पर यूरोपियन्स का कब्जा था वहां के जो भी नवकुबेर बने उनके आर्थिक हित भी समान होते गए तो धीरे धीरे यह भी इस इल्युमनाती ग्रुप से जुड़ते चले गएI
एक एक मेंबर की दौलत दुनियां के कई देशों के GDP से ज्यादा है। ये पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को कंट्रोल करते हैं।
डीप स्टेट के जरिए ही धनकुबेर पूरी दुनिया का व्यापार अपने कंट्रोल में रखना चाहते हैं चाहे इसके लिए हजारों लोगों की जान ही क्यों ना लेनी पड़े।
इसी डीप स्टेट ने इराक, यमन, सीरिया, लीबिया को तबाह किया है। मनमाफिक सरकार नहीं है तो तख्ता पलट करने की साजिश रचते हैं।यह अमेरिका के राष्ट्रपतियों,दुनिया भर के तमाम नेताओं और राष्ट्राध्यक्षो को मरवाने का काम करती रही हैI
इसी डीप स्टेट के कैपिटलिस्ट अमेरिका, यूरोप में सरकारें चलाते हैं। यही लोग अफ्रीकी देशों में उथल पुथल करते हैं। यही डीप स्टेट अमेरिकी सरकार की मदद से पाकिस्तान में सरकारें बनाते बिगाड़ते हैं। यही डीप स्टेट भारत में भी अपने पाले हुए गुलामों के जरिए उथल पुथल कर रहे हैं।
ये चाहते हैं कि भारत की जनता उनके लिए गुलामी करे, उनके सामान खरीदे। डीप स्टेट ईस्ट इंडिया कंपनी की मोडिफाइड वर्जन है जो किसी भी तरीके से भारतीयों का अपना आर्थिक गुलाम बनाना चाहती है।
डीप स्टेट में सबसे बड़ा गैंग अमेरिका की हथियार लॉबी का है, ड्रग्स लाबी,पेट्रोल लाबी,बैंकिंग लाबी,पेट्रोल लाबी,माइंस लाबी, टेकनौलाजिकल कंपनियों के मालिकान,एवं साइबर/इंटरनेट लाबी के साथ साथ मीडिया मुगल भी शामिल है जो दुनियां भर की सरकारो को अपना कठपुतली बना कर रखते हैं।केवल उदाहरण के लिए बता रहा हूँ दुनिया के आधे बीज बाजार और तीन-चौथाई कृषि रसायन कारोबार को 4 कंपनियां (Bayer, Corteva, Syngenta and BASF) कंट्रोल करती हैं।कुछ ही दवा कम्पनियों के हाथ में मूल दवाओं का साल्ट बनाने का काम हैI
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति JFK के भतीजे रोबर्ट कैनेडी जूनियर ने कहा है कि मेरे अंकल को सीआईए ने मरवा दिया था क्योंकि वो अमेरिका की वॉर पॉलिसी के बीच मे आ रहे थे। आजकल रॉबर्ट अमेरिकी राष्ट्रपति की दावेदारी कर रहा है और लोगों से बातचीत कर रहा है कि कैसे अमेरिका दूसरे देशों में युद्ध करवाता है।
इसका ताजा उदाहरण सूडान है जहां गृहयुद्ध चल रहा है लोकतंत्र बचाने के नाम पर और वहां की मिलिट्री और उसकी पैरा मिलिट्री आपस मे जंग कर रही है।
अमेरिका का अपना एक मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स है। सीआईए इसी के लिए काम करता है। इसको आप डीप स्टेट के नाम से भी जानते हैं और जो लोग इल्युमिनाटी से परिचित होंगे ये उसी का मिलिट्री कॉम्प्लेक्स है।
अमेरिका जिसे हम एक देश समझते हैं ये कॉम्प्लेक्स उसकी सरकार के अधीन नही आता। ये वैसे ही है जैसे अमेरिका का फेडरल बैंक है वो भी अमेरिकी सरकार के अधीन नही है। ऐसे ही जिसे आप वर्ल्ड बैंक, IMF, UN के नाम से जानते हैं वो इसी डीप स्टेट का है। नाटो जो दिखता है कि अमेरिका के पिछलग्गू यूरोपियन देश हैं वो भी अमेरिकी सरकार के पिछलग्गू नही बल्कि इस डीप स्टेट के हैं। डॉलर जिससे पूरी दुनिया चलती है वो इन्ही का है जिस वजह से OPEC देश(तेल वाले देश) वो भी इसी का हिस्सा हैं। इसी तरह जो फार्मा इंडस्ट्री पूरे अमेरिका और यूरोप की हैं वो भी अपने अपने देशों की नहीं बल्कि इस डीप स्टेट की है। आप अक्सर देखते होंगे बिल गेट्स को यहां वहां के देशों में घूमते। भारत भी आता रहता है। वो कोई फिलॉन्थोपिस्ट नही जो गरीब देशों में दान कर्म करने जाता है बल्कि वो फार्मा इंडस्ट्री का नुमाइंदा है जो विशेषतः वैक्सीन से जुड़ी फार्मा लॉबी के लिए मार्केट करने या गरीब देशों में नई वैक्सीन के लिए गिनी पिग ढूंढने का काम करता है।
इस तरह आप समझ सकते हैं कि आर्म, आयल और फार्मा लॉबी जो डीप स्टेट(इल्युमिनाटी) के तीन सर हैं उनका चेहरा भर है ये अमेरिका नामक देश जहां की सरकारें इनकी कठपुतली भर होती है।
हमें यह भी बहुत बड़ी गलतफहमी है कि अमेरिका लोकतांत्रिक देश है। दरअसल इतना बूथ कैप्चरिंग तो भारत में नही हुआ होगा जितना अमेरिकी इलेक्शन Rigged होता है। वहां ये लॉबी अपने हिसाब का राष्ट्रपति लाती है और यदि ये दिखता है कि इनका चुना हुआ चेहरा उतना पॉपुलर नही है और दूसरे की जीत की गुंजाइश है तो पूरी कोशिश होती है कि चुनाव में धांधली कराइ जाए। फिर भी अगर दूसरा जीत जाता है तो उसके पीछे सीआईए लगा दी जाती है जो ये तय करवाती है कि अमेरिका की पालिसी क्या बनेगी। इसके बाद भी यदि वो अपनी चलाता है तो JFK की तरह उसकी हत्या से लेकर ट्रम्प की तरह उसके खिलाफ BLM करवा उसे अनपॉपुलर करवाया जाता है और तब भी वो नही हार रहा तो चुनाव में धांधली कराई जाती है। और ये काम उसके साथ भी होता है जो इनका चुना हो मगर बाद में इनके कहने पर चलने से मुकर जाए।
आपको याद भी होगा कि ट्रम्प के पिछले चुनाव के समय 1 महीने तक रिजल्ट घोषित न हो सका क्योंकि जगह जगह यही आरोप लग रहे थे कि हमारे वोट कम किये गए हैं। यहां तक कि ट्रम्प के समर्थक कैपिटल हिल में चढ़ दौड़े थे कि चुनाव फ्री एंड फेयर नही हुए। ऐसा ही कुछ तब भी देखने को मिला था जब ब्रिटेन से स्कॉटलैंड को अलग करने को चुनाव हुए थे लेकिन धांधली कर घोषित कर दिया गया कि स्कॉटलैंड आजाद नही होना चाहता। अब वहां फिर से स्कॉटलैंड को अलग करने के लिए चुनाव की बात शुरू हो गयी है जब से नया स्कोटलैंड का प्रीमियर जीता है।
इसी वजह से आप देखेंगे कि ट्रम्प दोबारा न खड़ा हो सके तो उसके लिए उसपर एक पोर्नस्टार से हश मनी का केस लगवा दिया और उसे जेल भेजने की कोशिश हुई। न्यूयॉर्क का DA जो सोरोस के पैसे से अटॉर्नी बना है उसने इसमें जी जान लगा दी है कि ट्रम्प पर चार्जेस लग जाएं ताकि वो गिल्टी होकर कभी चुनाव न लड़ सके। कोई नही कह सकता कि जो ग्रैंड ज्यूरी बैठेगी उसमें इनके कितने आदमी होंगे जो ट्रम्प के खिलाफ फैसला देंगे? सोरोस के लड़के के वाइट हाउस में दर्जन भर से ज्यादा चक्कर लग चुके हैं और बाइडन से मुलाकातें हो चुकी हैं जो साफ दिखाता है कि डीप स्टेट किस तरह राष्ट्रपति को आदेश देता है।
बेसिकली डेमोक्रेट्स जो हैं वो इस डीप स्टेट के ज्यादा करीबी हैं बजाय रिपब्लिकंस के। बाइडन हो, हिलैरी हो या ओबामा ये सब डीप स्टेट का आर्डर फॉलो करने में कोई IF BUT नही करते। वहीं ट्रम्प जैसे जो होते हैं वो कुछ भी करने से पहले ये सवाल करने लग जाते हैं कि इससे अमेरिका की जनता का क्या फायदा होने वाला है?
यही वजह थी कि ट्रम्प के चार साल में एक बार भी उसने किसी देश मे बम नही गिरवाये जबकि बराक हुसैन ओबामा पहला मुस्लिम ब्लैक अमेरिकन कितने मुस्लिम देशों में बम गिरा गया इसकी गिनती उसे पता भी नही होगी।
इसीलिए इसी डीप स्टेट ने साजिश के तहत ये नियम बनाया था कि अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नही बन सकता क्योंकि यदि कोई मोस्ट पॉपुलर व्यक्ति सत्ता में आ गया जो 20-30 साल तक हारे ही नही तो डीप स्टेट का सारा गेम प्लान खराब हो जाएगा और जरूरी नही कि हर बार हत्या या हिंसा करवाकर सफलता मिले ही मिले और अमेरिका में गृहयुद्ध करवाना उतना अच्छा मैसेज दुनिया मे देगा नही जितना आसान दूसरे देशों में होता है जैसे आजकल सूडान, उससे पहले अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया आदि में किया गया है।
तो इस तरह अमेरिका नामक देश के चेहरे का इस्तेमाल करकर डीप स्टेट काम करता है। इसकी तीन प्रमुख लॉबी होती हैं जैसे बताया है।
आर्म जिसे मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स चलाता है जो इतना लालची और युद्ध बेचने वाला है कि खुद के देश मे भी गन कल्चर खत्म नही होने देना चाहता। दूसरा है आयल जिसे OPEC चलाता है जिसके तहत मिडिल ईस्ट से लेकर अन्य देश आते हैं। और तीसरा है फार्मा लॉबी जो मुख्यतः UN के अंडर काम करती है और गरीबी, भुखमरी, महामारी, बीमारी, कुपोषण आदि के नाम से अपना धंधा चलाती है।
UN इनका वो मुखौटा है जो बना ही इसलिए था कि जो काम 1945 से पहले सीधे दूसरे देशों में उतरकर करने पड़े थे उन्हें अब दूसरी तरीके से किया जाए। और इसमें सबसे मुख्य है किसी भी देश को अपने खेमे में करना और उसके लिए सबसे मुख्य चीज है उस देश की सत्ता को कंट्रोल करना और ऐसा नही होने पर अंततः रिजीम चेंज करना।
UN इसके लिए ह्यूमन राइट्स की आड़ लेता है, लोकतंत्र बचाने की आड़ लेता है, शिक्षा से लेकर गरीबी के नाम पर NGO उस देश मे चलाता है, स्वास्थ्य से लेकर भोजन के नाम पर सरकारी सहायता(AID) के काम करता है। अपने लोगों को ज्यूडिशरी, अकेडमिया, मीडिया में भरता है। यही लोग आतंकी संगठनों को भी फाइनेंस करते हैं। अब इनका नया हथियार सोशल मीडिया भी है।
इसके बाद ये तीन उस देश को प्रभावित करने को 3M का सहारा लेते हैं। मूवी, मीडिया और मिलिट्री।
मूवी इंडस्ट्री से ऐसी फिल्में आएंगी जो बताएंगी कि दुनिया का रक्षक जो है वो अमेरिका है। मीडिया ये बताएगी कि दुनिया मे बुरे सिर्फ एन्टी अमेरिका वाले लोग हैं। फिर मिलिट्री ये बताएगी कि फलां देश आतंक से पीड़ित है या मानवता का दुश्मन है जो या तो तानाशाही कर रहा है या फिर ऐसे हथियार बना रहा है जो मानवता पर खतरा हैं।
इन सबको बैकिंग देता है 4th M यानि मनी जो दुनिया की एक है और उसका नाम है डॉलर।
ये डीप स्टेट का है नाकि किसी अमेरिकी सरकार का तो ट्रिलियन्स डॉलर फूँकने में भी इन्हें टेंशन नही होती। ये तो खुद अमेरिकी सरकार को भी कर्ज देते हैं देश चलाने को। कभी सोचा कि अगर डॉलर अमेरिका का है तो अमरीकी सरकार पर 32 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज किसका है जो उन्हें चुकाना है?
क्योंकि अमेरिका भी उसी तरह इनसे उधार लेता है जैसे अन्य देश। जब भी दुनिया मे संकट आता है तो इन्हें उल्टा खुशी होती है क्योंकि डॉलर इंडेक्स मजबूत होता है और इनकी चांदी होती है डॉलर के मजबूत होने से और दुनिया की मुद्राओं के डॉलर के मुकाबले कमजोर होने से। इनके हथियार से लेकर आयल और फार्मा वाले सबसे ज्यादा किसी संकट से ही कमाते हैं।
लेकिन ये ऐसे संकट को ज्यादा दिन टिकने देना इसलिए नही चाहते कि ऐसी परिस्थिति में फिर दुनिया दूसरे रास्ते अपनाने लगती है। जैसे इस समय हो रहा है जब डॉलर पर संकट आने लगा है और दुनिया अल्टरनेटिव करेंसी की ओर देखने लगी है।
दुनिया अब बाइपोलर से मल्टीपोलर की बात करने लगी है। BRICKS जैसे संगठन G7 को आंखे दिखाने लगे हैं। NATO के अंदर बगावत चल रही है। ग्लोबल साउथ की बात हो चुकी है जिसका मकसद ही सारे कथित थर्ड वर्ल्ड कंट्री को एक साथ लाना है।
अमेरिका ने यूक्रेन को उकसाया रूस के खिलाफ जबकि रूस की मांग ये थी कि मेरी सीमा में NATO न आकर बैठे। जर्मनी जिसकी गैस पाइपलाइन नॉर्दस्ट्रीम थी, तोड़ डाली और रूस पर उंगली उठा दी। बाद में पता चला कि ये अमेरिका ने किया तो कहा कि ये काम तो प्रो यूक्रेनियन लोगों का था। इस वजह से यूरोप में एनर्जी संकट आ गया। बाद में खुलासे हुए कि अमेरिका यूक्रेन के लिए इतना क्यों मचल रहा तो अमेरिका ने यूक्रेन में चुपचाप 30 से ज्यादा जैविक लैब बना रखी हैं। परमाणु संयंत्र के नाम पर अमेरिका यूक्रेन में अपने न्यूक्लियर बेस बना रहा है। इसके बाद उसे NATO में शामिल करने का प्लान था ताकि अमेरिकी सेना रूस के बॉर्डर पर हर तरह के हथियार के साथ बैठ जाये।
इसी से जर्मनी चिढ़ गया पर जर्मनी की 1945 से ही संधि है कि युद्ध मामलों में वो अमेरिका पर निर्भर रहेगा, तो ज्यादा कुछ नही बोला। लेकिन फ्रांस ने इसपर उंगली उठा दी कि तुम क्यों जबरदस्ती दुनिया को युद्ध की तरफ धकेल रहे हो तो जिस मैक्रो को पपेट बना वहां बिठाया था उसके खिलाफ एक टुच्चे से पेंशन बिल के नाम पर जनता सड़क पर करवा दी ये वार्निंग देते हुए कि हमारे खिलाफ गया तो हम रिजीम चेंज करवाने का दम भी रखते हैं।
इजरायल जो बना ही इसलिए था कि मिडिल ईस्ट में इनका बफर स्टेट बने जैसे पाकिस्तान रूस और भारत के बीच मे बना था, उसने जब मिडिल ईस्ट में शांति की बात करने की कोशिश की तो वहां भी ज्यूडिशरी में दखलंदाजी के बहाने लोग सड़कों पर आ गए। वो कहता रहा कि इसके पीछे CIA है लेकिन किसी ने नही सुनी क्योंकि मीडिया तो इनके कंट्रोल में है जो रूस तक का पक्ष कभी दुनिया को जानने नही देती।
अमेरिका में वो जर्नलिस्ट या तो नौकरी से निकलवाये जा रहे हैं या जेल भेजे जा रहे हैं जो इन बातों को उठा रहे हैं।
बाकी मीडिया स्वतंत्रता की फिर इनसे जितनी बड़ी बड़ी बातें करवा लो।
हर देश को ये इसी तरह किसी न किसी बहाने धमकाते हैं। न मानने पर अपने लोग एक्टिव करवाते हैं। विक्टोरिया नुलन्द, जॉर्ज सोरोस इसी तरह के इनके प्यादे हैं जिनका काम उस देश के अंदर के लोग खरीद उस देश मे आंतरिक कलह शुरू करवानी होती है। इनके लोग तो उस देशों में दशको से NGO, मीडिया, ज्यूडिशरी, अकेडमिया, मूवी इंडस्ट्री आदि में बैठे ही होते हैं तो वो फिर अपने देश के अंदर एक्टिव हो जाते हैं। विपक्षी पार्टी जो सत्ता में आने के लिए तड़प रही होती है उससे ये लोग डील कर देते हैं कि हमारे पपेट बनकर रहोगे तो हम तुम्हे सत्ता में बिठा देंगे।
भारत के मामले की बात करें तो पहले ब्रिटिश यहां डायरेक्ट ही थे। उनके जाने के बाद यहां रूस ने इसी तरह की घुसपैठ की। जो इनकी नही मानते थे उनकी हत्या यहां आम थी। फिर वो प्रधानमंत्री हो, न्यूक्लियर साइंटिस्ट हों, स्पेस साइंटिस्ट हों, अन्य पोलिटीशयन हों या कोई और..
1990 तक KGB का यहां ज्यादा प्रभाव रहा। सीआईए और उसकी ब्रांच ISI ने यहां रूसी समर्थक सरकारों के खिलाफ बहुत आंदोलन भी करवाये। यहां तक कि KGB की गलतियों को भुना उनके ही लोग फिर अपने कंट्रोल में लिए जैसे खलिस्तान हो या लिट्टे.. पर KGB यहां फिर भी भारी ही पड़ा रहा सीआईए पर।
बाद में जब सोवियत संघ टूट गया तो KGB कमजोर हो गयी और उसकी जगह सीआईए आ गयी। तब से डीप स्टेट सीआईए के माध्यम से यहां की सरकारों को कंट्रोल करता है लेकिन जब भी कोई ऐसी सरकार यहां आती है जो इनके कहने पर काम नही करती तो उसके खिलाफ रिजीम चेंज का काम शुरू हो जाता है। उसके लिए उसके पास कौन कौन से असेट्स हैं ये दोहराने की जरूरत नही है।
लेकिन भारत के मामले में एक नया प्लेयर भी उभरा है और वो है चीन।
चीन ने अपने देश मे पहले सीआईए का इस्तेमाल किया और खुद को रूस से रिप्लेस किया। बाद में रूस के टूटने पर उसकी जगह ले ली अमेरिकी डीप स्टेट के खिलाफ बाइपोलर दुनिया का एक धड़े का नेतृत्व करने लगा। ये डीप स्टेट का सबसे बड़ा ब्लंडर साबित हुआ।
यही वजह है कि डीप स्टेट भारत के मामले में ये नही चाहता कि भारत भी एक अन्य धड़ा बन जाये रूस और चीन की तरह। इससे फिर सीधी लड़ाई ही वेस्ट बनाम ईस्ट की हो जाएगी।
इसी का फायदा भारत भी उठाता है लेकिन भारत की समस्या ये है कि चीन भी भारत को बड़ा बनता नही देख सकता क्योंकि एक तो उसे यूरेशिया में एक क्षत्र राज चाहिए और दूसरा कि चीन को डर है कि जैसा रूस को हटाने को चीन का इस्तेमाल हुआ था उसी तरह भारत का इस्तेमाल चीन के लिए न हो सके।
इस वजह से डीप स्टेट के साथ साथ चीन भी भारत के खिलाफ एक्टिव रहता है। चीन को भी भारत मे ऐसे लोग चाहिए जो उसके पपेट हों। और मजे की बात कि भारत मे इस मामले में अमेरिकी डीप स्टेट और चीन फिर एक मंच पर आ जाते हैं जैसे यहां इस्लाम-ईसाइयत-वाम हिन्दुओ के खिलाफ आ जाते हैं जबकि आपस मे वो एक दूसरे के दुश्मन भी हैं।
भारत मे आज की तारीख में चीन और अमेरिकी डीप स्टेट की लड़ाई ये भी चलती है कि विपक्ष को कौन ज्यादा कंट्रोल करेगा। यूँ तो ये तब आसान होता जब सत्ता में बैठे लोग एक पक्ष के होते और दूसरे को फिर कोई एक अपने पक्ष में कर लेता लेकिन समस्या यही है कि सत्ता में बैठे किसी पक्ष के न होकर भारत के पक्ष के हैं।
इसलिए यहां भी वही फार्मूला चलता है जो इस्लाम-वाम-ईसाइयत चलाती है कि पहले हिन्दू को तो खत्म करो फिर फैसला कर लेंगे कि आपस मे क्या करना है।
उसी तरह चीन हो या अमेरिका दोनों इस प्रयास में रहते हैं कि पहले इस सरकार को तो हटाओ फिर देखेंगे कि क्या करना है।
क्योंकि पहले यही होता था। सत्ता में कांग्रेस थी और वो अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील करती थी तो चीनी समर्थक वामपन्थी उसे सत्ता से गिराने की धमकी देने आ जाते थे कि डील कैंसिल करो। इस तरह अमेरिका बनाम चीन यहां चलता था।
जबकि इस समय जो सरकार है वो चीन को तो अपना नम्बर 1 दुश्मन कहती ही है बल्कि अमेरिका को भी साइड रख उसके लाख धमकाने पर भी रूस से डील करना नही छोड़ती क्योंकि इसकी पॉलिसी है भारत फर्स्ट।
इसलिए सारे बाहरी दुश्मन भी एक हैं और भीतरी भी।
चीन अमेरिका भी एक हैं और कांग्रेस और वामपन्थी भी एक साथ भारत जोड़ने निकले हैं।
कुलमिलाकर किसी को भी ये सरकार नही चाहिए। इसके लिए इस सरकार के खिलाफ जो माहौल बनाया जा सकता है बनाया जायेगा। दंगो से लेकर हत्या के प्रयास तक भी किये जायेंगे।
मोदी इस बारे में बात करते भी रहते हैं। जब वो कहते हैं कि आपको नही पता कि मैंने किन लोगों से दुश्मनी ले रखी है तो इन्ही की बात वो करते हैं। हाल में उन्होंने रिपब्लिक भारत के मंच में भी कहा कि आपको नही पता मैंने फार्मा लॉबी के खिलाफ अपना पोलिटिकल गुडविल दांव पर लगा दिया था जब सारे मेरे पीछे पड़े थे कि वैक्सीन इम्पोर्ट करो और मैंने कहा था कि हम तो स्वदेशी वैक्सीन ही बनाएंगे। यहां पर डीप स्टेट और चीन दोनों चाहते थे कि उनकी वैक्सीन भारत खरीदे क्योंकि ये धंधा अरबों डॉलर का था क्योंकि भारत की आबादी ही 1.40 अरब हो चुकी है।
अमेरिका के अंदर हजारों लोग हर साल अंधाधुंध गोलियों के शिकार होते हैं।हर हत्याकांड, विशेषकर स्कूलों में हत्या के बाद हर सरकार लाइसेंस की बात करती है लेकिन हथियार लॉबी के दबाव में चुप हो जाती है।
डीप स्टेट हथियार लॉबी के लिए दशकों से पूरी दुनिया में युद्ध कराती रही है।
वियतनाम में खत्म हुआ तो अफ्रीकन देशों में शुरु किया। इराक में खत्म हुआ तो सीरिया, यमन में शुरु हुआ। लीबिया के तानाशाह गद्दाफी को ख़त्म कर दिया।
अफ़गानिस्तान में खत्म हुआ तो यूक्रेन में शुरु हो गया।
यूक्रेन युद्ध का अंत तभी होगा जब हथियार लॉबी को नया युद्ध क्षेत्र मिल जायेगा।
हथियार लॉबी नहीं चाहता कि कोई और देश दुनियां के हथियार बाजार में प्रवेश करे। रूस बड़ा हथियार निर्माता और निर्यातक है लेकिन इस समय उसे ही चीन से आयात करना पड़ रहा है।
इस लॉबी को यह बिल्कुल पसंद नहीं है कि भारत उनके अलावा किसी अन्य देश से हथियार आयात करे या निर्माण करे।
लेकिन मोदी अलग मिट्टी के बने हैं, इनके दबाव में नहीं आते। आयात भी रूस और फ्रांस से करते हैं और बहुत बड़े पैमाने पर निर्यात भी कर रहे हैं।
हर दिन एक नए रॉकेट, मिसाइल, टैंक, हेवी गन का परीक्षण हो रहा है। हथियारों का निर्यात हो रहा है।
अगले 5 साल में निर्यात में कई गुना बढ़ोत्तरी की योजना बनाई जा चुकी है।
ऐसे हालात में डीप स्टेट का बौखला जाना स्वाभाविक है। वे अपने NGOs और हवाला के जरिए करोड़ो, अरबों रुपए भारत में भेज रहे हैं। देशद्रोही भारतीयों को क्या चाहिए, पैसा। वह भर भर कर मिल रहा है। हर दिन किसी ना किसी बहाने सड़के जाम करते हैं, रेल रोकते हैं जिससे देसी को हर रोज करोड़ों का नुकसान होता है।
ओपन सोसायटी फाउंडेशन, राकफेलर फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन, बिल गेट फाउंडेशन ने सैकड़ों की तादात में भारत के भीतर NGOs खुलवा दिए हैं।
भारत के भीतर शायद ही कोई नेता हो जिसका एक या अनेक NGO ना हो, शायद ही कोई ब्यूरोक्रेट हो जिसके परिवार के पास NGO ना हो। शायद ही कोई पत्रकार हो जिसके पास NGO ना हो। केजरी ने 2000 में ही NGO शुरू कर दिया था जब वह सरकारी नौकरी में थे।
इन सभी को भर भर कर विदेश से पैसा आ रहा है। जाहिर है जो पैसा देगा, वह अपना भी काम कराएगा।
लेकिन कुछ NGOs तो सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत विरोधी कामों में जुटी हुई थी। विकास को अवरूद्ध करना इनके एजेंडे में था।
भारत विकास करेगा तो डीप स्टेट के व्यापार का नुकसान होगा। इन्ही NGOs के जरिए डीप स्टेट ने भारत में सिंचाई के लिए डैम बनाने में रोड़ा अटकाए, पर्यावरण के नाम पर सीमा पर सड़कों के निर्माण को रूकवाने के लिए SC में याचिकाएं दायर करते रहे। हाईवे और एक्सप्रेस वे बनाने में रोड़ा अटकाते हैं। जंगलों में सड़के और ट्रांसमिशन लाइन नहीं ले जानें देते।
सैकड़ों NGO आज भी धर्मांतरण में जुटे हुए हैं।हजारों NGOs के लाइसेंस रद्द किए जा चुके हैं लेकिन किसी ना किसी अवैध रास्ते से भारत में देशद्रोहियों के पास पहुंचा ही देते हैं।दुनिया बहर कम्युनिष्ट विद्रोह होते हैंIवे उसे क्रान्ति कहते हैIइसके बाद लोकल लोग स्पेशिली बौद्ध या हिन्दू इसाई होने लगते हैंIध्यान से अध्ययन करिए तो ईसाई मिशनरियां ही होती हैं कम्युनिष्टो की आड़ में।वह तो उनका ही एक विंग होता हैI
नेपाल पर हाफ अ मिलियन डॉलर अमेरिका की बाइडन सरकार ने खर्च किये हैं वहां हिंदुओं से हिन्दू धर्म छुड़वाने को। ये बात का खुलासा अमेरिकी कांग्रेस(संसद) में हुआ है।
अमेरिका की असली असलियत यही है इस वजह से उसपर कोई भरोसा नही करता है।बाइडन तो बस मुखौटा है। असल काम डीप स्टेट का किया है ये। न सिर्फ डीप स्टेट बल्कि उन्ही का दूसरा मुखौटा चीन भी इसमें एक्टिव है कई साल से।
भूलें नहीं कि जिस दिन नेपाल से राजशाही का अंत हुआ था और वामपन्थ की सत्ता स्थापित हुई तो उन्होंने भारत से अपने शपथग्रहण समारोह में किसे बुलाया?
सीताराम येचुरी जैसे चीनी एजेंट को।इसने वहां क्या कहा था?
“हमे खुशी है कि दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र भी खत्म हो गया है,।
इससे पहले नेपाल से राजशाही खत्म करने का काम कौन कर रहा था?
भारत की रॉ।
लेकिन किसके कहने पर?
राजीव गांधी के कहने पर।
बहाना क्या बनाया गया?
कि सोनिया को पशुपति नाथ नहीं घुसने दिया गया क्योंकि वो हिन्दू नही है।
लेकिन हकीकत क्या थी?
कि राजीव द्वारा ये सब सोनिया नही बल्कि सीआईए(चीन भी) सब करवा रहा था और राजीव ने इसके लिए हमारी रॉ तक को विलन बना दिया। जिस वजह से नेपाल की जनता भारत विरोधी और चीन समर्थक हो गयी।आज वहां सरकार से लेकर विपक्ष सब वामपन्थी है। जिसमें से हमे ये देखना पड़ता है कि कौन कम वामपन्थी अर्थात कट्टर नही है और फिर उसकी सरकार वहां बनवानी पड़ती है चीन को नेपाल से दूर रखने को।
इसलिए मैं कहता हूँ कि डीप स्टेट का एक अकेला अमेरिका ही नही पाला हुआ है। बल्कि अमेरिका का दुश्मन दिखने वाला चीन सहित, भारत की कांग्रेस और दुनिया भर में ऐसे लोग सब डीप स्टेट के पाले हुए हैं।
पूरा कोल्ड वॉर डीप स्टेट ने चलवाया और दोनों अमेरिका और रूस उसके प्यादे थे या यूं कहें कि अमेरिका और रूस की सत्ता में बैठे उनके प्यादे थे।क्योंकि डीपस्टेट के असल संचालक वेटिकन में बैठे हैं।
वह तो अमेरिका में रिपब्लिकन इनके दुश्मन हैं या यूं कहें कि इनके गुलाम नही है। इसलिए ये रिपब्लिकन से उसी तरह चिढ़ते हैं जैसे भारत में मोदी(भाजपा) से। उधर ट्रम्प को ठिकाने लगाने की कोशिश हो या इधर मोदी को, ये पूरी कोशिश करते रहते हैं। वैसे भी भारत हो या अमेरिका या कोई और देश इन्होंने हर उसको ठिकाने लगाया है जो इनके खिलाफ रहता था फिर वो उन उन देशों का राष्ट्राध्यक्ष क्यों न हो।
इसी तरह रूस में वामपन्थ उखड़ने के बाद जब से पुतिन आया है वो इनका दुश्मन है। इसलिए उसके खिलाफ भी मोर्चा खोले रहते हैं। नेतन्याहू भी इसी तरह है और थोड़ा बहुत जिनपिंग भी।जबसे उसने अपने पंख फैलाने और दूसरा माओ बनने की कोशिश की है।
हालांकि आपने गौर किया हो तो जो ट्रम्प ने चीन के साथ इकोनॉमिक वॉर शुरू की थी, बाइडन के आते ही वो बन्द हो गयी।दोनों तरफ से बस बोलबचन चलते रहते हैं। जबकि कोरोना जैसा कांड भारत जैसा देश कर देता तो अब तक ये सारे मिलकर उस पर युद्ध छेड़ दिए होते।क्योंकि वेटिकन नहीं चाहता शी जिनपिंग जैसे ईसाई को डिस्टर्ब किया जाए।
इसका कारण भी ये है कि डीप स्टेट के कहने पर ही कोरोना फैलाया गया था।क्योंकि डीप स्टेट को एक तो पॉपुलेशन कंट्रोल करना है जो उनके एजेंडे में है। दूसरा कि सिर्फ हथियार और तेल से ही क्यों पैसा बनाया जाए जब फार्मा से भी पैसा बन सकता है।इस वजह से भारत जैसे देश मे फाइजर लॉबी इतनी एक्टिव थी। लेकिन मोदी ने फाइजर को घुसने नही दिया।इसीलिए कांग्रेस सहित सबने मोदी के खिलाफ इस बात पर मोर्चा खोल था।जिसकी खुन्नस में डीप स्टेट ने महीनों तक भारत की वैक्सिनों को WHO से मान्यता नही होने दी थी। उसी WHO(डीप स्टेट का अंग क्योंकि पूरा UN उनका है) जिसका चीफ चीनी पालतू भी था और इसने कोरोना को चीनी वायरस कहने पर अघोषित प्रतिबंध लगवा दिया था।
बाकी, आजकल तो खैर ये वापिस हथियार और आयल वॉर खेल रहे हैं। मिडल ईस्ट वॉर में भी और रूस-यूक्रेन वॉर में भी और अब तो इन्होंने रूस में 26/11 करवा दिया है। जिसका मतलब ये वॉर अब और बड़ी बनेगी और ये और पैसा छापेंगे।
अंत मे याद दिला दूं कि फाइजर को यहां घुसवाने की कोशिश की तरह ही इन्होंने रूस से तेल खरीदने से भी भारत को रोकना चाहा था लेकिन भारत ने इन्हें ठेंगा दिखाते हुए रूस से न सिर्फ तेल खरीदना जारी रखा बल्कि इतनी बड़ी मात्रा में खरीद लिया कि यहां से रिफाइन कर भारत तेल को यूरोप में भी एक्सपोर्ट कर रहा है और डॉलर छाप रहा है। इसपर जब अमेरिका(डीप स्टेट) ने यूरोपियन यूनियन के माध्यम से आपत्ति जतवाई तो जयशंकर ने कहा था कि वो तेल अब रूस का कहाँ से हो गया, वो तो भारत का है जैसे अगर कोई कच्चा माल कहीं से खरीदे और अपने यहां फाइनल प्रोडक्ट बना दे तो वो उस देश का प्रोडक्ट होता है, जिसका जवाब फिर EU दे नही पाया था।
यहां तक कि इसी तरह भारत से तेल मिडिल ईस्ट के नॉन आयल देशों में एक्सपोर्ट हुआ और पाकिस्तानियों ने भी वहां से उसे खरीदा और अपने देश मे कहा कि हम कौन सा भारत का तेल खरीद रहे हैं क्योंकि रूस से तेल ये खरीद नही सकते थे क्योंकि एक तो अमेरिका नाराज होता, दूसरा इनके पास डॉलर नही थे जो ये खरीदें और तीसरा कि इनके पास रूसी तेल को रिफाइन करने की रिफाइनरी भी नही हैं जैसी भारत के पास हैं।
इस तरह से पूरी जियोपोलिटिक्स चलती है दुनिया में। जिसमें इधर भारत भी अब एक बड़ा प्लेयर बनता जा रहा है। इस वजह से भारत विशेषतः मोदीजी से डीप स्टेट खार खाये बैठा है।लेकिन उसका बस नही चल रहा कि किस तरह मोदी को राजनीतिक या शारीरिक रूप से हटाया जा सके।
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